राजस्थान

दस साल पहले निकली गोताखोरों की वैकेंसी, नहीं हुई नई भर्ती

Admin Delhi 1
9 Jan 2023 2:12 PM GMT
दस साल पहले निकली गोताखोरों की वैकेंसी, नहीं हुई नई भर्ती
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कोटा: शहर ही नहीं ग्रामीण और संभाग के अन्य जिलों तक में जरूरत पड़ने पर न केवल चम्बल नदी व नहों से शवों को निकाल रहे वरन् हर वो खतरनाक काम कर रहे हैं जिसे कोई नहीं कर सकता। बरसों से यही काम करने के बाद भी स्थायी नहीं करने के कारण मात्र 250 रुपए दैनिक मजदूरी पर काम करना पड़ रहा है। दस साल पहले निकली वैकेंसी पर नई भर्ती भी नहीं की गई है। यह हालत है नगर निगम में सेवाएं देने वाले गोताखोरों की। गोताखोर का इंटरनेशनल सर्टिफिकेट प्राप्त करीब दो दर्जन से अधिक गोताखोर नगर निगम में पिछले 10-15 साल से सेवाएं दे रहे हैं। उसके बाद भी उन्हें न तो स्थायी किया जा रहा है और न ही गोताखोरों की नई भर्ती की जा रही है। हालत यह है कि दस साल पहले वर्ष 2013 में स्वायत्त शासन विभाग ने संभाग स्र पर 10-10 गोताखोरों की भर्ती की वैेकेंसी निकाली थी। लेकिन अभी तक उस वैकेंसी का कुछ नहीं हुआ है। निगम में संविदा पर काम कर रहे गोताखोर स्थायी होने व वेतन बढ़ने की उम्मीद लगाए हुए हैं। लेकिन उनकी यह उम्मीद फिलहाल पूरी होती नजर नहीं आ रही है। वर्ष 2017 तक जहां गोताखोरों को 217 रुपए दैनिक मजदूरी मिल रही थी। उसे 6 साल बाद 2022 में बढ़ाकर मात्र 249 रुपए किया गया है।

त्यौहार पर मिठाई तक नहीं: गोताखोरों का कहना है कि वे हर खतरनाक काम कर रहे हैं। उसके बाद भी उनक कोई पहचान तक नहीं है। अधिकारी उन्हें पहचानते तक नहीं हैं। यहां तक कि त्योहारों पर न तो उन्हें कोई प्रोत्साहन राशि दीे जाती है और न ही मिठाई । जबकि वे त्योहार पर अतिरिक्त ड्यूटी करते हैं।

दो माह से नहीं मिला वेतन: गोतखोरों ने बताया कि एक तो उनसे मात्र 249 रुपए दैनिक मजदूरी पर काम लिया जा रहा है। वह भी कभी समय पर नहीं दी जाती। वर्तमान में भी दो महीने से भुगतान नहीं किया गया है। जिससे उन पर आर्थिक संकट मंडरा रहा है। गोताखोरों का कहना है कि इस संबंध में संवेदक से कहते हैं तो वह निगम से बिल पास नहीं होने की बात कहकर टाल देता है। जबकि निगम की संविदा शर्त में हर महीने की दस तारीख को भुगतान करने का निमय है। लेकिन कभी की दस तारीख को भुगतान नहीं किया गया। यहां तक कि कई संवेदक बदल चुके हैं। लेकिन कोई भी सुनवाई नहीं करता।

गोताखोरों को भी दी जाएगी इनामी राशि: एएसपी प्रवीण जैन ने बताया कि एसपी ने घोषणा की है तो गोताखोरों को भी इनामी राशि दी जाएगी। अभी तक पूरी राशि नहीं मिली है। जितनी मिली थी उसमें से कुछ ही पुलिस कर्मियों को दी गई है। कई सारे पुलिस कर्मी भी शेष हैं। इसलिए राशि मिलने में दरी हो सकती है लेकिन मिलेगी जरूर।

संवेदक को करेंगे पाबंद: नगर निगम अधिकारियों का कहना है कि गोताखोरों को हर महीने समय पर भुगतान करना संवेदक की जिम्मेदारी है। वह निगम में समय पर बिल ही पेश नहीं करते। जिससे बिल पास होने में देरी हो सकती है। लेकिन संवेदक निगम के बिल के भरोसे गोताखोरों के भुगतान में देरी नहीं कर सकता। इसके लिए संवेदक को पाबंद किया जाएगा।

शव निकालने के साथ हर खतरनाक काम कर रहे: नगर निगम में संविदा पर काम कर रहे गोताखोर जावेद, गौरीशंकर, गिर्राज, अकीम, रॉकी डेनियल समेत कई गोताखोरों ने बताया कि उनके पास गोताखोर का इंटरनेशनल सर्टिफिकेट है। उन्हें निगम में संविदा पर काम करते हुए 10 से 15 साल हो चुके हैं। उसके बाद भी अभी तक वे मात्र 249 रुपए दैनिक मजदूरी पर ही काम कर रहे हैं। उनसे शव निकलवाने के साथ ही हर खतरनाक काम कराया जा रहा है। आपदा प्रबंधन हो या आग बुझाना, मवेयिशों को रेस्क्यू करना हो या सांप पकड़ना। कोटा शहर ही नहीं ग्रामीेण व सभाग के अन्य जिलों तक में वे जाकर काम कर रहे हैं। लेकिन फिर भी उन पर किसी का ध्यान नहीं है। गोताखोरों ने बताया कि वर्ष 2013 में संभाग स्तर पर दस-दस गोताखोरों की भर्ती की बैकेंसी निकाली गई थी। लेकिन अभी तक उसका कुछ नहीं हुआ है।

घोषणा के बाद इनाम तक नहीं: गोताखोरों का कहना है कि रामपुरा में हुई ट्यूशन छात्रा की हत्या के मामले में आरोपी का मोबाइल तालाब से तलाशने के बाद फरवरी 2022 में तत्कालीन एसपी केसर सिंह शेखावत ने पुलिस कर्मियों के साथ ही गोताखोरों को भी इनामी राशि देने की घोषणा की थी। जिसमें गोताखोर विष्णु श्रृÞगी को 21 हजार व अन्य 20 गोताखोरों को 11-11 हजार रुपए देने थे। उस घोषणा को एक साल का समय होने वाला है। अभी तक तो उस इनामी राशि का पता ही नहीं है। जबकि कई पुलिस कर्मिर्यों को उस घोषणा की इनामी राशि दी जा चुकी है।

निगम में मात्र 4 स्थायी गोताखोर: नगर निगम कोटा उत्तर व कोटा दक्षिण में वर्तमान में कुल 29 गोताखोर हैं। जिनमें से 25 संविदा पर काम कर रहे हैं। जबकि मात्र 4 ही स्थायी हैं। जिनमें विष्णु श्रृंगी, चंगेज खान, प्रदीप तुम्बा व मधुकांत हैं।

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