राजस्थान

निगम और यूआईटी के बीच फुटबॉल बने वार्डवासी

Admin Delhi 1
13 Jan 2023 12:15 PM GMT
निगम और यूआईटी के बीच फुटबॉल बने वार्डवासी
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कोटा: सड़कों पर फैली गिट्टी और उड़ती धूल, सड़कों के कटे किनारे, बिना वाटर लेवल की नालियां और गलियों में घूमते श्वान। ऐसा ही नजारा दिखाई देता है कोटा नगर निगम दक्षिण के वार्ड नम्बर 52 के कई इलाकों में। दरअसल ये वार्ड उन 19 वार्डों में से एक है जो दक्षिण नगर निगम बनने के बाद यूआईटी को सौंपे गए थे। जिसका परिणाम ये है कि इस क्षेत्र के लोग निगम और यूआईटी के बीच की फुटबॉल बने हुए हैं। लोग बताते है कि निगम और यूआईटी के बीच घूमते-घूमते उनके तो पैर ही दुख गए। बड़ी बात तो ये है कि इस वार्ड की पार्षद खुद अपने वार्ड में हुए कार्यों से सन्तुष्ट नहीं है और खुद ने इसकी शिकायत लिखित में कलक्टर से की है। वार्ड पार्षद जहां तक हो पा रहा है अपने स्तर पर लोगों की समस्याओं को सुलझाने का प्रयास करती है लेकिन फिर भी वार्ड के लोग अपने पार्षद के भाजपाई होने का दंश तो झेल ही रहे हैं। पार्षद भी इस बात को दबे मन से स्वीकार करती है कि उनके भाजपा से होने के कारण ही शायद इस वार्ड की ओर किसी का ध्यान नहीं है। वार्ड में काम ठीक नहीं हो रहे हैं। नगर निगम दक्षिण के वार्ड 52 में हरिओम नगर, कच्ची बस्ती, वीर सावरकर नगर, लोहार बस्ती, पावर हाउस, पीएचईडी आॅफिस, नारकोटिक्स कॉलोनी, मदर टेरेसा स्कूल आदि क्षेत्र आते हैं। इन क्षेत्रों में कई स्थानों पर नालियों के हालात इतने खराब है कि अधिकांशत: मौकों पर पानी सड़कों पर ही बहता नजर आ जाएगा। वार्ड में विकास कार्य तो हुए हैं लेकिन बेतरबीत तरीके से, जो काम आज से 2 महीने ही पूर्ण हो जाना चाहिए था वो अभी तक आधा भी नहीं हुआ है।

वार्ड के लोग बताते हैं कि यूआईटी की ओर से सीवरेज के लिए सड़कें तो खोदी गई लेकिन वापस आकर उनकी कोई सुध ही नहीं ली गई। कुछ स्थानों पर सड़कें बनी तो उसमें घटिया किस्म का काम हुआ और कुछ ही दिनों में गिट्टी नालियों में नजर आने लगी है। कई स्थानों पर सड़कों के किनारों को यूंही छोड़ा हुआ हैं। आते-जाते गिरने का भय बना रहता हैं। एक ओर समस्या यहां के लोग बताते हैं कि उनके ये ही समझ नहीं आता कि वे अपनी शिकायत लेकर निगम में जाए या यूआईटी में। करीब 6000 मतदाता अपने में समेटे इस वार्ड के कुछ निवासियों का कहना है कि दोनों संस्थाओं के बीच में वो फंसकर रह गए हैं। ना निगम काम करवा रही है ना यूआईटी। ऐसे लगता है जैसे हम यहां के नहीं किसी दूसरे शहर के लोग हैं। वार्ड पार्षद भी क्या करें, उनको कहने पर वो जितना हो सकता है करवा देती हैं लेकिन उनकी भी आगे सुने तो ही काम हो। ना वार्ड में सफाई की कोई व्यवस्था है ना दूसरी कोई सुविधाएं। लोगों को वो सुविधाएं तो मिले जिनकी उन्हे अतिआवश्यकता है।

इनका कहना है

वार्ड पार्षद का कहना है कि वार्ड के लोगों की समस्याएं सुलझाने का पूरा प्रयास करती हूं। अब इससे ज्यादा तो मैं क्या करू कि अपने वार्ड में हुए विकास कार्यों की शिकायत जिला प्रशासन से कर रही हूं। लगभग डेढ़ करोड़ रूपये कार्य स्वीकृत हुए थे लेकिन बिल्कुल घटिया किस्म का काम हुआ है। अब ये ठेकेदार की गलती है या जिस संस्था ने काम करवाए है उसकी। ये मुझे नहीं पता। जो काम 6 महीने में पूरा हो जाना चाहिए था वो सालभर के बाद भी पूरा नहीं हुआ हैं। गाड़ी मंगवाकर नालियों की सफाई करवानी पड़ती है। वार्ड की देखरेख ना यूआईटी कर रही है ना नगर निगम। नालियों का कोई ड्रेनेज सिस्टम नहीं हैं। जिसे वार्ड की देखरेख और रखरखाव का जिम्मा दिया गया था वो संस्था ही ध्यान नहीं दे रही है।

-भगवती कुमार महावर, वार्ड पार्षद।

नालियों की हालात बहुत ज्यादा खराब हैं। सड़कें खुदी हुई है। कई जगह रोड लाइट खराब पड़ी है। नालियों का पानी कई बार घरों में घुस जाता है। दिनभर सड़कों पर गायें, श्वान घूमते रहते हैं, लड़ते रहते हैं।

-नेहा बंजारा, वार्डवासी।

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