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Allahabad: आयोग पीसीएस प्री 41 में ही कराने का निर्णय
इलाहाबाद: पीसीएस 2024 प्रारंभिक परीक्षा में कुल पंजीकृत 576154 अभ्यर्थियों के लिए एक दिन में परीक्षा आयोजित करने के लिए 19 जून 2024 के शासनादेश के अनुरूप सभी 75 जिलों से 1758 परीक्षा केंद्रों की आवश्यकता थी. इसके सापेक्ष विश्वविद्यालयों, महाविद्यालयों, इंजीनियरिंग कॉलेजों, मेडिकल कॉलेजों आदि को सम्मिलित करते हुए भी 435074 अभ्यर्थियों की क्षमता के 978 केंद्र ही मिल सके थे.
ऐसे में एक दिन में परीक्षा होना संभव नहीं दिखा तो आयोग ने 41 जिलों में ही परीक्षा कराने का निर्णय लिया है. इसके पीछे दो कारण है. एक तो पीसीएस के विज्ञापन में भी 41 जिलों में ही परीक्षा कराने की बात कही गई थी दूसरा कम जिलों में परीक्षा कराने से प्रश्नपत्र की निगरानी आसान होगी. चूंकि आरओ/ एआरओ 2023 की 11 फरवरी को आयोजित प्रारंभिक परीक्षा का पेपरलीक होने के कारण पहले ही आयोग की किरकिरी हो चुकी है इसलिए अधिकारी आगे कोई रिस्क नहीं लेना चाह रहे हैं.
लाखों श्रद्धालुओं को स्नान करा सकते हैं तो परीक्षा क्यों नहीं: प्रतियोगी छात्रों का तर्क है कि सरकार जब कुम्भ मेले में दस लाख कल्पवासियों के रहने और पांच लाख श्रद्धालुओं के रोजाना संगम में डुबकी लगाने की व्यवस्था एक जिले प्रयागराज में कर सकती है तो दस लाख परीक्षार्थियों की प्रदेश के सभी 75 जिलों में परीक्षा क्यों नहीं कराई जा सकती. जिला मुख्यालय के बड़े-बड़े हाईप्रोफाइल प्राइवेट स्कूल जिसमें वहां के डीएम, एसडीएम, एसपी, एसएसपी, बीएसए, डीआईओएस आदि के बच्चे पढ़ते हैं में भी परीक्षा केंद्र बनाइए. यदि इनके स्कूल से पेपरआउट हो तो इनके मालिकों के घर बुलडोज़र से ढहा दीजिए. इन परीक्षाओं के पंजीकृत लाखों अभ्यर्थियों में से गिनती के छात्र भी मानकीकरण का समर्थन नहीं कर रहे. सरकार ने ही 19 जून के आदेश से प्रावधान बनाया है तो अधिकांश नहीं बल्कि सभी छात्रों की मांग पर संशोधन भी सरकार कर दे. प्रतियोगी छात्रों का सवाल है कि नियम समाज के कल्याण और सुविधा को ध्यान में रखकर बनाए जाते हैं या प्रशासनिक अक्षमता को छिपाने के लिए.
छात्रों का तर्क, क्रिकेट के डकवर्थ लुईस जैसा है मानकीकरण: सम्मिलित राज्य/प्रवर अधीनस्थ सेवा (पीसीएस) 2024 प्रारंभिक परीक्षा और समीक्षा अधिकारी (आरओ)/सहायक समीक्षा अधिकारी (एआरओ) 2023 प्रारंभिक परीक्षा दो दिन में ही कराने के उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग के निर्णय को प्रतियोगी छात्र स्वीकार करने को तैयार नहीं है. छात्रों का तर्क है कि दो दिन परीक्षा कराने पर नॉर्मलाइजेशन (मानकीकरण) करना होगा, जिसका नियम क्रिकेट के डकवर्थ लुईस जैसा है. इसमें सफल और असफल को कभी समझ में ही नहीं आएगा कि उसकी स़फलता-अस़फलता का आधार क्या है. छात्रों का कहना है कि आयोग के विशेषज्ञ आज तक कभी भी पीसीएस के 150 निर्विवाद प्रश्न नहीं बना सके हैं. हर बार आठ से दस प्रश्न तो गलत और विवादित रहते ही हैं. ऐसे में किसी एक परीक्षा को दो-तीन शिफ्ट में कराने पर हर शिफ्ट में किसी में पांच तो किसी में आठ प्रश्न गलत छपने ही हैं. इसके कारण मानकीकरण का फ्लॉप होना तय है और प्रतियोगी भी कोर्ट जाएंगे.