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उत्तरप्रदेश | किसानों ने खेती में बुआई आदि कर दी है. फसलें भी पनपने लगी है. कुछ फसलों में कीटों ने भी हमला शुरू कर दिया. जिनसे बचने के लिए केन्द्रीय कृषि विश्वविद्यालय की ओर से दवा प्रयोग की विधि जारी की गई है. जिससे किसान के खेत की मिट्टी के पोषक तत्व भी प्रभावित नहीं होंगे और कम खर्च में बढ़िया दवा तैयार होगी.
रानी लक्ष्मी बाई केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय के निर्देशन में नीम आधारित जैविक कीटनाशकों के बारे में जानकारी दी गई. कृषि वैज्ञानिक डॉ. अनिल कुमार राय, डॉ. योगेश्वर सिंह ने बताया कि कड़वी नीम एक बहुपयोगी बहुऔषधि वनस्पति है. नीम के पत्ते, फल, जड़ व छाल भी औषधि के रूप में इस्तेमाल होती है.
नीम के बीज से जैविक कीटनाशक बनाया जाता है. कीट व रोग नियत्रण के लिए अंग्रेजी रसायनों के इस्तेमाल से वह नियंत्रण में तो आ जाता है लेकिन उनका लम्बे समय तक प्रभाव नहीं रहता. साथ ही साथ मृदा एवं वातावरण पर भी प्रतिकूल असर डालता है. पर्यावरण अनुकूल व लम्बे समय तक के लिए कड़वी नीम कीटनाशक अच्छा योगदान दे सकते. नीम के पेड़ वर्षा दौरान अप्रैल व मई के माह में फूल धारण कर, जून व जुलाई महीनो में फल देने लगते हैं.
पत्ती से होता जैविक कीटनाशी घोल कड़वी नीम की पत्ती से बना जैविक घोल कीटनाशक के रूप में इस्तेमाल किया जाता है.
इस तरह कर सकते किसान तैयार
नीम की निबोली को एकत्रित कर एक सूती कपड़ा में एकत्रित कर पानी से भरे बाल्टी में अच्छी तरह से मसल लें. फिर सुखाकर पाउडर बना लें. पांच किलो पाउडर, 10 लीटर पानी में पूरी रात या 1012 घंटे भिगोकर रखें. अगले दिन यह घोल सूती कपड़े से छान कर 100 लीटर पानी में मिलाएं. घोल का छिड़काव करने से पहले 50 ग्राम वाशिंग पाउडर प्रति लीटर के हिसाब से मिला लें ताकि पौधों की सतह पर यह जैविक कीटनाशक लम्बे समय तक चिपका रहे.
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Harrison
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