उत्तर प्रदेश

जाट राजनीति की तीनों धुरियां थी लामबंद, भाजपा को नहीं आयी हवा

Admin Delhi 1
9 Dec 2022 11:09 AM GMT
जाट राजनीति की तीनों धुरियां थी लामबंद, भाजपा को नहीं आयी हवा
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मुजफ्फरनगर न्यूज़: जिले की जाट राजनीति में हमेशा तीन धुरियां रही हैं। जब-जब दो परिवार तीसरी धुरी के खिलाफ हुए हैं, उसे नुकसान हुआ। लेकिन इस चुनाव में तीनों ही परिवार एकजुट थे, तो सभी ने मिलकर सत्ता पक्ष को मात दे दी। यहां तक कि भाजपा को संगठन से लेकर सरकार तक के बड़े पदों पर जाट नेताओं को आसीन करना भी काम नहीं आया। 40 से ज्यादा मंत्री विधायक व सांसदों की फौज भी जाट समाज का रूख नहीं मोड़ पायी। पिछले तीन दशकों से जिले में भाकियू का स्थानीय राजनीति में खासा दखल रहा है। खासतौर से जाट बेल्ट में जिसे भी भाकियू का मूक या खुला समर्थन रहा, उसे ही जीत मिलती आयी है। इस बार खतौली सीट पर भाकियू ने रालोद गठबंधन प्रत्याशी मदन भैया को खुला समर्थन दिया। टिकट होने के तुरन्त बाद मदन भैया भाकियू की राजधानी पहुंचकर आर्शीवाद ले आये थे। जीतने के तुरन्त बाद भी मदन ने भाकियू चीफ नरेश टिकैत से आर्शीवाद लिया। टिकैत परिवार के साथ-साथ दूसरी धुरी जयंत चौधरी व तीसरी धुरी के रूप में मलिक परिवार जाना जाता है। हमेशा से ही दो धुरियां एक रही हैं। वर्ष 2007 के चुनाव में टिकैत परिवार ने अजित की पार्टी की मुखालफत की, इसके साथ ही राकेश टिकैत खतौली सीट पर रालोद प्रत्याशी राजपाल बालियान के सामने चुनाव लड़ गये।

नतीजा यह निकला कि राजपाल बालियान को हार का सामना करना पड़ा और यहां पहली बार हाथी की चिंघाड़ दूर तक सुनाई दी। यहां बसपा के योगराज सिंह चुनाव जीत गये थे। इसके अलावा भी कई ऐसे मामले में जिसमें तीनों धुरियां अलग-अलग चलती आयी। ऐसा पहली बार हुआ है कि तीनों धुरियां एक प्लेटफार्म पर दिखाई दी, जिसने रालोद प्रत्याशी मदन भैया के लिए संजीवनी का काम किया। उनके लिए भाकियू चीफ नरेश टिकैत ने खुली अपील की, तो वहीं जयंत चौधरी ने 40 से अधिक गांवों में पैदल घूमकर उनके लिए वोट मांगे। वोटर पर्चियों का वितरण किया। अपने पुराने वोट बैंक को जिन्दा करते हुए उन्होंने वायदा भी किया कि यदि उनकी पार्टी को सपोर्ट मिलेगा, तो वह पहले की तरह लगातार क्षेत्र में आते रहेंगे। इसी तरह तीसरी धुरी मलिक परिवार के हरेन्द्र मलिक व पंकज मलिक ने लगातार चुनावी सभाएं करके जाटों को एकजुट रखा। नतीजा यह हुआ कि यहां भाजपा को करारी हार का सामना करना पड़ा।

भाजपा के दिग्गज जाट नेताओं की नहीं बची लाज: जाट वोटों को साधने के लिए भाजपा ने अपनी पार्टी के जाट दिग्गज नेताओं को मैदान में उतारा था। भाजपा प्रदेश अध्यक्ष भूपेन्द्र चैधरी से लेकर केन्द्रीय राज्यमंत्री डा. संजीव बालियान, वेस्ट यूपी अध्यक्ष मोहित बेनीवाल, जिला पंचायत अध्यक्ष डा. वीरपाल निर्वाल समेत सभी छोटे-बड़े जाट नेताओं को खतौली क्षेत्र में रहकर जाटों का मत भाजपा प्रत्याशी के पक्ष में लामबंद करने के लिए भाजपा हाईकमान ने लगाया था, वहीं विपक्ष की कमान खुद जयंत चैधरी ने संभाल रखी थी। उनके साथ विधान मंडल दल के नेता राजपाल बालियान व विधायक पंकज मलिक लगातार जाटों की नब्ज टटोल रहे थे। चुनाव के अन्तिम दिन तक भी जाटों की लामबंदी हुई। देर रात्रि में जाटों के गांवों में पंचायतों का दौर चला और अंत में निर्णय हुआ कि जाट गठबंधन प्रत्याशी के पक्ष में मतदान करेंगे और अपने चैधरी की चैधराहट को बरकरार रखेंगे।

त्यागी समाज की नाराजगी भी पड़ी भारी: एक ओर जहां जाट, गुर्जर, दलित व मुस्लिम गठबंधन के पक्ष में लामबंद हो रहे थे, वहीं त्यागी समाज की भाजपा से नाराजगी भी उनके लिए घातक सिद्ध हुई। त्यागी समाज के नेता श्रीकांत त्यागी ने स्वयं अपने समाज की बैठकें कर भाजपा का विरोध करने का आह्वान किया था, जिसका परिणाम मतगणना के दिन देखने को मिला। त्यागी बाहुल्य गांवों में भी गठबंधन प्रत्याशी बढ़त बनाये रहा।

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