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प्रतापगढ़ न्यूज़: बच्चों में निकट दृष्टि दोष, जिसमें उन्हें दूर की वस्तुएं साफ नहीं दिखती हैं, को ही मायोपिया कहा जाता है. नेशनल प्रोग्राम फॉर कंट्रोल ऑफ ब्लाइंडनेस एंड विजुअल इंपेयरमेंट (एनपीसीबीवीआई) के सर्वे में बेल्हा के 13 फीसदी बच्चे मायोपिया से पीड़ित पाए गए हैं.
मेडिकल कॉलेज में नेत्र परीक्षण अधिकारी पुण्यश्लोक पांडेय ने बताया कि मायोपिया में आंख की पुतली का आकार बढ़ने से प्रतिबिंब थोड़ा आगे बनता है. इससे दूर की वस्तुएं स्पष्ट नहीं दिख पातीं. हालांकि नजदीक की वस्तुएं देखने में कोई समस्या नहीं आती. बच्चों की आंखें व शरीर विकसित हो रहे होते हैं, इसलिए मायोपिया की समस्या आसानी से उन्हें जकड़ लेती है. यदि मायोपिया की समस्या बहुत बढ़ जाती है तो ग्लूकोमा का खतरा बढ़ जाता है. जो अंतत मरीज को अंधता की ओर ले जाता है. हालांकि समय रहते उपचार शुरू हो तो इसे नियंत्रित किया जा सकता है.
मायोपिया के लक्षण:
1. दूर की वस्तु साफ न दिखाई देना.
2. बार-बार आंखें झपकाना.
3. आंख से पानी आना.
4. क्लास रूम में ब्लैकबोर्ड ठीक से दिखाई न देना.
सावधानी ही ग्लूकोमा से बचाव:
जिले का स्वास्थ्य महकमा 12 से 18 मार्च तक विश्व ग्लूकोमा सप्ताह मना रहा है. इसके तहत लोगों को बताया जाएगा कि बचाव व सावधानी ही उपचार है. मेडिकल कॉलेज में नेत्र सर्जन डॉ. विवेक त्रिपाठी ने बताया कि प्रतिदिन लगभग 150 मरीज ओपीडी में आ रहे हैं. इसमें कम से कम पांच मरीजों में ग्लूकोमा पाया जा रहा है. दृष्य संकेतों को आंख से मस्तिष्क तक पहुंचाने का काम करने वाली ऑप्टिक तंत्रिका तंत्र आंख के पीछे होती है. ग्लूकोमा में अधिक दबाव पड़ने से ऑप्टिक तंत्रिका तंत्र क्षतिग्रस्त हो जाती है. यह क्षति अंधापन का कारण भी बन सकती है.
बचाव के उपाय:
1. बार-बार आंखों का चेकअप कराना
2. परिवार में किसी को ग्लूकोमा था, इसका पताकर सावधानी बरतना
3. फिट रहना और पौष्टिक आहार लेना
4. आंखों की हर तरह से सुरक्षा करंना.
ग्लूकोमा के लक्षण:
1. धुंधली दृष्टि
2. लगातार सिरदर्द
3. आंखों का लाल होना
4. आंख में दर्द होना
मायोपिया के कारण:
1. यदि माता या पिता मायोपिया के शिकार रहे हैं तो बच्चों में इसका खतरा अधिक होता है.
2. टीवी, कम्प्यूटर व मोबाइल फोन की स्क्रीन पर अधिक समय तक काम करना.
3. पढ़ते समय किताबों की आंख से पर्याप्त दूरी न होना.
4. कम प्राकृतिक रोशनी में अधिक समय तक लगातार काम करना