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किठौर: होली से पहले महंगाई ने अपना रंग दिखाते हुए जहां बिजली और गैस के दामों में आग लगाई। वहीं, अन्नदाता मंदी का शिकार हो गया। मौसम की मार ने मटर तो अधिक बुवाई ने आलू की हालत खराब कर रखी है। दोनों फसलों से मुनाफे की आस लगाए बैठा किसान मंदी के दौर में औंधे मुंह पड़ा है। फसलों की लागत वापसी के भी लाले हैं। जिससे किसान अगली फसल बुवाई के लिए पैसा और हिम्मत नहीं जुटा पा रहा है। किसान की दुर्गति का प्रभाव खाद, उर्वरक और पेस्टीसाइड्स कारोबार पर भी साफ दिख रहा है।
गन्ने के साथ मटर और आलू भी किसान की नकदी फसलों में शुमार है। जिस दौर में शुगर मिलें गन्ना भुगतान से कतराती हैं तब मटर व आलू की फसलें किसान को आर्थिक ऊर्जा देकर अबाध्य गति से काम करने का हौंसला बख्शती हैं, लेकिन इस बार बेवक्त बढ़े तापमान ने मटर की फसल को बिगाड़ दिया। गर्मी से एकसाथ तैयार हुई अगेती-पछेती मटर का उत्पादन एक तिहाई और दाम आधा रह गया।
यही स्थिति आलू की हुई अधिक बुवाई से बाजार में आवक बढ़ी और दाम एक तिहाई रह गया। मुनाफे की आस में लगाई गईं आलू और मटर की फसलें मंदी का शिकार हुईं और किसान कंगाली के दलदल में धंस गया। हालात यह हैं कि आर्थिक तंगी से जूझता किसान अगली फसल बुवाई की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा है।
असीलपुर निवासी अमीरुल्ला ने बताया कि उसके पास दो एकड़ मटर थी। सामान्य मौसम में मटर का उत्पादन 60-70 कुंतल प्रति एकड़ होता है, लेकिन इस बार बेवक्त बढ़े तापमान से मटर उत्पादन 21-23 कुंतल प्रति एकड़ हो रहा है। अगेती-पछेती मटर एकसाथ तैयार होने से बाजार में आवक बढ़ गई।
जिससे रेट भी आधा यानि 11-12 रुपये किग्रा रह गया। बताया कि मुनाफा तो दूर लागत भी वापस नहीं आई। मटर घाटे का सौदा रहा, लेकिन खाद, उर्वरक, पेस्टीसाइड्स के साथ बिजली और गैस के दामों में मंहगाई की आग लग रही है। घरेलु गैस सिलेंडर 50 रुपए मंहगा हो गया है।
किसान मुन्ने ने बताया कि उसने दो एकड़ आलू लगाया था। जिसमें एक लाख रुपये की लागत आई। 216 कुंतल आलू पैदा हुआ है। 500 रुपये कुंतल आलू बेचा गया है। इस तरह मेहनत भी हाथ नहीं लगी। अब खेती से मन हट रहा है। अगली फसल बोने की हिम्मत नहीं हो रही। किसान के पास माल सस्ता और व्यापारी के गोदाम में पहुंचते ही मंहगा हो जाता है। गैस, बिजली की मुल्यवृद्धि कर दी। खाद, उर्वरक, पेस्टीसाइड्स तमाम प्रोडक्ट मंहगे हैं।
ऐसे में जीवनयापन बड़ा सवाल है। अहलावत किसान टेÑडिंग कंपनी किठौर के स्वामी संदीप अहलावत का कहना है कि मौसम की मार से घाटे में पहुंचा किसान इस बार खाद, उर्वरक और पेस्टीसाइड्स की खरीदारी से बच रहा है। सेल्स रिप्रजेंटेटिव अपने टारगेट पूरे नहीं कर पा रहे हैं और दुकानदार हाथ पर हाथ रखे बैठे हैं।
तरबियतपुर निवासी उमाभारती का कहना है कि किसान के माल के अलावा चौतरफा मंहगाई है। मटर और आलू की फसलें तो मंदी में लुट रहीं हैं। गैस, बिजली व घरेलु प्रयोग के अन्य प्रोडक्ट त्योहारी सीजन महंगाई का रंग दिखाकर होली के रंग को फींका कर रहे हैं।