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मकर संक्रांति को हिंदू धर्म का एक प्रमुख पर्व माना जाता है। मकर संक्रांति को भारत के अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग नामों से जाना जाता है। राज्याचार्य पंडित प्रकाश चंद जाति ने बताया कि भगवान सूर्य के राशि परिवर्तन के उपलक्ष्य में मकर संक्रांति का पर्व मनाया जाता है. इस दिन भगवान सूर्य देव धनु राशि से निकलकर मकर राशि में प्रवेश करते हैं। भगवान सूर्य के मकर राशि में प्रवेश को मकर संक्रांति कहते हैं।
लेकिन इस बार ग्रहों के राजा सूर्य देव 14 जनवरी 2023 को रात 8 बजकर 21 मिनट पर मकर राशि में गोचर करेंगे। 15 जनवरी को उदया तिथि प्राप्त हो रही है। ऐसे में 15 जनवरी को मकर संक्रांति मनाई जाएगी. इस दिन सूर्योदय के बाद दान-पुण्य किया जा सकता है।
राज्याचार्य पंडित प्रकाश चंद जाति ने बताया कि भगवान सूर्य के मकर राशि में प्रवेश के साथ ही विवाह आदि मांगलिक कार्य भी शुरू हो जाते हैं। उत्तरायण काल का महत्व हमारे प्राचीन शास्त्रों में भी मिलता है। उत्तरायण काल को मोक्ष काल भी कहा जाता है। मान्यता है कि इस काल में जिस प्राणी की मृत्यु होती है। उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है। वह बार-बार के जीवन-मरण के चक्र से मुक्त हो जाता है। संक्रांति के दिन जल में तिल डालकर स्नान करना चाहिए।
उन्होंने बताया कि मकर संक्रांति के दिन स्नान अवश्य करना चाहिए। हमारे प्राचीन शास्त्रों में लिखा है कि जो व्यक्ति इस दिन स्नान नहीं करता वह दरिद्र और रोगी बना रहता है। मकर संक्रांति का संबंध सूर्य और शनि से होने के कारण इस पर्व पर तिल का विशेष महत्व है। इसलिए इस दिन जल में तिल डालकर स्नान करना चाहिए। तिल से स्नान करने से व्यक्ति निरोगी होता है। साथ ही शनि ग्रह का शुभ प्रभाव मिलता है। यदि कोई व्यक्ति किसी गंभीर रोग से पीड़ित है तो उसे मकर संक्रांति के दिन पूरे शरीर पर तिल का लेप लगाकर स्नान करना चाहिए। इससे उन्हें गंभीर बीमारी से राहत मिलती है। साथ ही किसी गरीब व्यक्ति को तिल से बनी गर्म तासीर की चीजों का दान करना चाहिए।

Admin2
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