राजस्थान

सरिस्का मॉडल से बदल सकती है मुकुंदरा की तकदीर

Admin Delhi 1
6 May 2023 2:44 PM GMT
सरिस्का मॉडल से बदल सकती है मुकुंदरा की तकदीर
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कोटा: सरिस्का टाइगर रिजर्व ने बाघ पुनर्वास व संरक्षण को लेकर प्रदेश में मिसाल कायम की है। बाघ विहिन होने के बाद 15 साल में ही फिर से 28 बाघों से आबाद हो गया और पर्यटन के नक्शे पर तेजी से उभरकर सामने आया। सरिस्का की सफलता में वाइल्ड पॉपुलेशन मील का पत्थर साबित हुई है। विशेषज्ञों का मत है कि सरिस्का मॉडल अपनाकर मुकुंदरा की तकदीर बदली जा सकती है। इसके लिए जरूरी है, जिस तरह रणथम्भौर से पांच बाघिनों को एक साथ शिफट किया गया था, उसी तरह मुकुंदरा में भी एक से अधिक बाघ-बाघिनों का पुनर्वास किया जाना चाहिए।

2008 से शुरू हुआ बाघों के पुनर्वास का दौर

वर्ष 2005 में सरिस्का को बाघ विहिन घोषित किए जाने के बाद 2008 से यहां बाघों के पुनर्वास का दौर शुरू हुआ। करीब 15 साल पहले रणथंभौर से बाघ लाने का सिलसिला शुरू हुआ था, यह दौर अभी जारी है। डेढ़ दशक में 11 बाघ- बाघिन रणथंभौर से सरिस्का लाए गए। इनके लिए प्रे-बेस, गांवों का विस्थापन, सुरक्षा व मॉनिटरिंग को लेकर गंभीरता से कार्य किया गया। यही कारण है कि साल दर साल सरिस्का में बाघ-बाघिन और शावकों का कुनबा बढ़ता चला गया।

मुकुंदरा में बढ़ाई जाए वाइल्ड पॉपुलेशन

बाघिन एमटी-4 की मौत के बाद मुकुंदरा में अब एकमात्र बाघ एमटी-5 ही बचा है। ऐसे में जल्द से जल्द रणथम्भौर से दो बाघिन लाकर बसाया जाना चाहिए। साथ ही प्रे-बेस की संख्या भी बढ़ाई जानी चाहिए। इसके अलावा मुकुंदरा के दायरे में आ रहे गांवों के विस्थापन प्रक्रिया में तेजी लाते हुए बाघों के स्वछंद विचरण को बढ़ावा दिया जाना चाहिए। वन्यजीव प्रेमियों ने दो बाघ और दो बाघिन लाकर जोड़ा बनाने की मांग की है।

अब तक 99 चीतल ही आए

मुकुंदरा हिल्स टाइगर रिजर्व में प्रे-बेस बढ़ाने के प्रयासों में तेजी लाने की जरूरत है। यहां 500 के करीब चीतल छोडेÞ जाने हैं। हालांकि, भरतपुर केवलादेव नेशनल पार्क से 20 दिसम्बर 2022 से 15 फरवरी 2023 तक कुल 99 चीतल लाए जा चुके हैं। जानकारी के अनुसार अब तक दो सौ से ज्यादा चीतल आ चुके हैं। शेष प्रे-बेस को भी जल्द लाने का प्रयास किया जाना चाहिए। सूत्रों ने बताया कि मुकुंदरा में प्रे-बेस की कमी है। ऐसे में जंगल से सटे गांवों से जंगल में चराई के लिए आने वाले मवेशियों का शिकार करते हैं और ग्रामीणों का जंगल में बढ़ते दखल से वन्यजीव और इंसानों के बीच टकराव की आशंका बनी रहती है।

11 गांवों का अब तक नहीं हुआ विस्थापन

एमएचटीआर को विकसित करने के लिए जरूरी हैं कि यहां जंगल से सटे गांवों को जल्द से जल्द विस्थापित किया जाए। वन अधिकारी गांवों में जाकर लोगों को जागरूक करें और उन्हें वन्यजीवों के महत्व से अवगत कराएं ताकि, बाघों व अन्य वन्यजीवों के स्वछंद विचरण की राह आसान हो सके। लेकिन, हालात यह है कि मुकुंदरा टाइगर रिजर्व घोषित होने के 11 साल बाद भी रिजर्व में बसे 11 गांवों का विस्थापन नहीं हो सका। यहां 14 गांवों में से अभी तक मात्र लक्ष्मीपुरा, घाटी जहांगीर व खरली बावड़ी का ही विस्थापन हो सका है, जबकि, 11 गांवों के बाशिंदे अभी तक विस्थापन के इंतजार में हैं। हालांकि, वर्तमान में दामोदरपुरा का सर्व किया जा रहा है। वहीं, मशालपुरा गांव का विस्थापन कार्य जारी है। जबकि, सरिस्का टाइगर रिजर्व में कुल 29 गांव बसे हैं, जिनमें से अब तक 11 गांव के 1151 परिवारों में से 848 परिवारों को विस्थापित किया जा चुका है।

मुकुंदरा में बसे ये 14 गांव

मुकुंदरा टाइगर रिजर्व में कुल 14 गांव बसे हैं, जिनमें लक्ष्मीपुरा, खरली बावड़ी, घाटी जांगिर, मशालपुरा, गिरधरपुरा, दामोदरपुरा, दरा गांव, नारायणपुरा, कोलीपुरा, रूपपुरा, अखावा, रोजा का तालाब, अंबा रानी, नोसेरा शामिल हैं।

मुकुंदरा हिल्स टाइगर रिजर्व में सरिस्का की तर्ज पर एक से अधिक बाघ-बाघिन लाए जाना चाहिए। हाल ही में रणथम्भौर से एक बाघिन लाने की परमिशन मिली है, जिसे जल्द से जल्द मुकुंदरा में शिफ्ट किया जाए। वहीं, अभेड़ा में पल रहे बाघिन टी-114 के दोनों शावकों को भी मुकुंदरा के सॉफ्ट एनक्लोजर में छोड़ा जाना चाहिए। उनकी 24 घंटे मॉनिटरिंग के लिए डेडीकेट स्टाफ तैनात हो।

- डॉ. सुधीर गुप्ता, वन्यजीव प्रेमी

बाघ एमटी-5 के लिए बाघिन लाने की सख्त आवश्यकता है। देरी होने पर वह भटक सकता है और कहीं निकल सकता है। पूर्व में बाघिन एमटी-4 करीब ढाई साल अकेली रही, उसके लिए नर बाघ लाने में देरी हुई। ऐसी स्थिति एमटी-5 के साथ न हो, इसलिए जल्द से जल्द बाघिन शिफ्ट की जानी चाहिए।

- दौलत सिंह शक्तावत, सदस्य, स्टेट वाइल्ड लाइफ बोर्ड

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