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बरेली न्यूज़: ताजनगरी के 90 फीसदी लोग व्यर्थ में एसिटिडी की दवाएं खा रहे हैं. जरा सा पेट में मरोड़, गैस बनी, सीने में दर्द हुआ, उल्टी होने पर दवा खा लेते हैं. जबकि इसकी कोई जरूरत नहीं है. बल्कि ज्यादा दवा खाने से ही एसिटिडी होती है. लोग मामूली दिक्कत को बीमारी बनाए बैठे हैं.
फतेहाबाद रोड स्थित निजी होटल में हील फाउंडेशन की कार्यशाला में डायबिटो कार्डियोलोजिस्ट लाइफ स्टाइल डिजीजस एंड स्टेम सेल थेरेपी डा. राजीव किशोर और फिजीशियन एंड कार्डियोलाजिस्ट डा. अरुण अग्रवाल ने एसिटिडी को बेहद मामूली दिक्कत बताया. डाक्टरों ने कहा कि सप्ताह में एक या दो बार एसिटिडी बनने पर चिंता की कोई बात नहीं है. दवाएं नहीं लेनी, बस दिनचर्या,खानपान में मामूली बदलाव करें.
रसोई में तत्काल करें बदलाव सफेद नमक में सोडियम की मात्रा अधिक होती है. सेंधा नमक का प्रयोग करें. गेहूं के आटे की जगह मल्टीग्रेंस जिसमें चना, जौ, बाजरा आदि मिला होता है. सफेद चीनी की जगह खांड और गुड़ का इस्तेमाल फायदेमंद रहेगा. सरसों का तेल प्रयोग करें.
अजीब चलन है. अधिकतर डाक्टर किसी भी बीमारी की दवाएं लिखते वक्त सुबह खाली पेट वाली दवा जरूर लिख देते हैं. नहीं लिखते तो मरीज खुद लिखवा लेते हैं. डा. अरुण अग्रवाल, फिजीशियन एंड कार्डियोलाजिस्ट
कई बार लोग एसिटिडी के दर्द को हार्ट अटैक समझ लेते हैं. एसिटिडी में बीचोंबीच ऊपरी हिस्से में दर्द होता है. खट्टी डकार आ सकती है.
डा. राजीव किशोर, डायबिटो कार्डियोलोजिस्ट एंड स्टेम सेल थेरेपिस्ट