राजस्थान

पहाड़ियों में स्थित है 900 साल पुराना सुंधा माता का मंदिर

Shantanu Roy
20 Jun 2023 7:30 AM GMT
पहाड़ियों में स्थित है 900 साल पुराना सुंधा माता का मंदिर
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जालोर। राजस्थान अपने पर्यटन क्षेत्रों के साथ-साथ ऐतिहासिक किलों, इमारतों और मंदिरों के अनोखे नमूनों के लिए जाना जाता है। राज्य में तनोट माता, ईडाणा माता समेत कई चमत्कारी मंदिर हैं जहां दूर-दूर से लोग पूजा करने आते हैं। इन्हीं में से एक है जालोर की सुंधा पहाड़ियों में स्थित मां सुंधा का मंदिर। 1200 मीटर से अधिक की ऊंचाई पर स्थित यह मंदिर एक पवित्र धार्मिक स्थल है। मान्यता है कि मां चामुंडा के इस मंदिर में भक्त कभी भी खाली हाथ और निराश होकर नहीं लौटते हैं। मां चामुंडा देवी का यह मंदिर 900 साल से भी ज्यादा पुराना है। यह मंदिर हिल स्टेशन माउंट आबू से 64 किमी और भीनमाल से 20 किमी दूर है। अरावली की पहाड़ियों में स्थित इस मंदिर की खूबसूरती देखते ही बनती है। चारों ओर झरझराते झरने मंदिर की सुंदरता में चार चांद लगाते हैं। गुजरात और राजस्थान से काफी संख्या में पर्यटक इस मंदिर के दर्शन करने आते हैं।
कहा जाता है कि आदि देव ने त्रिपुर राक्षस को मारने के लिए सुंधा पर्वत पर ही तपस्या की थी। इसके अलावा चामुंडा माता की मूर्ति के पास एक शिवलिंग स्थापित है। मंदिर से जुड़ा एक और इतिहास है, जो इसके महत्व को और बढ़ा देता है। वर्ष 1576 में हल्दीघाटी के युद्ध के बाद, मेवाड़ के शासक महाराणा प्रताप ने अपने संकट के दिनों में सुंधा माता की शरण ली। यह भी कहा जाता है कि जालोर के चौहान शासक सुंधा माता के प्रति विशेष आदर रखते थे। इसी भक्ति के कारण उदयसिंह के पुत्र चाचिगदेव ने संवत 1312 में इस मंदिर का निर्माण करवाया। 1319 में अक्षय तृतीया के दिन विधि-विधान से मां चामुंडा की प्रतिष्ठा की गई। हिन्दू धार्मिक मान्यताओं के अनुसार खंडित मूर्ति की पूजा नहीं की जाती है। ऐसे में विभिन्न राज्यों से सुंधा माता के दर्शन करने आने वाले श्रद्धालु अपने साथ खंडित मूर्तियां लाकर पहाड़ पर छोड़ जाते हैं। सुंधा पर्वत पर एक गुफा जैसा भंवर मां के सिर की पूजा करता है। कहा जाता है कि यहां सती की नाक गिरी थी। यह किंवदंती केवल देवी के सिर की पूजा करने की प्रथा का मूल कारण रही होगी। वहीं, मंदिर परिसर में एक दर्जन से अधिक देवी-देवताओं की मूर्तियां मौजूद हैं। नवरात्रि के दौरान यहां मेले का आयोजन किया जाता है। जिसमें काफी संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं।
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