अजमेर न्यूज: वात्सल्य वारिधि एवं राष्ट्र गौरव आचार्यश्री वर्धमान सागर महाराज ने कहा कि आदि पुराण में गर्भ संस्कार का वर्णन है। एक मां भी अपने बच्चों को गर्भ में ही शिक्षित कर सकती है। आजकल गर्भवती माताएं टीवी के सामने बैठकर मनोरंजन की चीजें देखती हैं तो उनके बच्चे संस्कारी कैसे होंगे। उन्होंने पुरानी कहानी अभिमन्यु का उदाहरण देते हुए कहा कि गर्भवती मां के कार्यों और संस्कारों का प्रभाव बच्चों पर पड़ता है।
इंद्रनगर स्थित शांतिनाथ दिगंबर जैन मंदिर व सिटी रोड स्थित चंद्र प्रभु मंदिर के श्रीमद् जिनेंद्र पंचकल्याणक प्रतिष्ठा प्राण महामहोत्सव के दूसरे दिन सोमवार को वर्धमान सभागार में प्रवचन सभा का आयोजन किया गया. जिसमें आचार्यश्री ने एक किसान का उदाहरण देते हुए कहा कि किसान खेत को तैयार कर उसमें बीज बोता है, उस बीज की रक्षा करता है और समय-समय पर उसे खाद-पानी आदि देकर फसल तैयार करता है। उन्होंने अजन्मे बच्चे को अच्छे संस्कारों के साथ शिक्षित करने पर भी जोर दिया।
गर्भपात की बढ़ती प्रवृत्ति पर चिंता व्यक्त करते हुए आचार्यश्री ने कहा कि जो लोग अपने बच्चों का पहले से परीक्षण कराकर कन्या भ्रूण हत्या का जघन्य पाप करते हैं। यह बहुत गलत और धर्म के खिलाफ है। क्योंकि गुणी प्राणी ही गर्भधारण करते हैं, जो आत्महत्या करते हैं, इसका कारण यह है कि उनका पूर्व में गर्भपात हो चुका है, इसलिए उनका जीवन भी अस्थायी है। जीवन में गर्भपात कराने वाले कभी भी लंबी उम्र नहीं पा सकते हैं।
आचार्यश्री के उद्बोधन के पूर्व संघस्थ शिष्य मुनि हितेंद्र सागर ने कहा कि सम्यक् दर्शन दो प्रकार के होते हैं, जिसमें उन्होंने गुरुवाणी के प्रभाव को बताया। जिसके हृदय में गुरु के वचन बस जाते हैं, वह एक गुणी शिष्य बन जाता है। गुरु वचन अमृत औषधी ।