राजस्थान

भरतपुर में आज भी मौजूद है श्री कृष्ण की चरणों के निशान, जानिए 84 कोसीय परिक्रमा का महत्व

Renuka Sahu
19 Aug 2022 3:58 AM GMT
The footprints of Shri Krishna are still present in Bharatpur, know the importance of 84 Kosi Parikrama
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फाइल फोटो 

राजस्थान के भरतपुर जिले के कामां क्षेत्र में भगवान श्री कृष्ण की चरणों के निशान आज भी मौजूद हैं।

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। राजस्थान के भरतपुर जिले के कामां क्षेत्र में भगवान श्री कृष्ण की चरणों के निशान आज भी मौजूद हैं। इसलिए यहां की एक पहाड़ी को चरण पहाड़ी के नाम से जाना जाता है। बताया जाता है कि जब रासलीला के दौरान भगवान श्री कृष्णा गोपिकाओं से छुप गए तो एक जगह पर खड़े होकर बंसी बजाने लगे। उसी जगह पर पहाड़ी पर उनके चरणों के निशान पड़ गए। इसी स्थान को चरण पहाड़ी के नाम से जाना जाने लगा। ब्रज 84 कोस में डीग क्षेत्र में स्थित केदारनाथ धाम के महंत बाबा सुखदास के मुताबिक नंद बाबा और यशोदा माता को 80 वर्ष की उम्र में भगवान श्री कृष्ण के रूप में संतान का सुख मिला। जब भगवान श्री कृष्ण 3 वर्ष के हो गए तो उनकी लीलाएं शुरू हो गई. गोपाष्टमी के दिन भगवान श्री कृष्ण ने गाय चराना शुरू किया। एक दिन जब भगवान श्री कृष्ण गाय चरा कर घर लौटे तो मिट्टी से लथपथ उनकी मनमोहक छवि देख कर नंद बाबा और यशोदा माता ने चार धाम करने की इच्छा जाहिर की।

भगवान कृष्ण ने ब्रजक्षेत्र में चारों धामों को प्रकट कर दिया
भरतपुर का पूरा ब्रज क्षेत्र भगवान श्री कृष्ण की लीला स्थली के रूप में पहचाना जाता है। लेकिन ब्रज क्षेत्र की 84 कोसीय परिक्रमा (करीब 268 किमी क्षेत्र) को भगवान श्री कृष्ण की जन्मस्थली, रासलीला और चारों धामों को प्रकट करने की कथाओं के रूप में विशेष रूप से जाना जाता है। बाबा सुखदास ने बताया कि जब भगवान श्री कृष्ण ने चारों धामों को प्रकट कर दिया, तो ब्रज के सभी लोग चारों धाम के दर्शन करने के लिए एकत्रित हो गए. देवताओं को भी ब्रज में चारों धामों के प्रकट होने की जानकारी मिली तो 33 कोटि देवी-देवता मानव रूप धारण कर ब्रज पहुंच गए और चारों धामों के दर्शन किए. बाबा सुखदास ने बताया कि भगवान श्री कृष्ण ने योगमाया से सभी श्रद्धालुओं को ऐसा महसूस करा दिया कि मानो वो उत्तराखंड में स्थित चारों धामों की यात्रा कर रहे हैं. जो व्यक्ति उत्तराखंड नहीं जा पाते वो बृज के गंगोत्री, यमुनोत्री, आदिबद्री धाम और केदारनाथ तीर्थ स्थलों पर पहुंचकर चारों धामों की यात्रा का पुण्य कमा सकते हैं.
ब्रज की चौरासी कोस की परिक्रमा श्री कृष्ण की लीलास्थली की गवाह
वेद, पुराण और धार्मिक ग्रंथों में भी ब्रज की चौरासी कोस की परिक्रमा का बड़ा महत्व बताया गया है। इस परिक्रमा के संबंध में वाराह पुराण में बताया गया है कि पृथ्वी पर 66 अरब तीर्थ हैं और वे सभी चातुर्मास में ब्रज में आकर निवास करते हैं। इस वजह से भी पूरे ब्रज क्षेत्र और चौरासी कोस की परिक्रमा का धार्मिक महत्व काफी बढ़ जाता है। क्या है 84 कोसीय परिक्रमा मेंः असल में ब्रज चौरासी कोस की परिक्रमा राजस्थान के साथ ही उत्तर प्रदेश के मथुरा और हरियाणा के होडल जिले के गांव से होकर गुजरती है। बताया जाता है कि इस परिक्रमा मार्ग के आसपास कुल करीब 1300 गांव पड़ते हैं। पूरा चौरासी कोस परिक्रमा मार्ग करीब 268 किलोमीटर क्षेत्र में फैला हुआ है। इस परिक्रमा मार्ग और क्षेत्र में भगवान श्रीकृष्ण की लीलाओं से जुड़े हुए 1100 तालाब, सरोवर, वन, उपवन और पहाड़ हैं। ये सभी भगवान श्री कृष्ण की लीलास्थली के गवाह हैं। परिक्रमा मार्ग में यमुना नदी, तमाम मंदिर भी पड़ते हैं, जिनमें श्रद्धालु दर्शन करते हुए परिक्रमा देते हुए निकलते हैं।
परिक्रमा करने पर अश्वमेध यज्ञ का फल मिलता
नंद बाबा और माता यशोदा ने भगवान श्री कृष्ण से चार धाम की यात्रा पर जाने के लिए कहा. इस पर भगवान श्री कृष्ण ने माता-पिता की बुजुर्ग अवस्था को देखकर कहा कि मैं चारों धामों को यहीं पर बुला देता हूं। इसके बाद भगवान श्री कृष्ण के आह्वान और योगमाया से 5000 वर्ष पूर्व गंगोत्री, यमुनोत्री, केदारनाथ, बद्रीनाथ, लक्ष्मण झूला और हरि की पौड़ी आदि ब्रज क्षेत्र में ही प्रकट हो गए। मान्यता है कि जो व्यक्ति 84 कोस की परिक्रमा लगा लेता है उसे 84 लाख योनियों से छुटकारा मिल जाता है. शास्त्रों में बताया गया है कि 84 कोस की परिक्रमा करने वालों को अश्वमेध यज्ञ का फल भी मिलता है और उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है।
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