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अलवर। अलवर जिला परिषद एक बार फिर अपने निर्णय को लेकर सुर्खियों में है। आरोप लगे हैं कि 15 लिपिकों को पदोन्नति का लाभ देने के लिए पूर्व में तैनात किए गए करीब 400 लिपिकों को दरकिनार कर दिया गया। परिषद ने जिस नियम का हवाला देकर अस्थायी वरिष्ठता सूची जारी की है, उस नियम के तहत ही प्रदेश के कई जिलों ने ये सूची जारी की है, जिसमें उन्होंने पूर्व में तैनात किए गए लिपिकों को ही वरिष्ठ माना है। इस निर्णय से तमाम लिपिकों में असंतोष फैला हुआ है। अब वह हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाने की तैयारी कर रहे हैं। मार्च में जारी की थी अस्थायी वरिष्ठता सूची : पंचायती राज लिपिकों की एक अस्थायी वरिष्ठता सूची 14 मार्च 2023 को पूर्व सीईओ ने जारी की थी। उस सूची में वर्ष 2013 के लिपिकोें को ऊपर रखा गया था और 2014 के बाबुओं को सूची में नीचे रखा गया था। आपत्तियां 28 मार्च तक मांगी गई थी और विकास अधिकारियों को 31 मार्च तक इसका प्रमाण पत्र देने के लिए कहा गया था। आरोप है कि जिला परिषद ने वर्ष 2014 में लगे लिपिकों को फायदा देने के लिए स्थाई सूची का प्रकाशन 6 महीने तक रोके रखा। अब 6 महीने बाद 4 दिन पहले फिर से जो अस्थाई सूची जारी की गई है उसमें जुलाई के सर्कुलर का हवाला दिया गया है। यानी की 6 महीने तक सूची को जुलाई के सर्कुलर आने के इंतजार में रोका गया।
इन जिलों के निर्णय सराहे जा रहे : नागौर, जोधपुर, बांसवाड़ा, गंगानगर, हनुमानगढ़, सवाई माधोपुर, बाड़मेर, जालौर, झुंझुनूं आदि जिलों ने भी अस्थायी वरिष्ठता सूची जारी की है। इन जिलों ने भी उसी नियम के तहत सूची जारी की है जिस नियम के तहत जिला परिषद अलवर ने जारी की है लेकिन इन सभी जिलों ने वर्ष 2014 की बजाय वर्ष 2013 में चयनित बाबुओं को सीनियर मानते हुए सूची जारी की है। अलवर. भले ही काम कर रहे अधिकारियों व कर्मचारियों को वेतन न मिले लेकिन रिटायर्ड कर्मचारियों को जरूर वेतन जारी किया जा रहा है। इसी तरह पेंशन के लिए भी कई लोगों को बाधा हो रही हैं लेकिन यहां मृतक प्रोफेसर के खाते में दो साल से भी पेंशन जारी की जा रही है। दोनों ही मामला चौंकाने वाले हैं जो अब सार्वजनिक हुए और चर्चा में हैं। एक मामला ट्रेजरी ने खुद पकड़ा तो प्रोफेसर के परिजनों से करीब 32 लाख रुपए जमा कराने का नोटिस जारी किया है। दूसरे मामले से अभी अफसर अनभिज्ञ हैं।
राजर्षि कॉलेज में वाणिज्य विभाग से रिटायर्ड प्रोफेसर डॉ. शशिकांत गुप्ता का वर्ष 2021 में निधन हो गया। उसी समय उनकी पत्नी का भी निधन हो गया। बताया जाता है कि कोरोना के चलते ऐसा हुआ। निधन के बाद प्रोफेसर की पेंशन पर रोक लग जानी चाहिए थी लेकिन ट्रेजरी की ओर से लगातार जारी की जा रही। बताते हैं कि दो से ढाई साल तक पेंशन जारी हुई। करीब 32 लाख रुपए खाते में भेजे गए। नियम है कि पेंशनधारकों को हर साल अपना जीवित प्रमाण पत्र देना होता है। अब सवाल ये खड़ा हुआ है कि बिना इस प्रमाण पत्र के पेंशन किस आधार पर जारी हुई? हालांकि अब ट्रेजरी के जिम्मेदार अधिकारियों की आंखें खुली तो उन्होंने प्रोफेसर के परिजनों को नोटिस भेजकर पैसे जमा कराने के लिए कहा है। बताया जाता है कि पेंशन की जारी हुई रकम से करीब चार लाख रुपए टीडीएस के कट गए। ऐसे में प्रोफेसर के खाते में करीब 28 लाख रुपए हैं। अब चार लाख रुपए का पेंच फंसा हुआ है। हालांकि अफसर पैसे वसूलने की बात कर रहे हैं।
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