
कोटा। मुख्यमंत्री नि:शुल्क दवा मरीजों के जी का जंजाल बन रही है। सरकार की ओर से 864 नई दवाएं की स्वीकृति दी है। लेकिन अभी तक इन सप्लाई ड्रग हाउस में नहीं हुई जिससे मरीजों को परेशानी हो रही है। डॉक्टर नई स्वीकृत दवाए पर्ची पर लिख रहे लेकिन अस्पताल में इसका स्टॉक नहीं होने से इसकी एनओसी देकर बाजार से दवा उपलब्ध कराई जा रही है। जिससे मरीजों को दवा के लिए घनचक्कर बनना पड़ रहा है। मौसमी बीमारियों की तादात बढ़ने से दवाओं की खपत बढ़ गई है। संभाग के सबसे बड़े एमबीएस अस्पताल के हालात सुधारने का नाम ही नहीं ले रहे है। पहले मरीजों को डॉक्टर को दिखाने में मशक्कत करनी पड़ती है अब दवा का चक्कर मरीजों को मर्ज से ज्यादा दर्द दे रहा है। कहने को अस्पताल में मुख्यमंत्री दवा योजना के 10 से अधिक काउंटर हैं लेकिन इन काउंटरों के खुलने का समय और बंद होने का समय अलग होने से मरीजों को घंटों लाइन में खड़ा होना मजबूरी बनता जा रहा है। कई दवा काउंटर तो अस्पताल के बंद होने से पहले ही बंद हो जाते हैं ऐसे में खुले हुए दवा काउंटरों पर मरीजों तादात बढ़ जाती है जिससे मरीजों दवा लेने के लिए काफी मशक्कत करनी पड़ रही है। सरकारी अस्पतालों में नि:शुल्क दवाओं की सुविधा तो कर दी लेकिन मरीजों को वहां दवा काउंटरों पर उपलब्ध ही नहीं हो रही है। एमबीएस में एक ही काउंटर पर दवा दी जा रही है वहां भी आधी दवाओं के लिए एनओसी जारी की जा रही है। जिसके लिए मरीजों व तीमारदारों को इधर से उधर चक्कर काटने पड़ रहे हैं। सालभर में जिले में 8 से 10 लाख टैबलेट की खपत होती है, मौसमी बीमारियों के दौरान खपत बढ़ जाती थी। कोविड के में यह आंकड़ा दो साल में 16 लाख 80 हजार तक पहुंच गया था। मेडिकल कॉलेज ड्रग वेयर हाउस से अप्रैल 2020 से 2022 तक पेरासिटा मोल की 500 एमजी की 8 लाख 80 हजार और 250 एमजी की 8 लाख 80 हजार टैबलेट खपत हो चुकी है। मेडिकल व्यवसायियों अनुसार कोविड में 20 लाख टैबलेट की खपत हुई है। अभी पेरासिटा मोल, खांसी की दवाई और एजिथ्रोमाइसीन की डिमांड ज्यादा है।
अस्पताल बंद होने के पहले ही सात दवा काउंटर हो जाते बंद
अंता निवासी धनराज ने बताया कि अस्पताल में बने दवा काउंटर के खुलने और बंद होने के समय अलग अलग होने से मरीजों को परेशानी का समाना करना पड़ रहा है। सुबह अस्पताल खुलने के साथ ही सभी दवा काउंटर खुल जाते है लेकिन 2 बजे तक एक से लेकर सात काउंटर एक -एक कर बंद होने लगते है। दो बजे तक एनओसी व एक दवा काउंटर से चलता है। ऐसे में इमरजेंसी से लेकर 3 बजे तक डॉक्टरों दिखाने वाले मरीज दवा लेने के के लिए मशक्कत करते नजर आते है। ऐसा किसी एक दो मरीज के साथ नहीं होता है। कई मरीजों के साथ हुआ। जिससे मरीज परेशान होते रहे। कई मरीज तो गर्मी के कारण थक हार कर अस्पताल में जमीन पर ही बैठ गए। शहर ही नहीं ग्रामीण क्षेत्रों से आए मरीज अधिक परेशान हुए। मरीजों का कहना था कि सरकार ने दवा तो नि:शुल्क कर दी है। लेकिन व्यवस्था इतनी जटिल कर दी है कि उससे पार पाना मुश्किल हो रहा है। दवाई के लिए चक्कर घिन्नी होने से झुंझलाहट भी होने लगी। इन व्यवस्थाओं के चलते दवा काउंटर, आउटडोर में डॉक्टर को दिखाने और एनओसी जारी करवाने के लिए मरीजों व तीमारदारों की भीड़ लग गई। 2 बजे से 3 बजे तक काउंटर नंबर 9 व 10 ही खुले हुए थे जिसमें मरीजों की दवा लेने के लिए लंबी कतारे लगी हुई थी।
लंबी कतार में घंटों खड़े रहने का दर्द अब आम हो गया
शहर के कालातालाब निवासी 62 साल की वंदना ने बताया कि उसके सिर की नस में परेशानी होने से न्यूरोलॉजी विभाग में दिखाया वहां से दवा लेने के लिए काउंटर पर पहुंची तो एक घंटा लाइन में खड़ी रही उसके बाद मेरा नंबर आया छह दवा में दो दवा ही मिली चार दवा नहीं मिली। दवा काउंटर वाले ने बताया कि बाकी दवा की एनओसी लेकर बाहर से लेनी पड़ेगी अभी सप्लाई नहीं आ रही है। एमबीएस में नि:शुल्क दवा लेना आसान काम नहीं है।
इंडोर मरीजों के लिए 13 नंबर काउंटर बना परेशानी का सबब
एमबीएस अस्पताल में भर्ती मरीजों को दवा नहीं मिलने पर 13 नंबर काउंटर दवा की सुविधा दे रखी है यहां दवाईयां नहीं मिलने पर बाहर से दवा लाने के लिए एनओसी जारी होती है। लेकिन विडंबना ये है कि इस काउंटर पर कोई फार्मास्टिट ही नहीं लगा रखा काउंटर कम्प्यूटर ऑपरेटरों के भरोसे चल रहा है । ऐसे में यहां दो बजे बाद मरीजों की दवा और एनओसी लेने के लिए लंबी कतारे लगी रहना आम बात है।
एनओसी लेना नहीं है आसान
रोटेडा निवासी 86 वर्षीय शमशुद्दीन ने बताया वो बीपी, शुगर और थाइराईड की दवा लेने के लिए एक घंटे तक दवा की लाइन में लगा लेकिन सात दवाओं में तीन दवाए ही मिली। चार दवाओं के लिए एनओसी बनाने के लिए इधर उधर चक्कर काटने में समय पूरा हो गया । ऐसे ही कई मामले मंगलवार को एमबीएस अस्पताल में देखने को मिले। मंगलवार को बड़ी संख्या में मरीज उपचार के लिए अस्पताल पहुंचे। पहले पर्ची बनवाने की कतार में इंतजार व मशक्कत, उसके बाद आउटडोर में डॉक्टर को दिखाने की कतार में जैसे-तैसे नम्बर आ गया। उसके बाद डॉक्टर द्वारा पर्ची पर लिखी गई दवाई लेने के लिए जब मरीज व तीमारदार दवा काउंटर पर गए तो उन्हें 13 नम्बर काउंटर पर भेजा गया। वहां जाने पर आधी ही दवा उपलब्ध थी। जबकि आधी दवा के लिए उन्हें एनओसी जारी की जा रही है। लेकिन एनओसी के लिए पहले उसी डॉक्टर से हस्ताक्षर करवाने, उप अधीक्षक के हस्ताक्षर करवाने और फिर उस पर्ची की दो जेरोक्स करवाकर लाने की मशक्कत करनी पड़ रही है।
सरकार की ओर से 864 दवाए स्वीकृत कर रखी है। अभी नई स्वीकृत दवाओं का स्टॉक नहीं आया है। वैकल्पिक व्यवस्था के रूप में अस्पताल में एनओसी काटकर मरीजों को दवाए उपलब्ध कराई जा रही है। मौसमी बीमारियों के मरीज बढ़ने से दवाओं की खपत बढ गई है। पुरानी स्वीकृत दवाओं की सप्लाई नियमित हो रही है लेकिन खपत ज्यादा होने
