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मथुरा न्यूज़: मथुरा-नगर निगम महापौर की सीट को अनारक्षित होने के बाद नगर में राजनैतिक पारा हाई हो गया. सर्वण बहुल इस सीट पर एक बार फिर सर्वण राजनीति गर्मा गयी है. कानूनी अड़चनों में फंसने से पहले शासन द्वारा जारी आरक्षण सूची में मथुरा नगर निगम महापौर की सीट ओबीसी महिला के लिए आरक्षित कर दी गयी थी, जिससे सर्वण दावेदारों में मायूसी थी.
बताते चलें कि मथुरा-वृंदावन नगर निगम सर्वण बहुल है. पिछले चुनाव में यह सीट एससी पुरुष के लिए आरक्षित कर दी गयी थी. यह चुनाव भाजपा के डा. मुकेश आर्य बंधु ने जीता था. उसके बाद आसन्न निकाय चुनाव की आरक्षण सूची में महापौर की सीट को ओबीसी महिला के लिए आरक्षित कर दिया गया. इससे महानगर में ओबीसी राजनीति गर्मा गयी थी. एक नहीं कई महिला दावेदार सामने आ गयी थीं, जिनमें अधिकांश दावेदार किसी न किसी नेता या समाज के प्रतिष्ठित व्यक्ति की पत्नी या पुत्र वधु के रूप में थीं. ओबीसी महिला के लिए आरक्षित होने की वजह से सर्वण दावेदारों में भारी मायूसी थी. इसके लिए तमाम दावेदारों ने लखनऊ-दिल्ली तक चक्कर भी लगाए थे. इसके बाद मामला न्यायालय में चला गया, जिसके चलते आयोग का गठन हुआ. आयोग की संस्तुति के आधार पर शासन ने नयी आरक्षण सूची जारी कर दी. इस सूची में मथुरा-वृंदावन नगर निगम महापौर की सीट को अनारक्षित श्रेणी में रखा गया. यह खबर जैसे ही फैली तो सर्वण दावेदारों में खुशी की लहर दौड़ पड़ी. खासकर, ब्राह्मण और वैश्य दावेदारों ने तो टिकट के लिए लखनऊ-दिल्ली तक फोन तक खटखटाने शुरु कर दिए. उधर, ओबीसी महिला के दावेदारों में इस सीट के अनारक्षित होने से भारी मायूसी भी है.
वैसे भी पिछले करीब एक दशक के जनपद के राजनैतिक परिदृश्य पर गौर करें तो यहां सांसद के रूप में जहां हेमा मालिनी चुनी जाती रही हैं, वहीं मथुरा-वृंदावन सीट पर श्रीकांत शर्मा दो बार चुने जा चुके हैं. महापौर की सीट भी आरक्षित हो गयी थी. इसके चलते महानगर के भाजपाई व गैर भाजपाई सर्वण नेताओं को अपना राजनैतिक भविष्य संकट में नजर आने लगा था, जबकि कई नेताओं को लगने लगा था कि अब वे भविष्य में उम्र की अधिकता की वजह से किसी भी चुनाव के लिए दावेदारी करने लायक नहीं रह जाएंगे. पंरतु, अब ऐसे सर्वण नेताओं में महापौर सीट का अनारक्षित होना एक नयी ऊर्जा और उम्मीदों का संचार कर गया है. महानगर में सबसे ज्यादा संख्या में ब्रा’ण व वैश्य मतदाता हैं. यही वजह है कि मथुरा हो या वृंदावन. नगर पालिका के समय से ही यहां अधिकतर ब्राह्मण व वैश्य चेयरमैन ही चुनाव जीतते रहे थे. महानगर के 70 वार्डों वाले मथुरा नगर निगम का यह दूसरा चुनाव होगा. वोटरों की संख्या की दृष्टि से देखा जाए तो यह नगर निगम का चुनाव मथुरा-वृंदावन विधानसभा सीट से भी ज्यादा महत्वपूर्ण माना जा रहा है. भाजपा ही नहीं कांग्रेस, रालोद, सपा और बसपा भी सर्वण सीट होने के बाद पूरी दमखम से चुनाव में अपने प्रत्याशी उतार सकते हैं. ये राजनैतिक दल नगर निगम के इस चुनाव को वर्ष 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव की दृष्टि से भी बेहद महत्वपूर्ण मान रहे हैं.