राजसमंद: आमेट में वर्धमान स्थानकवासी जैन श्रावक संघ आमेट के महावीर भवन में चातुर्मास का आयोजन कर रहा है। प्रकाश चंद्र बडोला ने बताया कि तपाचार्य गुरु माता जयमाला महाराज के सान्निध्य में विदुषी साध्वी विनीत रूप प्रज्ञा ने कहा-जैन धर्म के अनुसार प्रत्येक आत्मा का वास्तविक स्वरूप ईश्वर है और प्रत्येक आत्मा में अनंत दृष्टि, अनंत शक्ति, अनंत ज्ञान और अनंत खुशी है।
आत्मा और कर्म पुद्गल के बंधन के कारण यह गुण प्रकट नहीं हो पाता। आत्मा की यह स्थिति सम्यक दृष्टि, सम्यक ज्ञान, सम्यक चरित्र से प्राप्त की जा सकती है। साध्वी चंदन बाला ने कहा कि जैन दर्शन में ईश्वर न तो कर्ता है और न ही भोक्ता है। जैन दर्शन में रचनाकार को कोई स्थान नहीं दिया गया है। जैन धर्म में कई शासक देवता हैं लेकिन उनकी पूजा को कोई विशेष महत्व नहीं दिया जाता है। जैन धर्म में तीर्थंकरों की पूजा का विशेष महत्व है, जिन्हें जिनदेव, जिनेंद्र या वीतराग भगवान कहा जाता है।
इसी कड़ी में साध्वी आनंद प्रभा ने कहा कि जैन धर्म क्या है? 'जैन धर्म' का अर्थ है 'जिन्नों द्वारा प्रवर्तित धर्म'। जिन का अर्थ है जिन्होंने क्रोध और घृणा पर विजय पा ली है। जैन दर्शन के अनुसार, प्रत्येक आत्मा अपने स्वयं के ईश्वर से मिल सकती है और जन्म और मृत्यु के अंतहीन चक्र से मुक्त हो सकती है। बाहर से पहुंचे सूरत, बेंगलुरु के गुरुभक्तों का स्वागत किया गया। इस अवसर पर पवन मेहता, मुकेश सिरोया, अशोक बाफना, राजेंद्र डांगी, नरेश संचेती, मदनलाल सेन, शंकर लाल सेठ, प्रकाश हिरण, हर्ष बाबेल, अरिहंत दक सहित सूरत, बेंगलुरु, मुंबई और श्राविकाएं मौजूद रहीं।