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Basti: भाजपा एंटी इंकम्बेंसी का माहौल भांपने में चूकि
बस्ती: बस्ती लोकसभा चुनाव-2024 में भाजपा एंटी इंकम्बेंसी का माहौल भांपने में चूक गई. यही कारण रहा कि उसकी हार में कई बिन्दु एक के बाद एक जुड़ते चले गए. प्रत्याशी चेहरे के साथ चुनाव रणनीति बनाने में भाजपा पूरी तरह फेल रही. पार्टी की ओर से चले गए एक पर एक दांव उलटे पड़े. यही कारण रहा कि दो बार के सांसद हरीश द्विवेदी को एक लाख वोटों के अंतर से हार का सामना करना पड़ा.
लोकसभा चुनाव की तैयारियां एक वर्ष पहले से शुरू हो गई थीं. भाजपा जिलाध्यक्ष का चुनाव भी इसी कड़ी का एक महत्वपूर्ण अंग था. पार्टी कार्यकर्ताओं की मानें तो प्रदेश नेतृत्व ने कमजोर जिलाध्यक्ष का चयन किया. किसी ने सांसद का सहयोगी बताया तो किसी ने रबर स्टैंप की संज्ञा दी. यही कारण रहा कि जिस प्रकार से चुनाव के दौरान मंडल अध्यक्षों को चुनाव मैदान में उतारना था, उसमें पार्टी विफल रही. जिलाध्यक्ष का उन पर नियंत्रण नहीं था. क्षेत्र में खुले कार्यालयों पर प्रत्याशी के आदमी तो दिखाई दिए, लेकिन पार्टी पदाधिकारियों और कार्यकर्ताओं की आमद नहीं के बराबर रही. इक्का-दुक्का छोड़ दिया जाए तो मंडल के अध्यक्ष चुनाव कार्यालय तक नहीं पहुंचे. तमाम मंडल अध्यक्ष भाजपा प्रत्याशी के ‘पॉलीटिकल इरोगेंस’ के कारण नाराज दिखाई दिए और चुनावी कोरम पूरा करते नजर आए. इसके अलावा सभी पूर्व विधायक और वरिष्ठ पाटी नेता उपेक्षा के कारण तन-मन-धन से चुनाव में सक्रिय नहीं हुए. भाजपा ने चुनाव का मुख्य आधार ब्लॉक प्रमुखों और नगर पंचायत अध्यक्षों को बनाया. इनमें कुछ को छोड़ दिया जाए तो अधिकांश ने भितरघात किया. कुछ प्रमुखों ने पूरी ताकत झोंकते हुए चुनाव मैदान में भाजपा का साथ दिया तो अधिकांश ने चुनावी खानापूर्ति कर दी. ब्लॉक प्रमुखों के जिम्मे ग्राम प्रधानों को संभालना था, जो वह नहीं कर पाए.
जिन गांवों का वोट सहेजना था, वह नहीं सहेज पाए. कुछ प्रमुखों ने इस चुनाव में अपने विरोधियों को निपटाने का प्रयास किया तो चुनावी गणित में भाजपा के लिए उलटा पड़ा. यही हाल नगर पंचायत अध्यक्षों का रहा. एक-दो नगर पंचायत अध्यक्षों को छोड़ दिया जाए तो वोटों का ठेका लेने वाले अधिकांश नगर पंचायत अध्यक्ष पार्टी को वोट दिलाने में विफल रहे. चुनावी लाभ मतदाताओं तक पहुंचाने के बजाए अपने में बांट दिया, जिसका सीधा असर भाजपा प्रत्याशी के विरोध में मतदान करके हुआ. पार्टी प्रत्याशी को लेकर भी जिले में विरोध की लहर चल रही थी. भाजपा का बड़ा मतदाता वर्ग प्रत्याशी को लेकर विरोध जता रहा था. कुछ ने नाराजगी के बीच मतदान किया, कुछ ने मतदान करने से परहेज किया. कुछ ने विरोध में मतदान कर दिया. इसका नजारा मतदान के दौरान दिखा. चुनाव के दौरान भाजपा के पूर्व जिलाध्यक्ष दयाशंकर मिश्र का पार्टी छोड़कर बसपा के टिकट पर नामांकन करना भी एक बड़ा कारण बना. बाद में बसपा से दयाशंकर का टिकट कटने का असर उनके मतदाताओं पर पड़ा. बसपा मतदाताओं ने टिकट कटने का ठीकरा भाजपा प्रत्याशी पर थोपा और नाराजगी जताते हुए बसपा के वोटरों का बड़ा वर्ग सपा को वोट कर दिया.