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फाइल फोटो
उत्तर प्रदेश के वाराणसी की ज्ञानवापी मस्जिद को लेकर सोमवार को बड़ा दावा किया गया है.
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। उत्तर प्रदेश के वाराणसी की ज्ञानवापी मस्जिद (Gyanvapi Masjid Case) को लेकर सोमवार को बड़ा दावा किया गया है. दावे के अनुसार मस्जिद परिसर में शिवलिंग (Shivling) पाया गया है. इसके बाद कोर्ट ने मस्जिद के इस हिस्से को सील करने का आदेश दिया. इस बीच मुस्लिम पक्ष सुप्रीम कोर्ट जा पहुंचा है. सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) इस मामले पर मंगलवार को सुनवाई करेगा. वहीं मुस्लिम पक्ष की ओर से पूजा स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम, 1991 (Places of Worship Act, 1991) के आधार पर दलीलें पेश किए जाने की बात सामने आ रही है. यह भी बात सामने आई है कि मुस्लिम पक्ष का पूरा केस इसी कानून पर केंद्रित है.
पूजा स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम, 1991 की रूपरेखा साल 1991 में बनाई गई थी. 1990 के दौरान अयोध्या में राम मंदिर आंदोलन आगे बढ़ रहा था. उस समय सरकार को आशंका हुई थी कि विभिन्न धार्मिक स्थलों को लेकर देश में विवाद उत्पन्न हो सकता है. तत्कालीन सरकार ने 11 जुलाई, 1991 को पूजा स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम, 1991 को पेश किया था. इस एक्ट में कहा गया है कि अगस्त 1947 के समय जो भी धार्मिक स्थल जिस भी समुदाय का था वो उसी का रहेगा. इस एक्ट से अयोध्या का केस अलग रखा गया था क्योंकि उस समय वो केस कोर्ट में लंबित था.
सुप्रीम कोर्ट में दी गई है चुनौती
इस एक्ट का संसद में भी विरोध किया गया था. लेकिन बाद में ये एक्ट पास होकर कानून बना दिया गया था. अब बीजेपी नेता और वकील अश्विनी उपाध्याय ने इस एक्ट को भी सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है. उनकी ओर से दायर याचिका में कहा गया है कि ये कानून हिंदू, सिख, जैन और बौद्ध धर्म के लोगों को उनके सांविधानिक अधिकारों से दूर करता है. याचिका में साफतौर पर कहा गया है कि इन लोगों के धार्मिक स्थलों को विदेश आक्रमणकारियों ने तोड़ा था, उन्हें फिर से बनाने के लिए जरूरी कानूनी रास्ते ये कानून बंद कर देता है.
कानून की कुछ धाराओं का विरोध
अश्विनी उपाध्याय की ओर से पूजा स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम, 1991 की धारा 2, 3 और 4 को चुनौती दी गई है. कानून पर नजर डालें जो पता चलता है कि इसकी धारा 4 की उपधारा 3 में कहा गया है कि प्राचीन और ऐतिहासिक जगहों पर यह कानून लागू नहीं होता है. इसमें प्राचीन और ऐतिहासिक यानी एंसिएंट साइट की परिभाषा बताई है कि जो भी निर्माण सौ साल या उससे अधिक पुराना होगा वो एंसिएंट माना जाएगा. ऐसे में कानून के जानकार दावा करते हैं कि इस नियम के मुताबिक मथुरा और वाराणसी के कई मंदिर इस कानून से बाहर हो जाएंगे.
मुस्लिम पक्ष धारा 4 का कर रहा जिक्र
वहीं याचिका में कहा गया है कि ये कानून के जरिये संविधान में समानता के अधिकार, गरिममयी जीवन के अधिकार और धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार में दखल देता है. ज्ञानवापी मामले में मुस्लिम पक्ष पूजा स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम, 1991 और इसकी धारा 4 का जिक्र कर रहा है, जो किसी भी पूजा स्थल के धार्मिक चरित्र के रूपांतरण के लिए किसी भी मुकदमे को दायर करने या किसी अन्य कानूनी कार्यवाही शुरू करने पर रोक लगाता है. वाराणसी की एक स्थानीय अदालत ने 12 मई को ज्ञानवापी-श्रृंगार गौरी परिसर का वीडियोग्राफी सर्वेक्षण करने के लिए नियुक्त अधिवक्ता आयुक्त को बदलने के लिए दायर एक याचिका को खारिज कर दिया था और 17 मई तक कार्य पूरा करने का आदेश दिया था.
मस्जिद के अंदर वीडियोग्राफी का विरोध
जिला अदालत ने अधिवक्ता आयुक्त को मस्जिद का सर्वेक्षण करने में मदद करने के लिए दो और वकीलों को भी नियुक्त किया है जो प्रतिष्ठित काशी विश्वनाथ मंदिर के करीब स्थित है. इसने पुलिस को आदेश दिया कि यदि कार्रवाई को विफल करने का प्रयास किया जाता है तो प्राथमिकी दर्ज करें. स्थानीय अदालत का 12 मई का आदेश महिलाओं के एक समूह द्वारा हिंदू देवी-देवताओं की दैनिक पूजा की अनुमति मांगने वाली याचिका पर आया, जिनकी मूर्तियां मस्जिद की बाहरी दीवार पर स्थित हैं.
मस्जिद प्रबंधन समिति ने मस्जिद के अंदर वीडियोग्राफी का विरोध किया था और अदालत द्वारा नियुक्त आयुक्त पर पक्षपात करने का भी आरोप लगाया था. विरोध के बीच कुछ देर के लिए सर्वे ठप हो गया. हिंदू याचिकाकर्ताओं का प्रतिनिधित्व करने वाले वकील के अनुसार, सिविल जज (सीनियर डिवीजन) रवि कुमार दिवाकर ने भी सर्वेक्षण के लिए मस्जिद परिसर में दो बंद बेसमेंट खोलने पर आपत्तियों को खारिज कर दिया.
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