तमिलनाडू

तमिलनाडु सरकार: मुल्लापेरियार बांध जलविज्ञान, संरचनात्मक, भूकंपीय रूप से पाया गया सुरक्षित

Deepa Sahu
14 Nov 2021 9:48 AM GMT
तमिलनाडु सरकार: मुल्लापेरियार बांध जलविज्ञान, संरचनात्मक, भूकंपीय रूप से पाया गया सुरक्षित
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तमिलनाडु सरकार ने उच्चतम न्यायालय से कहा है कि 126 साल पुराने मुल्लापेरियार बांध को बंद करने के लिए केरल का ‘‘बार-बार किये जाने वाला दावा’’ ‘‘पूरी तरह से अस्वीकार्य’’ है.

नयी दिल्ली, तमिलनाडु सरकार ने उच्चतम न्यायालय से कहा है कि 126 साल पुराने मुल्लापेरियार बांध को बंद करने के लिए केरल का ''बार-बार किये जाने वाला दावा'' ''पूरी तरह से अस्वीकार्य'' है क्योंकि बांध को जलविज्ञान (हाइड्रोलॉजिकल), संरचनात्मक और भूकंपीय रूप से सुरक्षित पाया गया है। मुल्लापेरियार बांध 1895 में केरल के इडुक्की जिले में पेरियार नदी पर बनाया गया था।

मुल्लापेरियार बांध मामले पर केरल सरकार द्वारा दायर एक हलफनामे के जवाब में, तमिलनाडु राज्य ने उच्चतम न्यायालय को बताया कि अधिकार प्राप्त समिति ने कहा है कि यह रखरखाव, मरम्मत और पुनर्वास के माध्यम से अंतर्निहित स्वास्थ्य और देखभाल से जुड़ा हुआ है।
तमिलनाडु सरकार ने कहा है, ''समय-समय पर दाखिल रिट याचिकाओं में केरल और केरल के याचिकाकर्ताओं का बार-बार किये जाने वाला दावा मौजूदा बांध को हटाने और एक नए बांध के निर्माण की मांग करता है, जो बांध की सुरक्षा पर इस अदालत के फैसले के आलोक में पूरी तरह से अस्वीकार्य है।'' उसने कहा है, ''बांध को जल विज्ञान संबंधी नजरिये, संरचनात्मक और भूकंपीय रूप से सुरक्षित पाया गया है।''
मामले की सुनवाई शनिवार को न्यायमूर्ति ए एम खानविलकर और न्यायमूर्ति सी टी रविकुमार की पीठ ने की। पीठ ने कहा कि मुल्लापेरियार बांध से संबंधित मुद्दा''निरंतर निगरानी'' का मामला है। शीर्ष अदालत में हाल में दाखिल अपने हलफनामे में, केरल ने कहा था कि जीर्णोद्धार के द्वारा मुल्लापेरियार बांध को कायम नहीं रखा जा सकता है।
केरल के हलफनामे के जवाब में, तमिलनाडु सरकार ने कहा है कि शीर्ष अदालत के 2014 के फैसले से गठित पर्यवेक्षी समिति लगातार बांध की सुरक्षा की निगरानी कर रही है। इसमें कहा गया है कि पर्यवेक्षी समिति के गठन के अनुसार 2014 में बांध का भंडारण स्तर 142 फुट तक बढ़ाया गया था।
तमिलनाडु राज्य ने कहा, ''बांध की सुरक्षा और एक नए बांध के निर्माण के संबंध में मुद्दे उठाने वाली याचिकाओं के बाद केरल के निवासियों द्वारा बार-बार दावा करना बाध्यकारी निर्णय को खत्म करने का एक प्रयास है, जो पूरी तरह से अस्वीकार्य है।'' उच्चतम न्यायालय ने मामले की अगली सुनवाई की तिथि 22 नवंबर तय की।


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