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वाराणसी: ज्ञानवापी में साढ़े चार घंटे एएसआई सर्वे बनारस में पहली बार विवादित स्थल पर हुआ है. हालांकि सामान्य तौर पर सारनाथ उत्खनित स्थल व थाई मंदिर परिक्षेत्र में यह हो चुका है. इससे पूर्व अयोध्या में राम मंदिर विवाद के दौरान सर्वे किया गया था. इससे विवाद सुलझाने में अदालत को काफी मदद मिली थी. अब ज्ञानवापी ढांचे की उम्र व प्रकृति की वास्तविक जानकारी लगाई जा सकेगी.
स्वयंभू आदिविश्वेश्वर केस में वादमित्र विजय शंकर रस्तोगी बताते हैं कि ज्ञानवापी मुकदमे में सर्वे को लेकर कई बार आदेश-निर्देश हुए. पहली बार 1936 में ज्ञानवापी परिसर की जमीन के स्वामित्व को लेकर दो मुसलमानों का विवाद कोर्ट पहुंचा था. तब सब जज बनारस ने मौके पर जाकर मुआयना किया. दूसरी बार अप्रैल 2021 में एफटीसी कोर्ट ने भी एएसआई सर्वेक्षण का आदेश दिया था, जो हाईकोर्ट में विचाराधीन है. तीसरी बार शृंगार गौरी के पूजा अधिकार मामले में सिविल जज सीनियर डिवीजन की अदालत ने कोर्ट कमीशन सर्वे कराया था. चौथी बार जिला जज के आदेश के खिलाफ हाईकोर्ट ने वुजूखाने में मिली शिवलिंग की आकृति की कार्बन डेटिंग के लिए सर्वे का आदेश दिया था. जिसे बाद में सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई. यह भी मामला सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन है. यह पांचवां मौका है जब किसी अदालत ने एएसआई सर्वे का आदेश दिया. उन्होंने दावा किया कि एएसआई सर्वेक्षण ज्ञानवापी मुकदमे में मील का पत्थर साबित होगा. इससे न केवल मंदिर व मस्जिद का विवाद तय होगा. बल्कि आदिविश्वेश्वर के प्रारब्धस्थल की भी पहचान हो सकेगी.
वरिष्ठ अधिवक्ता विजय शंकर ने बताया कि राममंदिर विवाद मामले में मौके पर जीडीआर तकनीक से ज्यादा ट्रेंच पद्धति से सर्वे हुआ था. चूंकि राममंदिर स्थल खुले में था. यहां आसानी से ट्रेंच किया जा सकता था. वहीं पुराना ढांचा का अस्तित्व जमीन से ऊपर नहीं बचा था. लिहाजा यहां ट्रेंच पद्धति से ही खुदाई कराई गई थी. लेकिन ज्ञानवापी में जीपीआर तकनीक से सर्वे ज्यादा सफल होगा. चूंकि जीपीआर तकनीक जमीन के नीचे सर्वे करने में काफी सक्षम है. इसलिए इसकी गुणवत्ता बेहतर और समय भी कम लगता है.