
अलवर. आजादी के अमृत महोत्सव (Azadi Ka Amrit Mahotsav) में पूरा देश स्वतंत्रता के 75 साल पूरे करने के उपलक्ष्य में जश्न में डूबा हुआ है. 15 अगस्त 2022 को आजादी के 75 साल पूरे हो रहे हैं. इस अवसर पर आज राजस्थान के राजेंद्र सिंह (Changemakers) के बारे में जानिए जिन्हें 'वाटरमैन ऑफ इंडिया' कहा जाता है.
देश में चेंजमेकर (Changemakers) की अगर बात आती है तो सबसे ऊपर नाम आता है, वाटर मैन राजेंद्र सिंह (Waterman of India Rajendra Singh) का. उन्होंने अपनी पूरी जिंदगी पानी के संचयन में लगा दी. मूलरूप से उत्तर प्रदेश के रहने वाले राजेंद्र सिंह ने अलवर और उसके आसपास क्षेत्र में पानी बचाने और संचयन के लिए कई जोहड़ बनाएं, जिसका फायदा लोगों को मिला. शुरुआत में उनको कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ा, लेकिन राजेंद्र सिंह ने पीछे मुड़कर नहीं देखा और आगे बढ़ते रहे.
राजेंद्र सिंह ने एक मिसाल कायम की. उनके काम को सराहा गया और दुनिया भर में उनको वाटरमैन (Waterman of India) के रूप में एक नई पहचान मिली. कई बड़े मंच से उनको पुरस्कार और सम्मान से नवाजा गया. आज भी वे लगातार अपनी मुहिम में जुटे हुए हैं.
राजेन्द्र सिंह का जन्म 6 अगस्त 1959 को उत्तर प्रदेश के बागपत जिले के डौला गांव में हुआ. आम बच्चों की तरह राजेन्द्र बड़े हुए और उन्होंने हाई स्कूल की शिक्षा प्राप्त करने के बाद भारतीय ऋषिकुल आयुर्वेदिक महाविद्यालय में दाखिला लिया. उन्होंने आयुर्वेद में डिग्री प्राप्त की और अपने गांव में ही जनता की सेवा करना शुरू किया. इसी बीच वे समाजवादी नेता जयप्रकाश नारायण के संपर्क में आए और उनसे खासे प्रभावित हुए. इतने प्रभावित कि उन्होंने राजनीति में आने का फैसला लिया और उनके अंदर राजनीति का भूत सवार हो गया था.
दिलचस्प बात तो यह थी कि वे इसके लिए राजनीति के मैदान में कूद भी पड़े. इसके लिए उन्होंने इलाहबाद विश्वविद्यालय से सम्बद्ध एक कॉलेज में प्रवेश ले लिया. साथ ही वहां के छात्र युवा संघर्ष वाहिनी के साथ जुड़ गए. वे राजनीति में आगे बढ़ते इससे पहले सन् 1980 में उन्हें सरकारी नौकरी मिल गई. इस तरह वो बतौर 'नेशनल सर्विस वालेंटियर फॉर एजुकेशन' जयपुर पहुंच गए और राजनीति में करियर बनाने का सपना इलाहाबाद में ही छूट गया. अपनी नौकरी के दौरान उन्हें राजस्थान के दौसा जिले में शिक्षा के प्रोजेक्ट का काम सौंपा गया था.
शादी के बाद बदली जिंदगी- उनकी नौकरी ठीक-ठाक चल रही थी, तभी 'मीना' नामक युवती से उनका विवाह हो गया. विवाह के करीब डेढ़ साल बाद 1981 में राजेन्द्र ने अचानक नौकरी छोड़ दिया. दरसअल, राजस्थान के पानी संकट ने उनको परेशान कर दिया था. इसलिए उन्होंने नौकरी छोड़ दी थी. उसके बाद उन्होंने करीब 6500 जोहड़ों का निर्माण करवाया, जिससे राजस्थान के करीब 1000 गांवों में पानी उपलब्ध हुआ. राजेंद्र सिंह की ये मुहिम पूरे भारत में फैल गई और वो 'वॉटरमैन ऑफ इंडिया' कहलाने (Waterman of India) लगे.
राजेन्द्र सिंह को मिले प्रमुख पुरस्कार- राजेंद्र सिंह को स्टॉकहोम में पानी का नोबेल पुरस्कार माने जाने वाले स्टॉकहोम जल पुरस्कार से नवाजा जा चुका है. इसके आलावा वर्ष 2008 में गार्डियन ने उन्हें 50 ऐसे लोगों की सूची में शामिल किया था, जो पृथ्वी को बचा सकते हैं. इसके अलावा इनको 2001 में सामुदायिक नेतृत्व के लिए 'रेमन मैग्सेसे' पुरस्कार से सम्मानित किया गया था जोकि एशिया का नोबेल पुरस्कार माना जाता है. इसके अलावा उनको सैकड़ों पुरस्कार और उपाधि मिले, जो लगातार जारी है. राजेन्द्र अपनी इस सफलता का श्रेय गांव वालों को देते हैं.
कब खुदा पहला जोहड़- राजेन्द्र सिंह ने पहला जोहड़ बनाने के लिए मनोटा कोयाला इलाके को चुना. इस काम के लिए ग्राम सभा भी बुलाना पड़ा. इस ग्राम सभा में लोगों को इस कार्य में मदद करने की अपील की गई, जिसके बाद 6 मार्च 1987 को मनोटा कोयाला में पहला जोहड़ का काम शुरू हुआ जो सफल रहा. इस जोहड़ में जल संचय के फार्मूले को कामयाबी मिलने के बाद सिलसिला आगे बढ़ता रहा. देश के कई इलाकों में राजेन्द्र के नेतृत्व में पानी को इकठ्ठा करने के लगभग 6500 जोहड़ों का निर्माण कराया गया. वहीं, लगभग 1000 गांव में पानी के संकट का निवारण हुआ.
कैसे हुई तरुण भारत संघ की स्थापना- राजेंद्र सिंह ने नौकरी छोड़ने के बाद पानी की संकट को खत्म करने के लिए कुल 23 हजार रुपए लेकर मैदान में उतर गए. सबसे पहले उन्होंने अपने चार साथियों नरेंद्र, सतेन्द्र, केदार और हनुमान के साथ मिलकर साल 2001 में एक गैर सरकारी संस्था नाम तरुण भारत संघ की स्थापना की. इसके तहत राजस्थान के बाहर भी जल संचयन का काम शुरू हुआ. तरुण भारत संघ का अलवर के थानागाजी के पास एक आश्रम है. जहां देसी विदेशी लोग पानी के संरक्षण को लेकर विचार विमर्श करते हैं. साथ ही देश में हो रहे काम को जानने के लिए आते हैं.