नजरिया : शरद पवार ने एक बार फिर न केवल विपक्षी दलों को झटका दिया, बल्कि उन्हें आईना भी दिखाया। इस बार उन्होंने उन दलों की क्षुद्रता भरी राजनीति की पोल खोली, जो प्रधानमंत्री की डिग्री को मुद्दा बनाने की हास्यास्पद कोशिश कर रहे हैं। इसके पहले शरद पवार कांग्रेस समेत उन दलों को झटका दे चुके हैं, जो अदाणी मामले में जेपीसी जांच की मांग को लेकर इसके बाद भी आसमान सिर पर उठाए हुए थे कि सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले की जांच के लिए एक समिति गठित कर दी है।
शरद पवार ने यह सही कहा कि प्रधानमंत्री की डिग्री न तो कोई राजनीतिक मुद्दा हो सकती है और न ही राष्ट्रीय मुद्दा। यह स्वाभाविक है कि उनके इस दो टूक बयान से यदि किसी को सबसे अधिक आघात लगा होगा तो आम आदमी पार्टी और उद्धव ठाकरे वाली शिवसेना को। यही दोनों पार्टियां हैं, जो प्रधानमंत्री की डिग्री को तूल देने में लगी हुई हैं। इसके अलावा कुछ अन्य दल भी हैं, जो इस मुद्दे को उछाल देते हैं। जो भी इस व्यर्थ मुद्दे के जरिये अपनी राजनीति चमकाने की कोशिश कर रहे हैं, वे राजनीतिक दिवालियेपन का ही परिचय दे रहे हैं।
निःसंदेह डिग्री की अपनी एक महत्ता है, लेकिन एक सीमा तक ही। प्रतिभा किसी डिग्री की मोहताज नहीं होती। ऐसे भी अनेक उदाहरण हैं, जो यह बताते हैं कि डिग्री प्राप्त कर लेने भर से कोई सफल नहीं हो जाता। प्रधानमंत्री की डिग्री को मुद्दा बना रहे दल इससे अनभिज्ञ नहीं हो सकते कि राजनीति में ही न जाने कितने ऐसे लोग हैं, जिन्होंने बिनी किसी डिग्री सफल शासक, संगठनकर्ता और नेतृत्वकर्ता के रूप में अपनी छाप छोड़ी है। प्रधानमंत्री की डिग्री को तूल दे रहे लोग क्या यह गारंटी देने की स्थिति में हैं कि उनके दलों में जो भी नेता हैं, वे सब डिग्रीधारी हैं? यदि नहीं तो फिर यह तमाशा क्यों?