राजस्थान
अनोखा मंदिर: यहां होती है भगवान शिव के अंगूठे की पूजा, जानें खास मान्यताएं
Gulabi Jagat
10 Aug 2022 8:24 AM GMT
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अनोखा मंदिर
राजस्थान में भारत का एकमात्र ऐसा मंदिर जहां पर भगवान शिव के अंगूठे की पूजा की जाती है। लोगों का मानना है कि मंदिर में दर्शन मात्र से मोक्ष प्राप्ति हो जाती है। आपने अक्सर शिवलिंग के दर्शन किए होंगे, शिव प्रतिमा के दर्शन किए होंगे लेकिन इस मंदिर में भगवान के शिव के दाहिने अंगूठे के दर्शन करने श्रद्धालु आते हैं (रिपोर्टर- प्रतीक सोलंकी)
सिरोही के हिल स्टेशन माउंट आबू से करीब 11 किलोमीटर दूर अचलगढ़ की पहाड़ियों पर अचलेश्वर महादेव मंदिर है। इस मंदिर में प्रवेश करते ही पंच धातु की बनी नंदी की प्रतिमा दिखाई देती है। बताया जाता है कि मूर्ती का वजन चार टन है।
मंदिर के अंदर गर्भगृह में शिवलिंग पाताल खंड के रूप में दिखाई देता है। इसके ऊपर एक तरफ पैर के अंगूठे का निशान उभरा है। यह शिव का दाहिना अंगूठा माना जाता है। कहा जाता है कि इसी अंगूठे ने माउंटआबू के पहाड़ को थाम रखा है. लोगों का मानना है कि जिस दिन निशान गायब हो जाएगा, उस दिन माउंटआबू के पहाड़ खत्म हो जाएंगे।
सिरोही राजघराने के देवत सिंह बताते हैं कि मंदिर को लेकर पौराणिक कथा है कि आबू पर्वत के नीचे ब्रह्मा खाई थी. इसी के पास वशिष्ठ मुनि रहते थे। उनकी कामधेनु गाय एक बार ब्रह्म खाई में गिर गई। तब उसे बचाने के लिए मुनि ने सरस्वती और गंगा का आह्वान किया। इसके बाद ब्रह्म खाई पानी से जमीन की सतह तक भर गई। ऐसे में कामधेनु गाय बाहर आ गई।
हादसे को टालने के लिए वशिष्ठ मुनि ने हिमालय जाकर ब्रह्म खाई को पाटने का अनुरोध किया। तब हिमालय ने अपने पुत्र नंदी वद्रधन को खाई पाटने का काम सौंपा। कहते हैं कि अर्बुन नाग नंदी वद्रधन को उड़ाकर ब्रह्म खाई के पास वशिष्ठ आश्रम लाया था। आश्रम में नंदी वद्रधन ने वरदान मांगा कि उसके ऊपर सप्त ऋषियों का आश्रम होना चाहिए। वहीं पहाड़ सबसे सुंदर और वनस्पतियों वाला होना चाहिए।
वशिष्ठ ने वरदान दिया। इसी प्रकार अर्बुद नाग ने वर मांगा कि पर्वत का नामकरण उसके नाम से हो। वरदान मिलते ही नंदी वद्रधन खाई में उतरा तो वो धंसता ही गया। केवल नंदी वद्रधन की नाक और ऊपर का हिस्सा जमीन से ऊपर रहा, जो अब आबू पर्वत है।
स्थानीय लोगों का कहना है कि यहां पर मुगलों ने भी मंदिर में आक्रमण किया था, लेकिन नंदी की प्रतिमा से निकले हजारों की तादाद में भंवरों ने अपने डंक से पूरी सेना को घायल कर दिया था। हार कर मुगलों ने सारे हथियार के दांतों को गलाकर वहां पर त्रिशूल बनाया था।
Source: aapkarajasthan.com
Gulabi Jagat
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