टाइगर-लॉयन की दोपहरी 44 टेम्प्रेचर में फव्वारों के बीच कट रही
कोटा: तापमान बढ़ने के साथ ही गर्मी के तेवर भी तीखे हो गए। गर्म हवाओं थपेड़ों से इंसान ही नहीं बेजुबान भी बेहाल हैं। 44 डिग्री टेम्प्रेचर में जहां शहर आग की तरह तप रहा है, वहीं अभेड़ा बायोलॉजिकल पार्क में पानी के फव्वारों के बीच वन्यजीव की मौज हो रही है। भरी गर्मी में भी मांसाहारी जानवर कूल हैं। दरअसल, अभेड़ा बायोलॉजिकल पार्क में टाइगर, लॉयन, पैंथर और भालू के एनक्लोजर में फोगर्स व स्प्रेंगल लगाए गए हैं, जो दिनभर पानी की बौछार कर गर्म हवाओं को ठंडी हवाओं में तब्दील कर राहत पहुंचा रहे हैं।
4 जगहों पर लगे 20 से ज्यादा फोगर्स
अभेड़ा बायोलॉजिकल प्रशासन ने चार वन्यजीवों के एनक्लोजर में करीब 20 से ज्यादा फोगर्स लगाए हैं। यह पाइपों के माध्यम से पानी की टंकी से कनेक्ट हैं। दिनभर फोगर्स फ्व्वारों के रूप में पानी की बौछार करते हैं। जिससे गर्म हवाए ठंडी हवा में तब्दील होकर वन्यजीवों को राहत पहुंचाती है। साथ ही जमीन ठंडी करने के लिए कई जगहों पर स्प्रेंगल भी लगाए गए हैं।
डक्टिंग से नाइट शेल्टर हुए कूल
लॉयन, बाघ, बाघिन, पैंथर, भेड़िए, सियार व भालू के पिंजरे डक्टिंग की ठंडी हवाओं से कूल हो गए हैं। वे कभी नाइट शेल्टर में आराम करते हैं तो कभी डिस्प्ले एरिया में अपनी गुफाओं में बैठे रहते हैं। इसके अलावा एनक्लोजर में फोगर्स व स्प्रिंगलर लगवाए गए हैं। फव्वारों से गिरता पानी हवा के साथ वन्यजीवों को ठंडक पहुंचा रहा है। सुहासिनी दिनभर शेड की छांव के नीचे तो नाहर व महक फव्वारों के आसपास ही बैठे नजर आ रहे हैं। हालांकि सभी वन्यजीवों के एनक्लोजर में दो-दो गुफा बनी हुई है, जहां अक्सर दोपहर को आराम फरमाते हैं।
12 एनक्लोजर में लगेंगे 100 से ज्यादा फोगर्स
वरिष्ठ वन्यजीव चिकित्सक डॉ. विलासराव गुल्हाने ने बताया कि टाइगर, लॉयन, पैंथर और भालू के एनक्लोजर में ही फोगर्स लगाए हैं। जल्द ही 12 एनक्लोजर में 100 से अधिक फोगर्स लगाए जाएंगे। इनमें शाकाहारी व मांसाहारी वन्यजीव शामिल हैं। हालांकि सांभर व नीलगाय के एनक्लोजर में इसकी जरूरत नहीं है, क्योंकि यहां पेड़ों की संख्या अधिक हैं। जिससे एनक्लोजर व नाइट शेल्टर ठंडे रहते हैं।
पानी में अळखेलियां कर रहे टाइगर और भेडिए
बायोलॉजिकल पार्क में भेड़िए व टाइगर दोपहर व शाम के समय एनक्लोजर में बने पानी की होद में अळखेलियां करते नजर आते हैं। भेड़िए दोपहर को अधिकतर समय नाइट शेल्टरों में ही बैठे रहते हैं। जब पर्यटक आते हैं तो उनकी चहल कदमी की आवाज सुन बाहर डिस्पले एरिया में दौड़े चले आते हैं। वहीं, टाइगर व लॉयन दोपहर को पानी की होद में बैठ गर्मी से राहत पाने का जतन करते नजर आते हैं। इनके एनक्लोजर की जालियों में ग्रीन नेट भी बांधी गई है ताकि सूरज की सीधे किरणों से राहत मिल सके।
गर्मी में बदल जाता है वन्यजीवों का स्वभाव
डॉ. गुल्हाने के अनुसार, गर्मियों में सबसे ज्यादी परेशानी मांसाहारी वन्यजीवों को होती है। इनके शरीर का तापमान अधिक होता है इसलिए इनका विशेष ध्यान रखा जाता है। गर्मियों में एनीमल स्ट्रेस में रहता है। इससे उनके स्वभाव में चिड़चिड़ापन आता है। यह सुबह से शाम तक डिस्प्ले एरिया में रहते हैं, जिससे हीट स्ट्रॉक व तापघात के खतरे की आशंका रहती है। ऐसे में गर्मी से बचाव के लिए विशेष इंतजाम किए गए हैं। फोगर्स व स्प्रेंगल से लगातार पानी का छिड़काव कर इनके आसपास का वातावरण ठंडा रखा जाता है। साथ ही छांव के लिए शेड बनाए गए हैं।
डक्टिंग में कटती भालू की दोपहरी
भालू के एनक्लोजर में बड़े पेड़-पौधे नहीं होने से दोपहर को छांव नहीं रहती। हालांकि, शेड बना हुआ है लेकिन धूप की सीधी किरणों के कारण गर्मी से राहत नहीं मिल पाती। छायादार जगह नहीं होने से भालू दिनभर शेल्टर की खिड़की में बैठा रहता है। डक्टिंग चलने से पिंजरा कूल रहता है। वह ठंडी हवा के बीच खिड़की से बाहर का नजारा देखता है। हालांकि, शाम 4 बजे के बाद वह एनक्लोजर में अळखेलियां करता नजर आता है।
एनक्लोजर पर लगवाई ग्रीन नेट
शाकाहारी वन्यजीवों के एनक्लोजर में स्प्रिंगलर के साथ ग्रीन नेट भी लगवाई गई है। दोपहर को चीतल, चिंकारा, ब्लैक बक शेड के नीचे बैठे नजर आए। इनके पिंजरों में बड़ी-बड़ी खिड़कियां हैं, जिनपर खसखस की टाटियां भी लगाई गई है। यह टाटियों पर पानी का छिड़काव किया जाता है ताकि हवा के साथ उन्हें ठंडक का अहसास होता रहे।
इनका कहना है
अभेड़ा बायोलॉजिकल पार्क में वन्यजीवों का विशेष ध्यान रखा जा रहा है। गर्मी से बचाव के सभी जरूरी प्रबंध किए गए हैं। टाइगर, लॉयन, पैंथर, भालू के एनक्लोजर में जनसहयोग से फोगर्स व स्प्रिंगल लगवाए गए हैं। वहीं, सभी मांसाहारी वन्यजीवों के नाइट शेल्टरों में डक्टिंग शुरू कर दी गई है। शाकाहारी वन्यजीवों के बाड़े में ग्रीन नेट लगवाई गई है। अधिक से अधिक फोगर्स लगवाने के प्रयास किए जा रहे हैं।
- सुनील गुप्ता, डीएफओ, अभेड़ा बायोलॉजिकल पार्क