राजस्थान

प्रशिक्षकों ने कहा नहीं है कम लड़कों से यहां की लड़कियां

Admin Delhi 1
28 March 2023 3:04 PM GMT
प्रशिक्षकों ने कहा नहीं है कम लड़कों से यहां की लड़कियां
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कोटा: बास्केटबॉल एक ऐसा खेल हैं जिस पर कुछ सालों पहले तक लड़कों का ही आधिपत्य माना जाता था। यानि इस खेल को लड़कों का ही खेल माना जाता था लेकिन बीते कुछ सालों में इस खेल में लड़Þकियों ने भी अपना दम दिखाया हैं। कोटा की लड़कियों ने भी बास्केटबॉल में राष्टÑीय और राज्य स्तर पर अपनी अलग ही पहचान बनाई है।बताया जाता हैं कि इस खेल के ग्राउंड में अब तक शहर की लगभग 500 से लड़कियां पसीना बहा चुकी हैं। कोटा के लिए लड़कियों के क्षेत्र में सबसे बड़ी उपलब्धि नेत्रा रावत का अन्डर-18 आयु वर्ग में इंडिया कैंप में खेलना है। बास्केटबॉल खेलने वाली इन लड़कियों का प्रशिक्षण देने वालों का कहना है कि इस खेल में कोटा की लड़कियां बीते कई सालों से मेहनत कर रही हैं और इसी का परिणाम है कि हर वर्ष यहा की करीब 40-50 लड़कियां स्टेट और 4-5 लडकियां नेशनल खेलने जाती है और वहां शानदार प्रदर्शन करती हैं। हाल ही में सीबीएसई कलस्टर टूर्नामेंट में कोटा की टीम राजस्थान में तीसरे नम्बर पर रही है।

प्रशिक्षक बताते हैं कि इन लड़कियों को इनके परिजनों का भी बहुत अच्छा सपोर्ट मिलता है। फिलहाल नयापुरा स्टेडियम, उम्मेद क्लब और विजयवहर स्टेडियम सहित स्कूली ग्राउंड पर यहां की बेटियां बास्केटबॉल का अभ्यास कर रही है। इन स्थानों पर ये लड़कियां रोजाना करीब 3 घंटे प्रैक्टिस करती है। प्रशिक्षकों का कहना है कि बास्केटबाल राजस्थान का राज्यीय खेल है इसलिए अन्य खेलों की अपेक्षा इसमें ज्यादा प्रतिस्पर्द्धा है लेकिन इसके बाद भी हमारे शहर की बेटियों ने इस खेल में अपना परचम फहराया है, नाम कमाया है। कोटा में बास्केटबॉल की 5 खेल अकादमी हैं। इन सभी अकादमियों में 500 से अधिक खिलाड़ी अभ्यास करते हैं और इनमें लड़कियों की संख्या लड़कों से अधिक है। अगर इन बेटियों को सही प्रशिक्षण मिलती रहे तो इन लड़कियों को खेल के कोट से अच्छी सरकारी नौकरी भी मिल सकती है। अब तक कोटा की मोरवी खंडेलवाल, निमिशा शर्मा, रिवा जायसवाल, साक्षी तथा चार्वी जाजू सहित कई बेटियों ने बास्केटबाल में अलग मुकमा हांसिल किया है।

इनका कहना हैं

साल 2018 से ही बास्केटबॉल खेल रही हंू। सुबह स्कूल में 2 घंटे और शाम को अकादमी में लगभग डेढ़ घंटे अभ्यास करती हंू। पहले मैं बेडमिंटन खेलने जाती थी तो वहां कई बच्चों को बास्केटबाल खेलते देखा तो इस खेल में रूचि बढ़ी। मम्मी-पापा खूब मोटिवेट करते हैं। पढ़ाई पर कोई फर्क नहीं पड़ता है उल्टा डबल एनर्जी से पढ़ाई करती हंू।

-चार्वी जाजू, बास्केटबॉल खिलाड़ी, कोटा।

इस खेल में अधिक प्रतिस्पर्द्धा होने के बाद भी कोटा की लड़कियों ने अपनी अलग ही पहचान बनाई है। बीते कुछ सालों से यहां की लड़कियां ग्राउंड पर खूब पसीना बहा रही है। लड़कियों ने बास्केटबॉल में जो परिणाम दिए है उसमें इनके परिजनों का भी पूरा सहयोग है।

-शाहबाज, कोच

बीते 6-7 साल से बास्केटबॉल खेल रही हंू। एक बार स्कूल में कैंप लगा था। तभी से इस खेल में रूचि बढ़ी। रोजाना करीब 2 घंटे अभ्यास करती हंू। प्रैक्टिस का पढ़ाई पर कोई फर्क नहीं पड़ता है। दोनों अपनी-अपनी जगह हैं। मम्मी-पापा खूब सपोर्ट करते हैं। इनके सपोर्ट से ही नेशनल तक खेल सकी हंू।

-निमिशा शर्मा, बास्केटबॉल खिलाड़ी, कोटा।

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