उत्तर प्रदेश

आगरा के 35 फीसदी लोगों को लगा लिवर का रोग

Admin Delhi 1
21 April 2023 2:25 PM GMT
आगरा के 35 फीसदी लोगों को लगा लिवर का रोग
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आगरा न्यूज़: रोज शराब का जाम छलकाने वाले सावधान हो जाएं. नियमित शराब पीने वाले 65 प्रतिशत लोगों के लिवर खराब हो रहे हैं. यह एसएन मेडिकल कालेज के गैस्ट्रो एंट्रोलाजी विभाग में आने वाले मरीजों का ट्रेंड है. इन्हें किसी न किसी रूप में लीवर संबंधी बीमारियों ने जकड़ लिया है.

एसएन मेडिकल कालेज के गैस्ट्रो एंट्रोलाजी विभाग में आगरा और आसपास से आने वाले मरीजों के ट्रेंड पर अध्ययन किया जा रहा है. फौरी नतीजों के मुताबिक 30 से 35 प्रतिशत लोग किसी न किसी रूप में लिवर संबंधी बीमारियों से ग्रसित हैं. सिर्फ लिवर रोगों के ट्रेंड में सबसे बड़ा कारण नियमित शराब का सेवन आया है.

दूसरी नंबर पर वायरस से होने वाले लिवर रोग हैं. हेपेटाइटिस-बी और सी इनका कारण हैं. 20 से 25 प्रतिशत लोग रोगों की चपेट में आ रहे हैं. तीसरे नंबर पर 10 से 15 प्रतिशत मरीज फैटी लिवर के कारण बीमारियों के शिकंजे में हैं. सबसे अंत में आटो इम्यून बीमारियां लीवर संबंधी दिक्कतों का कारण बन रही हैं. अध्ययन में आगरा, मथुरा, मैनपुरी, एटा, फिरोजाबाद, शिकोहाबाद के मरीज शामिल थे.

बाहरी तरीकों से ठीक होते हैं 20 प्रतिशत सेल मान लीजिए किसी मरीज का लीवर 70 प्रतिशत तक खराब हो चुका है. ऐसे में इलाज और दवाइयों के सहारे उसके 20 प्रतिशत सेल ठीक किए जा सकते हैं. लेकिन बाकी सेल का ठीक होना मरीज की प्रतिरोधक क्षमता पर निर्भर है.

आयुर्वेद और होम्योपैथी में भी है इलाजआयुर्वेद में अखरोट, फैटी फिश, अंगूर में नारिंगिन, नारिनजेनिन एंटी आक्सीडेंट से बनी दवाएं दी जाती हैं. कई होम्योपैथिक दवाएं भी कारगर हैं.

शुगर, ब्लड प्रेशर और मोटापा भी बड़ा कारण

अनियंत्रित डायबिटीज, ब्लड प्रैशर और मोटापा भी लीवर रोगों का बड़ा कारण है. फास्ट फूड, तला और भुना खाना, पैक्ड फूड का इस्तेमाल करना, बाहर खाने की आदतें शामिल हैं. वजन पर काबू रखना जरूरी है.

सरकारी अस्पतालों में तीन माह का कोर्स

हेपेटाइटिस-बी और सी को रोकना बड़ी जरूरत है. बी के लिए टीका उपलब्ध है. जबकि सी के लिए तीन महीने का इलाज है. 20 से 30 हजार रुपए की दवाएं लगती हैं. सरकारी अस्पतालों में मुफ्त इलाज किया जाता है.

पांच से 10 साल तक चल सकता है जीवन

विशेषज्ञों के मुताबिक पेट में पानी, खून की उल्टी पर इलाज के बाद लगभग पांच साल तक जिंदा रहा जा सकता है. जिनमें ऐसी कोई दिक्कत नहीं हैं वे 10 साल तक चल सकते हैं. मगर नियमित इलाज कराना होगा.

पीलिया, खूनी उल्टी और दस्त होना खतरे की घंटी

लिवर संबंधी दिक्कतों को टालने के बाद पीलिया, खून की उल्टियां, मल के रास्ते खून आने लगता है. यानि लीवर गंभीर रूप से प्रभावित हो जाता है. यह खतरे की घंटी है. ऐसे में तत्काल विशेषज्ञ डाक्टरों से इलाज कराने की जरूरत है.

हम आगरा और आसपास से आने वाले मरीजों पर अध्ययन कर रहे हैं. इसमें विभिन्न कोणों को शामिल किया गया है. यह करीब दो साल में पूरा हो पाएगा. फौरी नतीजों में ट्रेंड के मुताबिक यहां सबसे बड़ा कारण शराब है. इसके बाद हेपेटाइटिस, फैटी लीवर, आटो इम्यून बीमारियां हैं. डा. राघव सिंघल, वरिष्ठ गैस्ट्रो एंट्रोलाजिस्ट, एसएनएमसी.

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