उत्तर प्रदेश

आगरा : वृक्षारोपण को बनाएं जीवन का मकसद, जीवन के साथ कमाई का जरिया भी बन सकता है, जानिए कैसे

Bhumika Sahu
29 July 2022 5:22 AM GMT
आगरा : वृक्षारोपण को बनाएं जीवन का मकसद, जीवन के साथ कमाई का जरिया भी बन सकता है, जानिए कैसे
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वृक्षारोपण को बनाएं जीवन का मकसद

आगरा. कहते हैं कि जल ही जीवन है. ये तो ही लेकिन आज पेड़ भी जीवन है. अगर पेड़ नहीं तो कुछ नहीं. पेड़ की कटान को रोकना होगा तो हर दिन हमें ज्यादा से ज्यादा पेड़ लगाकर पर्यावरण को बचाना भी होगा. अगर पर्यावरण नष्ट हो गया तो मनुष्य ही नहीं जीव-जंतु भी नहीं रह सकेंगे. इसलिए लोगों को इसके प्रति जागरूक करना बेहद जरूरी है. इसी मुहिम को लेकर काम कर रही है आगरा के सेंट जॉन्स कॉलेज की रोवर्स रेंजर्स इकाई.

सेंट जॉन्स कॉलेज की रोवर्स रेंजर्स इकाई ने विश्व प्रकृति सरक्षण दिवस के उपलक्ष्य में ग्राम लोहकरेरा के बीएचएस स्कूल के छात्र-छात्राओं के साथ मिलकर जापानी तकनीनिक पर आधारित सीड बॉल्स के माध्यम से बीजरोपण किया. इतना ही नहीं बच्चों को इस तकनीकी का प्रशिक्षण भी दिया गया. सीड बॉल्स जो कि एक जापानी तकनीकी पर आधारित है. इसके उपयोग से सबसे सरल एवं सस्ते तरीके से बीज अंकुरण प्रतिशत या जर्मिनेशन रेट बढ़ाया जा सकता है. जलवायु परिवर्तन को ध्यान में रखते हुए पेड़ो का महत्व अगली पीढ़ी तक पहुंचाना अति आवश्यक है, इसलिए परिजात संस्था और रोवर्स रेंजर्स ने मिलकर जागरूकता अभियान की शुरुआत की.
परिजात संस्था की अध्यक्ष डॉ अनुराधा चौहान ने सीड बॉल्स बनाने प्रशिक्षण दिया. इस कार्यक्रम का आयोजन रोवर्स रेंजर्स की अधिकारी डॉक्टर साक्षी वॉकर एवं बॉब गार्डनर के निर्देशन में हुआ जिसमे सीनियर रेंजरमेट अबीनी अशोक, सीनियर रेंजर नीधि गुप्ता, सहायक रेंजरमेट मनु, सहायक रोवरमेट नवनीत गुप्ता ने पूर्ण योगदान देकर इस कार्यक्रम को सफल बनाया. विशेष सहयोग प्रधानाध्यापक बंशीलाल वा ममता का रहा. रोवर्स रेंजर्स की अधिकारी डॉक्टर साक्षी वॉकर ने बताया कि एक बार बाग के लिए भूमि का चुनाव कर लेने पर उसमें लगाए जानेवाले पेड़ों की किस्मों का चुनाव करना शेष रह जाता है. इसके लिए कुछ बातों का ध्यान रखना चाहिए.
वृक्षारोपण की जानकारी लेने के बाद रोवर्स रेंजर्स की पदाधिकारियों के साथ खड़े छात्र-छात्राएं.
कुछ बातों का ध्यान रखना चाहिए
-पेड़ों की किस्में हमेशा भूमि के अनुसार ही चुनना चाहिए. कम उपजाऊ भूमि में कलमी आम नहीं लगाना चाहिए. ऐसे स्थान में अमरूद आदि कठोर किस्में ही लगानी चाहिए. इसी प्रकार थोड़ी रेत वाली और खराब जमीन में लिसोड़ाए बेर, आँवला आदि के पेड़ ही लगाए जा सकते हैं. पानी ठहरनेवाले स्थान में तुरमीले फल के पेड़, जैसे संतरा, माल्टा, नींबू आदि नहीं लगाना चाहिए, क्योंकि पानी में तुरसीले फल के पेड़ों की जड़ें गलकर खराब हो जाती हैं. ऐसी जगह अमरूद किसी हद तक लग सकता है. कंकड़वाली जमीन में आम नहीं लगाना चाहिए.
-भूमि को देखकर, इन सब बातों का ध्यान रखे बिना यदि फल के पेड़ों की किस्मों का चुनाव किया गया तो गलत किस्म के पेड़ लगने से हमेशा नुकसान होने की संभावना है.
-किस्मों का चुनाव उस स्थान की जलवायु के अनुसार ही करना चाहिए. ठंढे प्रदेशों के पेड़ जैसे सेब, खूबानी, नाशपाती आदि यदि गरम मैदानी भाग में लगाए जाएं तो उनमें फल आने की आशा नहीं रखनी चाहिए. इसी प्रकार गमर जलवायुवाले फल, जैसे केला, पपीता आदि पहाड़ी ठंढे प्रदेशों में नहीं लग सकते. अधिक वर्षावाले स्थान में अंगूर नहीं लगता. इसी प्रकार भिन्न किस्म के फल के पेड़ भिन्न प्रकार की जलवायु चाहते हैं और फलों के पेड़ों की किस्म हमेशा वहाँ की जलवायु के अनुसार ही चुनना चाहिए.
- एक बात का और ध्यान रखना चाहिए की फल के पेड़ों की वे ही किसें लगाना लाभप्रद रहता है जिनके फलों की माँग बाजार में काफी हो और जिन किस्मों के फलों के दाम बाजार में अच्छे मिलने की उम्मीद हो. सस्ते रद्दी किस्म के फल के पेड़ लगाना लाभप्रद नहीं होता. किस्मों के चुनाव के लिए उद्यान विभाग या फिर किसी विशेषज्ञ से राय लेकर बाग लगाना ठीक रहेगा.


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