उत्तर प्रदेश

अडाणी ग्रुप कानपुर में बनाएगा टोड तोपों की सीरीज

Admin Delhi 1
5 Aug 2023 6:33 AM GMT
अडाणी ग्रुप कानपुर में बनाएगा टोड तोपों की सीरीज
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कानपूर: अचूक मारक क्षमता के लिए मशहूर टोड सीरीज की तोपों का उत्पादन कानपुर में होगा. अडाणी ग्रुप कानपुर डिफेंस कॉरिडोर में टोड सीरीज की 120 एमएम, 125 एमएम और 130 एमएम टोड फील्ड गन (तोप) की तीन फैक्टरियां लगाने जा रहा है. चौथे कारखाने में गोले-बारूद बनेंगे. निर्यात भी होगा. संबंधित उत्पादन के लिए ग्रुप ने आवेदन कर दिए हैं. कानपुर डिफेंस कॉरिडोर की कुल 217 हेक्टेयर जमीन में से 202 हेक्टेयर जमीन अडाणी ग्रुप को आवंटित है.

बुल्गारिया को निर्यात के लिए किया एग्रीमेंट यहां बनने वाली तोपें देश की सेना को दी जाएंगी. साथ ही निर्यात भी होगा. अडाणी ग्रुप ने यहां से निर्यात के लिए बुल्गारिया से एग्रीमेंट किया है. बुल्गारिया की एक एजेंसी को माल की आपूर्ति होगी. वहां से आसपास के देशों में भी एजेंसी के माध्यम से सैन्य हथियार भेजे जा सकते हैं.

डिफेंस कॉरिडोर के लिए 1000 एकड़ जमीन और ली जाएगी. इसमें से 500 एकड़ जमीन वर्तमान कॉरिडोर एरिया साढ़ में ही लेने का प्रस्ताव डीएम कानपुर की तरफ से शासन को भेज दिया गया है. ऐसा अन्य उद्योगपतियों की मांग पर किया गया है. अन्य उद्योगपतियों ने मांग की थी कि कॉरिडोर में उन्हें भी रक्षा से जुड़ी फैक्टरियां लगाने की अनुमति दी जाए.

टोड तोपों का इतिहास

टोड तोपों का इस्तेमाल वियतनाम युद्ध से लेकर रूस-युक्रेन युद्ध तक में हुआ. सबसे पहले इसका निर्माण सोवियत संघ ने 1950 के दशक में किया था. इसके डिजाइन में बदलाव होते रहे. पहली बार मास्को में मई दिवस परेड में खुले तौर पर इसे देखा गया था. इसने शुरुआत में 100 मिमी बीएस-3 फील्ड और एंटी टैंक गन को प्रतिस्थापित किया था.

यह है 130 एमएम टोड फील्ड गन.

सोवियत काल की ही टोड गन अपने देश में

भारतीय सेना के पास 130 एमएम गन की 1000 टोड गन हैं, जो 1968 में सोवियत संघ से मिली थीं. इसमें से 180 गन को 2008 में इजरायली फर्म सोल्टम द्वारा 155 कैलिबर तक बढ़ा दिया गया था. सोवियत काल की 300 तोपें रक्षा मंत्रालय ने 2018 को अपग्रेड करने के लिए आयुध निर्माणी बोर्ड को दो अरब रुपये का ठेका दिया है. अपने देश में आयुध निर्माणी बोर्ड ने ही 155 एमएम की गन बनाने के लिए नई डिजाइन तैयार की है.

25 देशों में हो रहा इस्तेमाल

इस तोप का 25 देशों में इस्तेमाल हो रहा है या होता रहा है. इसे चीन में टाइप 59 के रूप में निर्मित करने का लाइसेंस दिया गया है. इसे सोवियत अब रूसी सूची में 2ए36 जियाट्सिंट-बी और स्व-चालित 2एस5 जियाट्सिंट-एस द्वारा प्रतिस्थापित किया गया था. सोल्टम और आरडीएम टेक्नोलॉजी जैसी कई कंपनियों ने बंदूक के लिए अपग्रेड पैकेज पेश किए हैं. उदाहरण के लिए इनमें 45 कैलिबर 155 मिमी बंदूक का उन्नयन शामिल है.

ऐसी है 130 एमएम टोड फील्ड गन

● भार 7,700 किग्रा

● लंबाई 11.73 मीटर

● बैरलबोर 7.15 मीटर

● चौड़ाई 2.45 मीटर

● ऊंचाई 2.55 मीटर

फायर दर

● सामान्य स्थिति में 6 आरपीएम

● विस्फोट की स्थिति में 8 आरपीएम

● निरंतरता में 5 आरपीएम

● गोले की गति 930 मीटर प्रति सेकेंड

● अधिकतम फायरिंग रेंज- 27 किलोमीटर (बिना सहायता के)

● अधिकतम फायरिंग रेंज - 40 किलोमीटर (सहायता के बाद)

कानपुर समेत समूचे यूपी में विकास का माहौल वैभव

कंपनी सचिव संस्थान के अध्यक्ष वैभव अग्निहोत्री के अनुसार, मुंबई, दिल्ली के बाद उत्तर प्रदेश में सबसे ज्यादा कंपनियां खुल रही हैं. विकास का माहौल मिलने के बाद कंपनियों व निवेश करने वालों का विश्वास कानपुर व प्रदेश के प्रति बढ़ा है. सबसे खास निवेशकों को कम दर पर लोन की सुविधा, कर्मचारी बीमा में सरकार के योगदान में बढ़ोतरी जैसे कई फैसलों ने आकर्षित किया है.

इस तोप का इन युद्धों में हुआ इस्तेमाल

वियतनाम युद्ध, दक्षिण अफ्रीकी सीमा युद्ध, छह दिवसीय युद्ध, योम किप्पूर युद्ध, यूगांडा-तंजानिया युद्ध, ईरान-इराक युद्ध, प्रथम नागोर्नो-काराबाख युद्ध, योगोस्लाव युद्ध, यमनी गृहयुद्ध, नागोर्नो-काराबाख संघर्ष 2020, टाइग्रे युद्ध, इजरायल लेबनानी संघर्ष, रूस-यूक्रेन युद्ध.

डिफेंस कॉरिडोर में अडाणी ग्रुप द्वारा चार फैक्टरियां लगाने के लिए आवेदन आ चुके हैं. बाकी दो फैक्टरियां दूसरे ग्रुप की हैं. कॉरिडोर में रक्षा क्षेत्र से जुड़े जो उपकरण ग्रुप तैयार करेगा उसका निर्यात भी करेगा. -सुधीर श्रीवास्तव, उपायुक्त उद्योग

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