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अलीगढ़: सन 1741 में मुगलों के ज़माने में बनी जिला जेल में जेल रेडियो की शुरुआत हुई थी. उस समय किसी ने नहीं सोचा होगा कि ये एफएम स्टेशन बंदियों की आवाज बन जाएगा. जेल रेडियो को पांच साल हो गए. जेल रेडियो एक सप्ताह के भीतर दो की बजाय तीन घंटे प्रसारित होने लगेगा. अभी तक इसका दो घंटे प्रसारण होता था.
रेडियो जॉकी बनने के लिए महिला एवं पुरुष बंदियों ने दिलचस्पी दिखाई है. इसकी सूची तैयार की गई है. इसमें दस बंदियों को चयनित किया गया है. इसमें एक बंदी स्नातकोत्तर और एक बंदी एलएलबी है. आगरा जिला जेल एफएम रेडियो बंदियों को तनाव से दूर करने में कारगार हुआ है. महिला बंदियों के सावन में कजरी के गीतों का भी यह गवाह बनेगा.
जेल में एफएम का प्रसारण दोपहर दो से शाम चार बजे तक होता है. पांच रेडियो जॉकी लगे हुए हैं. 31 2019 को जिला जेल में एफएम रेडियो स्टेशन का शुभारंभ तत्कालीन एसएसपी बबलू कुमार और तिनका-तिनका संस्था की संस्थापिका वर्तिका नंदा, जेल अधीक्षक शशिकांत शर्मा ने किया था.
उस समय आइआइएम बेंगलुरु से स्नातक महिला बंदी और स्नातकोत्तर पुरुष बंदी रेडियो जॉकी बने थे. रेडियो जॉकी ने बंदियों को उनकी पसंद के गाने सुनाने के साथ ही उनके तनाव को भी दूर किया है.
संस्थापिका वर्तिका नंदा ने बताया कि 2019 से 2020 के बीच उन्होंने जेल के बंदियों की संवाद की जरूरतों को लेकर एक शोध किया. जिसके तहत इस जेल रेडियो का जन्म हुआ. बाद में तिनका-तिनका में जेल रेडियो की स्थापना हरियाणा की जेलों और उत्तराखंड की जेल देहरादून में हुआ था. उन्होंने बताया कि जेल रेडियो की सफलता को देखते हुए वर्ष 2021 में तिनका जेल रेडियो पॉडकास्ट शुरू किए जो आज भी भारत की जेलों पर इकलौते पॉडकास्ट हैं.
इनमें कुछ अंक आगरा जेल रेडियो पर केंद्रित रहे. वहीं जेल अधीक्षक हरिओम शर्मा का प्रयास काफी रंग लाया और उन्होंने जेल रेडियो पर कानूनी सलाह और स्वास्थ्य संबंधी कार्यक्रमों को विशेष स्थान दिया है. इससे बंदियों को विभिन्न विधिक प्रावधानों की जानकारी मिल रही है.