नजरिया : जैसी आशंका थी, वैसा ही हुआ, संसद के बजट सत्र का दूसरा चरण बिना किसी विशेष कामकाज के समाप्त हो गया। अच्छा होता कि संसद में लगातार हंगामा होते देखकर इस सत्र को तय समय के पहले ही खत्म कर दिया जाता। इससे और कुछ नहीं तो सरकारी कोष का कुछ धन ही बच जाता। संसद न चलने देने के लिए सत्तापक्ष और विपक्ष एक-दूसरे को कठघरे में खड़ा करने का जो काम कर रहे हैं, उसका औचित्य इसलिए नहीं, क्योंकि कहीं न कहीं दोनों पक्ष ही इसके लिए जिम्मेदार हैं।
जहां विपक्ष अदाणी मामले की जांच संयुक्त संसदीय समिति यानी जेपीसी से कराने की अपनी मांग को लेकर हंगामा करता, वहीं सत्तापक्ष इस मांग पर अड़ा रहा कि राहुल गांधी अपने उस बयान के लिए माफी मांगें, जो उन्होंने लंदन में दिया था। पक्ष-विपक्ष की इन मांगों का कोई विशेष महत्व नहीं था। अदाणी मामले में जेपीसी जांच का औचित्य इसलिए खत्म हो गया था, क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने एक छह सदस्यीय समिति गठित कर दी थी। उल्लेखनीय यह है कि इस समिति के गठन में सरकार की कोई भागीदारी नहीं। सुप्रीम कोर्ट ने समिति के सदस्यों का चयन स्वयं किया था। इसके बाद भी विपक्ष संतुष्ट नहीं हुआ, क्योंकि उसे होना ही नहीं था और संसद में हंगामा करने के लिए एक बहाना चाहिए था।