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इलाहाबाद: चंद्रकिशोर और शैलेंद्र की तरह छोटा बघाड़ा की रामप्रिया रोड किनारे आधा दर्जन परिवार बेघर हो गए हैं. दो दर्जन से अधिक लोगों का कारोबार और रोजगार छिन गया. रेलवे अंडर ब्रिज बनाने के लिए मार्ग किनारे जिन मकानों में रात तक चहल-पहल थी, वहां सन्नाटा पसरा रहा. दशकों पहले सड़क किनारे बने मकान खंडहर बन गए. अगले दो दिन में और भी घर टूटेंगे.
उत्तर रेलवे ने भी मार्ग किनारे चिह्नित मकानों को तोड़ा. मकानों को तोड़ने के लिए दो जेसीबी लगाई गई थी. दूसरे दिन भी आरपीएफ की सुरक्षा में चिह्नित मकानों को ध्वस्त किया गया. टूटते मकानों को देखकर लोग दूसरे दिन भी गुस्से में थे, लेकिन बड़ी संख्या में आरपीएफ जवानों की तैनाती के कारण सभी मौन थे. रेलवे की टीम के तेवर देख दूसरे दिन कई लोगों ने अपना मकान खुद ही तोड़ना शुरू कर दिया.
तोड़फोड़ के बीच रेलवे की टीम और भी घरों का नापजोख कर रही है. ध्वस्तीकरण की जद में मार्ग से सटी गली का एक लॉज भी है. रेलवे की टीम लॉज की नापजोख करने गई तो वहां रहने वाले छात्रों ने खदेड़ दिया. नापजोख को लेकर और लोगों से भी झड़प होती रही. लोगों का कहना था कि पहले 20 फीट तक मकान तोड़ने की बात कही गई थी. अब 80 फीट तक नापजोख कर रहे हैं. रेलवे के एक इंजीनियर ने कहा कि जहां जितनी जरूरत है, वहां उसी हिसाब से घरों को तोड़ा जाएगा.
जिस घर को तोड़ा गया, वहीं 70 साल के चंद्र किशोर का जन्म हुआ. पिता भी इसी घर में रहे. अब चौथी पीढ़ी घर में रह रही थी. वो भी उजड़ रहा है. पता नहीं अब कहां रहेंगे.