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बस्ती: ज्ञानवापी मामले में ची़फ जस्टिस ने अपने 16 पेज के आदेश में मसाजिद कमेटी की ओर से की गई सभी आपत्तियों को खारिज कर दिया.
कोर्ट ने याची की उस दलील को भी नहीं माना जिसमें कहा गया कि न्यायालय द्वारा स्थल निरीक्षण या कमिशन केवल उन मामलों में किया जाता है, जहां पक्षकारों के साक्ष्य के आधार पर न्यायालय किसी भी तरह से उचित निष्कर्ष पर नहीं पहुंच पा रहा है या जहां न्यायालय को लगता है कि साक्ष्य में कुछ अस्पष्टता है जिसे स्थल निरीक्षण या कमिश्नर भेज कर स्पष्ट किया जा सकता है. कोर्ट ने याची की एक और महत्वपूर्ण आपत्ति को भी खारिज कर दिया कि किसी भी पक्ष के साक्ष्य के बोझ का निर्वहन करना अदालतों का काम नहीं है या सीपीसी के आदेश 26 नियम 10-ए के प्रावधानों को संबंधित पक्षों द्वारा अपने पक्ष में साक्ष्य बनाने के लिए एक उपकरण के रूप में उपयोग करने की अनुमति नहीं दी जा सकती है.
एकत्र साक्ष्य सभी पक्षों के लिए होंगे कोर्ट ने कहा कि जहां किसी मुकदमे में उठने वाले किसी भी प्रश्न में कोई वैज्ञानिक जांच शामिल होती है, जिसे न्यायालय की राय में, न्यायालय के समक्ष सुविधाजनक रूप से संचालित नहीं किया जा सकता है, न्यायालय यदि इसे आवश्यक या समीचीन समझता है तो ऐसा कर सकता है. कोर्ट ने कमेटी इस आशंका को भी खारिज कर दिया कि यदि वैज्ञानिक जांच के दौरान कोई खुदाई की जाती है तो संबंधित संरचना को नुकसान होगा. इस संबंध में कोर्ट ने एएसआई अधिकारी की दलील का हवाला देते हुए कहा कि संपत्ति का कोई विध्वंस नहीं होगा, न ही किसी मौजूदा संरचना में बदलाव किया जाएगा. कोर्ट ने इस बात पर भी जोर दिया कि वैज्ञानिक जांच का अन्य साक्ष्यों से कोई लेना-देना नहीं है और जो भी साक्ष्य एकत्र किए जाएंगे, वे सभी पक्षों के लिए होंगे. न कि केवल वादी के लिए. कोर्ट ने जिला अदालत वाराणसी को इस विवाद में लंबित दीवानी मुकदमे का शीघ्र निस्तारण करने का हर संभव प्रयास करने का निर्देश भी दिया है.