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नगर आयुक्त की कार्यशैली के साथ भूमिका पर भी उठ रहे सवाल
मेरठ निगम न्यूज़: नगर निगम में मेयर सुनीता वर्मा और नगर आयुक्त अमित पाल शर्मा के बीच नगर आयुक्त की स्वच्छद्ध कार्यप्रणाली के बढ़ते 'रार' बढ़ती जा रही है। मेयर ने नगरायुक्त को एक और चिट्ठी लिखी हैं, जिसमें कई अनियमिताताओं का उल्लेख पत्र में किया हैं। इस पत्र में स्पष्ट किया है कि 60 कर्मचारियों की आउट सोर्सिंग में तैनाती कर दी गई, जिसको लेकर नगर आयुक्त की कार्यशैली के साथ उनकी भूमिका पर भी सवाल उठ रहे हैं।
बड़ा सवाल यह है कि सदन की बिना अनुमति के नगर आयुक्त ने 60 कर्मचारी आउटसोर्सिंग पर कैसे तैनात कर दिये? इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि एक कर्मचारी की 60 हजार रुपये वेतन आउटसोर्सिंग पर नगर आयुक्त ने स्वीकृत कर रखे हैं। क्योंकि ये कर्मचारी उनके एक चहेते क्लर्क का पुत्र जो ठहरा। अब इसमें नियम टूट रहे हैं तो टूटे, नगरायुक्त पर क्या फर्क पड़ता हैं। एक तरफ तो नगर निगम में सफाई कर्मचारियों की वेतन वृद्धि को लेकर नगर आयुक्त ना नूकर कर रहे हैं, वहीं दूसरी ओर एक कर्मचारी की 60 हजार रुपये वेतन कैसे दी जा सकती है? इस तरह से भारी भरकम धनराशि आउट सोर्सिंग कर्मचारियों पर कैसे खर्च की जा रही है, लेकिन बिना सदन की अनुमति के। यही वजह है कि नगर आयुक्त की भूमिका पर भी सवाल उठ रहे हैं। नगर निगम में पर्याप्त मात्रा में कर्मचारी हैं, फिर आउट सोर्सिंग के 60 कर्मचारियों को तैनाती क्यों दी गई? यदि तैनाती दी जानी थी तो फिर आउट सोर्सिंग कर्मचारियों की भर्ती को सदन में क्यों नहीं रखा गया? हो न हो इसमें बड़ा घालमेल किया जा रहा हैं। कहीं न कहीं, इसमें नगरायुक्त की भूमिका पर सवाल उठना लाजिमी हैं। नगर निगम के स्थाई कर्मचारियों पर नगरायुक्त भरोसा नहीं कर पा रहे हैं, यहीं वजह है कि आउट सोर्सिंग पर कर्मचारियों की भर्ती कर दी गई।
नगर निगम में पहले भी संविदा पर कर्मचारियों की भर्ती के मामले की जांच सीबीसीआईडी और सीबीआई से चल रही हैं, जिसकी शिकायत बीके गुप्ता ने की थी। उसमें भी 23 कर्मचारियों को गलत तरीके से नगर निगम में स्थाई कर्मचारी बना दिया गया, जिसका मामला जांच के दायरे में हैं। उसकी जांच भी अभी पूरी नहीं हो पाई हैं। अब 60 कर्मचारियों के आउट सोर्सिंग का नया मामला सामने आ गया हैं। इस तरह से नगर आयुक्त बाहरी लोगों पर भरोसा कर काम ले रहे हैं, जबकि नियम यह कहता है कि सदन की अनुमति लेकर ही आउटसोर्सिंग पर कर्मचारियों को रखा जा सकता है। इस तरह से वित्तीय अनियमितताएं सामने आ रही है। इसका आरोप मेयर ने नगर आयुक्त को लिखे पत्र में साफ कर दिया है। मेयर ने 60 आउट सोर्सिंग कर्मचारियों की भर्ती के मामले में नगरायुक्त को कटघरे में खड़ा करने की कोशिश की हैं।
यही नहीं, एसबीएम टीम लीडर दर्शाकर लगभग एक ही व्यक्ति मयंक मोहन को करीब 60 हजार रुपये प्रतिमाह वेतन निगम से दिया जा रहा है, जो बड़ी आर्थिक अनियमितता है। इसमें अवश्य ही बड़ा घालमेल हैं। इतनी बड़ी धनराशि एक कर्मचारी को वेतन देने पर खर्च की जा रही हैं। बड़ा सवाल यह भी है कि सदन की बिना बिना अनुमति के 60 कर्मचारियों को आउटसोर्सिंग से रख दिया गया और सदन में यह मुद्दा रखा तक नहीं गया। एक भी कर्मचारी की यदि नगर निगम में तैनाती की जाती है तो उसकी सदन से अनुमति लेना अनिवार्य होता है, लेकिन यहां व्यापक स्तर पर अनियमितता बरती जा रही है, क्या इसके लिए जिम्मेदारों पर कार्रवाई की जाएगी?