सिक्किम

सैनिकों ने किया ताजमहल पर कब्जा, फिर आज ही सिक्किम बना 22वां राज्य

Shiddhant Shriwas
6 Jun 2022 11:18 AM GMT
सैनिकों ने किया ताजमहल पर कब्जा, फिर आज ही सिक्किम बना 22वां राज्य
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15 मई, 1975 को तत्‍कालीन राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद के हस्ताक्षर के साथ ही सिक्किम भारत का 22वां राज्य बन गया.

जब भारत आजाद हुआ तो उसने सिक्किम के चोग्याल से विलय पर साइन करने के लिए कहा लेकिन अगले करीब ढ़ाई दशकों तक सिक्किम इससे इनकार करता रहा. आखिर अप्रैल 1975 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने बड़ा फैसला लिया. उन्होंने उत्तर पूर्व के इस राज्य को देश में मिलाने का फैसला कर लिया. ये काम चोग्याल यानि सिक्किम के राजा की तमाम धमकियों के बावजूद किया गया. 06 अप्रैल को भारतीय सेनाओं ने राजमहल पर कब्जा किया. फिर संवैधानिक तौर पर संसद में सिक्किम को मिलाने पर मुहर लगवाई गई. 16 मई 1975 को तत्कालीन राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली के हस्ताक्षर के बाद ये भारत का 22वां राज्य बन गया.

सिक्किम के भारत में विलय सबसे बड़ी भूमिका रॉ की रही. कहा तो यही ये भी जाता है कि इस पूरे मिशन को रॉ ने बखूबी अंजाम दिया था. आजादी के समय सिक्किम अलग रियासत थी. वहां चोग्याल वंश का राज था. 1947 में सरदार पटेल ने बाकी रियासतों की तरह सिक्किम को भी भारत में मिलना चाहा था लेकिन उस समय चीन का पेंच फंसा हुआ था.
क्योंकि तब नेहरू को लग रहा था कि अगर भारत विलय के लिए सिक्किम पर आक्रामक हुआ तो चीन वैसा ही कुछ तिब्बत के साथ कर देगा. लिहाजा विलय नहीं हुआ. फिर 1950 में भारत और सिक्किम के बीच एक संधी हुई. अब सिक्किम भारत का प्रोटेक्टोरेट राज्य बन गया. मतलब कि राज्य तो चोग्याल चलाएंगे लेकिन उसके रक्षा और विदेश मामलों को भारत देखेगा.
सिक्किम के राजा ने भूटान जैसे दर्जे की मांग की
1964 में नेहरू के निधन के बाद सिक्किम के राजा पलडेन नामग्याल ने मांग की कि अब सिक्किम को भी भूटान जैसा दर्जा दिया जाए. यानि उसे आजाद देश माना जाए. तब तक इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री बन चुकी थीं. उन्होंने नामग्याल की बातों को अनसुना कर दिया. इसके बाद इंदिरा गांधी बांग्लादेश के खिलाफ युद्ध और कांग्रेस की अंतर्कलह से जूझ रही थीं.
तब इंदिरा ने रॉ के चीफ को बुलाया
71 के युद्ध में जीत के बाद इंदिरा गांधी ने एक दिन रॉ के चीफ आरएन काव को तलब किया. उन्होंने काव से पूछा, क्या तुम सिक्किम का कुछ कर सकते हो?इंदिरा सिक्किम को पूरी तरह मिलाना चाहती थीं. सिक्किम के राजा के रंगढंग उन्हें बहुत चालाकी भरे लग रहे थे. दूसरे सिक्किम रणनीतिक तौर पर बहुत ज्यादा महत्वपूर्ण राज्य होता जा रहा था.
ये था रॉ का प्लान सिक्किम
इसके बाद कॉव ने एक प्लान बनाकर उसको इंदिरा के सामने पेश किया. प्लान चोग्याल राजशाही को धीरे-धीरे कमजोर करने का था. इसमें सियासी रणनीति की ज्यादा जरूरत थी. स्थानीय पार्टियों की मदद ली गई. सिक्किम नेशनल कांग्रेस के लीडर क़ाज़ी लेनडुप दोरजी ने पहले से ही राजशाही के खिलाफ मुहिम छेड़ रखी थी. जनता भी आमतौर पर राजशाही को लेकर असंतुष्ट होती जा रही थी.
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