एसीबी कार्रवाई में रिश्वतखोरों के नाम न बताने का मामला, भ्रष्टाचारियों को बचा रही सरकार
जयपुर: भाजपा के प्रदेशाध्यक्ष सतीश पूनिया ने एसीबी के भ्रष्टाचारियों के नाम और पहचान छिपाने के आदेश पर कहा है कि भ्रष्टाचार और जीरो टालरेंस पर यह सरकार का यू-टर्न है। अशोक गहलोत सरकार का यह तुगलकी फरमान है, जिसमें साफ दिख रहा है कि यह आदेश भ्रष्टाचारियों को संरक्षण देने और भ्रष्टाचार को बढ़ावा देने वाला आदेश है, जबकि अपराधी और भ्रष्टाचारी तो बेनकाब होने चाहिए। स्वयं मुख्यमंत्री के कार्यक्रम में पब्लिक डोमेन में स्वीकार किया गया कि तबादलों के लिए रिश्वत ली जाती है। राजस्थान में एसीबी की कार्रवाई का उल्लेख करें तो लगभग प्रतिवर्ष 600 मामले निशाने पर आते हैं। कांग्रेस शासन में कोई ऐसी जगह बची नहीं जहां भ्रष्टाचार नहीं होता हो। एक आंकलन है कि कांग्रेस सरकार के शासन में हर 12 किलोमीटर पर भ्रष्टाचार होता है। भ्रष्टाचार इस चरम पर है कि भ्रष्टाचार का मैन्यू कार्ड बना हुआ है। दबे सुर में अधिकारी भी इस बात को स्वीकार करते हैं। एसीबी ने जो कल आदेश जारी किया है उसमें बताया कि अब जो भ्रष्टाचारी ट्रैप किए जाएंगे, उनकी फोटो और नाम जगजाहिर नहीं किए जाएंगे। यह तो कहा जाता है कि अपराधी को समाज के समक्ष लाओ, जिससे वह शर्मिंदा भी हो। उसकी मानहानि भी हो। कानून अपना काम करेगा।
सीएम भी काले आदेश की तरफदारी कर रहे: राठौड़
विधानसभा में उपनेता प्रतिपक्ष राजेन्द्र राठौड़ ने सीएम अशोक गहलोत के पाली में एसीबी में दिए गए बयान पर कहा है किएसीबी द्वारा भ्रष्ट अधिकारियों-कर्मचारियों को ट्रैप करने के बाद नाम और फोटो जारी नहीं करने का नया आदेश दुर्भाग्यपूर्ण है। हैरानी है कि मुख्यमंत्री भी इस काले आदेश की तरफदारी कर रहे हैं। अपराधी अब बेखौफ होकर भ्रष्टाचार को अंजाम देंगे। सरकार भयभीत है कि भ्रष्ट अधिकारियों-कर्मचारियों के नाम व फोटो सार्वजनिक होने के बाद कहीं सरकार के काले कारनामों की पोल ना खुल जाए। सरकार को आरोपी के मानवाधिकारों की ही इतनी चिंता क्यों है।
आईपीसी व अन्य स्पेशल एक्ट्स के तहत किए अपराधों के आरोपियों को इस सुविधा से क्यों नहीं नवाजा गया। राजस्थान में भ्रष्टाचार दीमक की तरह फैल कर समूचे सरकारी तंत्र को खोखला कर रहा है। एसीबी भ्रष्ट अधिकारियों-कर्मचारियों के खिलाफ कार्रवाई तो करती है, लेकिन सरकारी स्तर पर अभियोजन स्वीकृति नहीं मिलने से दोषी अधिकारी-कर्मचारी खुले में घूमते हैं और फिर से विभाग में पोस्टिंग पाकर अपना धंधा शुरू कर देते हैं।