अलवर: अलवर प्रदेश में कॉपर खनिज के मामले में अलवर जिला अग्रणी जिलों में शुमार होता है। यहां का खोह दरीबा कॉपर प्रोजेक्ट देश भर में अलवर का नाम पहुंचा चुका है, हालांकि यह प्रोजेक्ट करीब तीन दशक पूर्व बंद हो गया। वहीं अब थानागाजी क्षेत्र के मूडियाबास ब्लॉक खेडा में कॉपर, सोना व चांदी के बड़े भंडारों का पता चला है, लेकिन सरिस्का का इको सेंसेटिव जोन अब तक तय नहीं होने से सरकार की ओर से यहां खनन की मंजूरी नहीं दी जा सकी है।
जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया जीएसआई ने वर्ष 2008-09 में अलवर जिले के थानागाजी ब्लॉक के मूडियाबास के खेड़ा ब्लॉक में कॉपर, सोना एवं चांदी के बड़ी मात्रा में भंडार का पता लगाया। लेकिन एक दशक से ज्यादा बीतने के बाद भी यहां इन कीमती खनिज का दोहन शुरू नहीं हो पाया है। इसका कारण है कि मूडियाबास का खेड़ा ब्लॉक टाइगर रिजर्व सरिस्का के पास है और सरकार की ओर से अभी तक सरिस्का का इको सेंसेटिव जोन के प्रस्ताव को अंतिम रूप नहीं दिया गया है।
अलवर की कॉपर प्रोजेक्ट से बन सकती है नई पहचान
सरिस्का का इको सेंसेटिव जोन के प्रारूप को अंतिम रूप देने तथा सरकार की ओर से यहां कॉपर, सोना व चांदी के दोहर की अनुमति दिए जाने पर अलवर की कॉपर प्रोजेक्ट के नाम से देश व प्रदेश में नई पहचान बन सकती है। यहां कॉपर का बड़ा प्रोजेक्ट लगाया जा सकता है, जिसमें कई हजार क्षेत्रीय लोगों को रोजगार मिलने के साथ ही सरकार को हर वर्ष कई हजार करोड़ का राजस्व मिल सकता है। इको सेंसेटिव जोन सरिस्का की सीमा से एक किमी या 10 किलोमीटर के दायरे में होगा, यह तय नहीं हो पाया है। थानागाजी क्षेत्र में मूडियाबास का खेड़ा ब्लॉक भी इस दायरे में आता है। इस कारण सरकार की ओर से अभी तक यहां खनिज के दोहन का निर्णय नहीं किया जा सका है। मूडियाबास के खेड़ा ब्लॉक में जीएसआई ने करीब 584 एकड़ में कॉपर, सोना व चांदी आदि के बड़े भंडार होने का पता लगाया था।