महावीर नगर प्रथम इंग्लिश मीडियम सरकारी स्कूल के हालात,डर के साये में पढ़ते हैं बच्चे
कोटा: हम लाए है तूफान से कश्ती निकाल के, इस देश को रखना मेरे बच्चों संभाल के, सालों पहले आई हिन्दी फिल्म जागृति में मोहम्मद रफी के गाए इस गीत की पंक्तियां उस समय खुद आंसू बहाने लगेगी जब वो शहर के महावीर नगर प्रथम में स्थित महात्मा गांधी राजकीय विद्यालय में बच्चों के लिए अध्ययन के लिए बने कक्षों और स्कूल परिसर के हालातों को देख ले। विद्यालय का स्टॉफ बताता हैं कि छतों के स्थिति को देखते हुए कई बच्चों को बाहर ही बनी गैलरी में बैठाकर पढ़ाया जाता है लेकिन उस गैलेरी की हालात भी खराब ही है। इस तरह से टाइल्स लगाई गई है जो बीच में एक हल्के गड्ढेंÞ का अहसास करवा देती है। अब बच्चें पढ़े तो भी कैसे। भले ही शहर में करोड़ों रूपए के विकास कार्य करवाएं जा रहे हैं, सोन्दर्यकरण के नाम पर पैसा लगाया जा रहा है लेकिन वे भवन आज भी जर्जरावस्था में हैं, जहां हमारे देश की भावी पीढ़ी तैयार हो रही है जहां बच्चों का बचपन फल-फूल तो रहा है लेकिन डर के साये में। बात हो रही है यहां शहर के उस विद्यालय की जो सरकारी भी है और इंग्लिश मीडियम भी लेकिन इस स्कूल के कक्षा कक्षों के हालात इतने बुरे हैं कि कब कौनसा हादसा हो जाए कोई नहीं कह सकता है। अभी हाल ही लगभग 15 दिन पूर्व एक कक्षा कक्ष की छत से प्लास्टर गिर गया और नीचे बैठा कक्षा 5 का एक बच्चे के सिर पर गहरी चोट आई। उस बच्चे के दो या तीन टांकें भी आए थे।
दरअसल छतों से हुआ प्लास्टर, साफ नजर आते सरिए, बेरतबीत तरीके से लगाई गई टाइल्स। ऐसे ही कुछ हालात हैं, नारकोटिक्स विभाग के पीछे की ओर महावीर नगर प्रथम स्थित महात्मा गांधी राजकीय विद्यालय के। इस स्कूल के कक्षा कक्षों को देखने के बाद हमारे शहर के स्मार्ट सिटी के दावों का धरातल साफ नजर आ जाएगा। जहां आज भी बच्चे टॉयलेट जैसी मूलभूत सुविधा के लिए तरस रहे हैं। लगभग हर कक्षा कक्ष की छत का प्लॉस्टर हट चुका है और सरिए साफ नजर आ रहे हैं लेकिन विभाग के आलाधिकारी स्कूल प्रशासन को सिर्फ आश्वासन ही दे रहा है। इस सरकारी स्कूल में कक्षा 1 से 5 तक के 134 बच्चे पढ़ते हैं और यहां 9 जनों का स्टॉफ है। अभी गत नवम्बर में ही स्कूल को इंग्लिश मीडियम का दर्जा भी दिया गया था लेकिन इसके कक्षा कक्षों के हालात बद से बदत्तर है। यह स्कूल इस जगह पर साल 2002 सें ही संचालित हो रहा है। जिस परिसर में स्कूल चल रहा है। वहां बच्चों के खेलने के नाम पर एक ग्राउंड भी है जो मैदान कम और चोट खाने का स्थान ज्यादा है। पूरा मैदान उखड़ा पड़ा है। ग्राउंड के बीच एक लाइट का खंभा सालों से पड़ा हुआ है। वहीं उसी ग्राउंड में पशुपालक पशुओं को चराने भी ले आते हैं। बच्चों को शौचालय के लिए भी खुले में ही जाना पड़ता है।
इनका कहना हैं
हमने जिला प्रशासन से लेकर विभागीय उच्चाधिकारियों को कई बार सूचित किया है। विभाग की ओर से जवाब मिलता है कि बजट आएगा तब करवाएंगे। अब स्कूल के पास तो बजट है नहीं। कभी स्कूल चैक करने के लिए आते हैं तो उन्हे भी बताते है।
-मनिंदर कौर, प्रधानाचार्य।