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अगरतला। त्रिपुरा के 72 साल के चुनावी इतिहास में पहली बार, वामपंथी दल और कांग्रेस भाजपा से मुकाबला करने के लिए कोई संसदीय चुनाव मिलकर लड़ रहे हैं, हालांकि दोनों पारंपरिक प्रतिद्वंद्वियों ने पिछले साल के विधानसभा चुनाव में संयुक्त रूप से सत्तारूढ़ पार्टी को चुनौती दी थी।
हाई प्रोफाइल त्रिपुरा पश्चिम लोकसभा सीट पर मुख्य मुकाबला भाजपा उम्मीदवार तथा त्रिपुरा के पूर्व मुख्यमंत्री बिप्लब कुमार देब और राज्य कांग्रेस अध्यक्ष आशीष कुमार साहा के बीच होगा, जो 'इंडिया' ब्लॉक के साझा उम्मीदवार हैं।
दरअसल, कांग्रेस अध्यक्ष साहा और मौजूदा कांग्रेस विधायक सुदीप रॉय बर्मन ने मार्च 2018 में भाजपा के टिकट पर राज्य विधानसभा के लिए चुने जाने के बाद फरवरी 2022 में पार्टी छोड़ दी।
माकपा के नेतृत्व वाले वाम मोर्चे को 25 साल बाद अपमानजनक हार देकर भाजपा पहली बार त्रिपुरा में सत्ता में आई।
पिछले साल के विधानसभा चुनावों में, साहा और बर्मन ने भाजपा के खिलाफ कांग्रेस के उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ा था, लेकिन साहा हार गये, जबकि बर्मन ने अपनी सीट बरकरार रखी।
देब, जिन्होंने 14 मई 2022 को भाजपा के केंद्रीय नेताओं के निर्देश पर मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था, ने मई 2019 में लंबे आंतरिक झगड़े के बाद बर्मन को अपने मंत्रिपरिषद से हटा दिया था।
गौरतलब है कि वाम मोर्चा 1952 से हर चुनाव कांग्रेस के खिलाफ लड़ रहा है। कांग्रेस आखिरी बार 1988 में वाम दलों को हराकर त्रिपुरा में सत्ता में आई थी।
पिछले साल के विधानसभा चुनावों में, वाम मोर्चा ने, जिसने कांग्रेस के साथ सीट-बंटवारे की व्यवस्था में विधानसभा चुनाव लड़ा था, 11 सीटें जीती थीं जबकि सबसे पुरानी पार्टी को केवल तीन सीटें मिलीं।
त्रिपुरा की दो लोकसभा सीटों - त्रिपुरा पश्चिम और त्रिपुरा पूर्व - में से चुनावी फोकस हमेशा त्रिपुरा पश्चिम लोकसभा सीट पर है, जिसे 1952 से माकपा ने 11 बार जीता था।
कांग्रेस ने इस सीट पर चार बार 1957, 1967, 1989 और 1991 में जीत हासिल की।
इंडिजिनस पीपुल्स फ्रंट ऑफ त्रिपुरा (आईपीएफटी) के साथ गठबंधन में 2018 में भाजपा के सत्ता में आने के बाद भाजपा उम्मीदवार और केंद्रीय मंत्री प्रतिमा भौमिक ने 2019 में पहली बार त्रिपुरा पश्चिम लोकसभा सीट जीती।
इस बार भाजपा ने भौमिक को हटाकर देब को मैदान में उतारा, जो वर्तमान में राज्यसभा सदस्य हैं।
त्रिपुरा की चुनावी राजनीति में आदिवासी और अनुसूचित जाति समुदाय के मतदाता महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। कुल 60 विधानसभा सीटों में से 30-30 सीटें त्रिपुरा पश्चिम और त्रिपुरा पूर्व लोकसभा सीटों में आती हैं। इनमें से 20 सीटें आदिवासियों के लिए और 10 सीटें अनुसूचित जाति समुदाय के लिए आरक्षित हैं।
त्रिपुरा पश्चिम लोकसभा सीट में आने वाले 30 विधानसभा क्षेत्रों में से सात आदिवासियों के लिए और पांच अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित हैं।
राजनीतिक टिप्पणीकार शेखर दत्ता ने कहा कि माकपा सहित वाम दलों के आदिवासियों और अनुसूचित जाति समुदाय के बीच बड़े पैमाने पर मतदाता आधार में गिरावट के कारण 2018 के बाद से लगातार चुनावों में उनकी हार हुई है।
दत्ता ने आईएएनएस को बताया, “संगठनात्मक गिरावट के अलावा, नेतृत्व संकट और सत्ता विरोधी कारक अभी भी जारी हैं क्योंकि वाम मोर्चा 1978 से 1988 और फिर 1993-2018 तक त्रिपुरा में सत्ता में था। नए चेहरों के साथ, उन्हें भाजपा की चुनौती का सामना करने के लिए आदिवासियों और गैर-आदिवासियों दोनों के बीच संगठन का पुनर्निर्माण करना होगा।”
--आईएएनएस
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Rani Sahu
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