
चेन्नई: मद्रास उच्च न्यायालय की एक खंडपीठ ने अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम के तहत दर्ज एक प्राथमिकी के आधार पर आरोप पत्र दाखिल न करने पर एक पुलिस उपाधीक्षक (डीएसपी) को निलंबित करने के एकल न्यायाधीश के आदेश पर रोक लगा दी है।
न्यायमूर्ति एम एस रमेश और न्यायमूर्ति वी लक्ष्मीनारायण की खंडपीठ ने गुरुवार को पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) द्वारा दायर लेटर पेटेंट अपीलों पर सुनवाई के बाद एकल न्यायाधीश के आदेश पर अस्थायी रोक लगाने का आदेश जारी किया। डीजीपी ने आदेश के उस हिस्से को चुनौती दी थी जिसमें अधिकारी को निलंबित करने और फिर जांच करने का निर्देश दिया गया था। इसके अलावा, डीएसपी एस सुनील ने भी बिना उनका पक्ष सुने उन्हें निलंबित करने के आदेश को चुनौती दी थी।
एकल न्यायाधीश ने 14 जुलाई, 2025 को विल्लुपुरम जिले के वनूर गाँव के डी सेंथमराई द्वारा दायर याचिका के आधार पर यह आदेश पारित किया। याचिका में कोट्टाकुप्पम के डीएसपी को अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति अधिनियम (जनवरी 2024 में) के तहत दर्ज प्राथमिकी की जाँच में तेजी लाने और संबंधित न्यायालय में आरोप पत्र दाखिल करने का निर्देश देने की माँग की गई थी।
डीजीपी की ओर से पेश अतिरिक्त लोक अभियोजक ई. राज थिलक ने दलील दी कि एकल न्यायाधीश सीआरपीसी की धारा 482 के तहत प्रदत्त शक्तियों के तहत डीएसपी को निलंबित करने का आदेश जारी नहीं कर सकते।
डीएसपी की ओर से अधिवक्ता सुहृथ पार्थसारथी ने पैरवी की।





