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जोधपुर: श्री राम कथा के दूसरे दिन श्री राधा कृष्ण जी महाराज जोधपुर वाले कथा वाचक ने रामायण का महिमा गान करते हुए बताया कि रामायण मानव स्वभाव के राक्षस को समाप्त करने का काम करती है जिस प्रकार हम भोजन मुंह में लेकर पहले उसे चबाते हैं उसके बाद ही उसको निगलते हैं इसी प्रकार राम कथा को सुनने मात्र से ही लाभ नहीं है उस कथा का चिंतन करना बहुत आवश्यक है जिससे मानव स्वभाव में आशातीत परिवर्तन आएगा और वह सही दिशा में स्वयं को, समाज को, राष्ट्र को प्रगतिशील बनाएगा।
रामायण कथा को आगे बढ़ाते हुए भारद्वाज मुनि ने याज्ञवल्क्य मुनि से प्रश्न किया कि मैं भगवान श्री राम के बारे में जानना चाहता हूं एक राम तो वे है जो अवध के राजा दशरथ के कुमार है जो विश्वामित्र जी के साथ गए । सीता हरण हुआ व्याकुल होकर जंगल जंगल घूमे जिनके बारे में पूरा संसार जानता है दूसरे राम वह हैं जिन्हें भगवान शंकर रात दिन भजते हैं । अगस्त मुनि के आश्रम में भगवान शंकर जी सती जी के साथ भगवान राम की कथा सुनने के लिए गए।
कथा में सती जी का भगवान राम के प्रति संशय का भी विस्तार से वर्णन हुआ तथा सती जी द्वारा भगवान राम की परीक्षा लेने का भी वर्णन विस्तार से सुनाया गया महाराज श्री ने समझाया कि संशय पैदा करना बेकार है यदि संशय पैदा हो भी जाए तो अति शीघ्र उसको दूर करने का प्रयास करना चाहिए जब तक संशय बना रहता है सामंजस्य स्थापित हो ही नहीं सकता। कथा में राजा दक्ष द्वारा यज्ञ किए जाने का भी प्रसंग सुनाया गया पार्वती जी का भगवान शंकर के मना करने पर भी यज्ञ में जाना और शंकर जी का अपमान सहन न कर सकना, यज्ञशाला का विध्वंस और शिवदोह से होने वाले कष्ट का भी विस्तार से वर्णन किया।
महाराज ने कटाक्ष के रूप में एक मार्मिक बात भी कहीं रामलीला जैसे मंचन होना बहुत अच्छी बात है लेकिन जब भगवान की शोभायात्रा निकलती है उसमें जो स्वरूप बनाए जाते हैं उनमें ऐसे स्वरूपों का ही चयन करना चाहिए जो उसके पात्र हैं स्वरूप बनने के बाद उसकी गरिमा यदि वह व्यक्ति नहीं रख सकता है तो स्वरूप का उपहास ही होता है उसके अलावा हम सभी को उस स्वरूप में उसी देवता का दर्शन करना चाहिए जो स्वरूप सामने प्रकट होता है । कथा में सती जी के पुनर्जन्म का भी वर्णन हुआ जिसमें हिमालय राज की पुत्री पार्वती जी के नाम से विश्व विख्यात हुई हिमालय राज ने पुत्री का जन्म का उत्सव मनाया हिमालय पर दूर-दूर से बड़े-बड़े संत जाकर निवास करने लगे हिमालय राज इस संतो के आगमन से बहुत खुश और धन्य हुए।
महाराज ने कटाक्ष करते हुए कहा कि आजकल लोग कन्या का जन्म होने पर मायूसी महसूस करते हैं कन्या अकेले जन्म नहीं लेती है कन्या साथ में सौभाग्य को भी लेकर आती है हिमालय के यहां नारद जी के आगमन का भी कथा में विस्तृत वर्णन किया गया नारद जी के पार्वती जी का भविष्य दर्शन का भी कथा में चित्रण किया भगवान शिव के पुन विवाह का कारण भी समझाया कि ताड़कासुर नाम के राक्षस को ब्रह्मा जी ने वरदान दिया।
वह देवताओं को बहुत सताता था इसलिए सभी देवताओं ने भगवान शंकर से प्रार्थना की कि महाकाल से जो संतान उत्पन्न होगी वही ताड़कासुर का नाश कर सकता है इस अवसर पर शुद्ध आहार ग्रहण करने पर भी महाराज ने प्रकाश डाला उन्होंने बताया रसोई में स्वच्छता अत्यंत आवश्यक है यदि रसोई घर हमारा स्वच्छ नहीं है उसके अंदर शुद्ध भोजन नहीं बन रहा है तो मानव जीवन और मानव चरित्र पर इसका दुष्प्रभाव पड़ेगा।
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