राजस्थान

rajesthan : बीजोपचार से बढे़गा बाजरा का उत्पादन

Tara Tandi
8 July 2024 1:29 PM GMT
rajesthan : बीजोपचार से बढे़गा बाजरा का उत्पादन
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rajasthan राजस्थान: ग्राहृय परीक्षण केन्द्र, तबीजी फार्म के उप निदेशक कृषि (शस्य) श्री मनोज कुमार शर्मा ने बताया कि बाजरा खरीफ के मौसम में बोई जाने वाली राजस्थान की प्रमुख फसल है। राजस्थान में बाजरा मनुष्य के भोज एवं पशुओं के हरे व सूखे चारे के लिए अति महत्वपूण फसल हैं। बाजरा की बुवाई का उपयुक्त समय मध्य जून से जुलाई के तृतीय सप्ताह तक है। फसल उत्पादन में बढोत्तरी हेतु उन्नत शष्य क्रियाओं के साथ-साथ फसल को कीटों व रोगों से बचाना भी अतिआवश्यक है। बाजरा की फसल में तुलासिता, हरितबाली रोग, अरगट रोग तथा दीमक व सफेद लटकीट आदि का प्रकोप होता हैं। बाजरा की फसल को कीटों व रोगों से बचाने के लिए विभागीय सिफारिशों के अनुसार रोग प्रतिरोधक किस्मों का उपयोग करें। साथ ही बीजोपचार करें। किसान भाई बीजों को एफ आई आर क्रम में अर्थात फफूंद नाशी, कीटनाशी से बीजों को उपचारित करने के बाद ही जीवाणु कल्चर से बीजों को उपचारित करें एवं बीजोपचार करते समय हाथों में दस्ताने
, मुंह पर मास्क तथा पूरे वस्त्र पहने।
कृषि अनुसंधान अधिकारी (पौध व्याधि) डॉ. जितेन्द्र शर्मा ने जानकारी दी कि इन रोगों से बचाव के लिए निम्नानुसारबीजोपचार व अन्य विभागीय सिफारिशों का उपयोग करें। तुुलासिता रोग एक फफूँद जनित रोग है जिसे राजस्थान में हरित बाली या जोगिया रोग आदि नामों से भी जाना जाता है। इस रोग से बचाव हेतु रोग प्रतिरोधी किस्मों जैसे-एचएचबी 67 इम्प्रूवड,, राज 171, आरएचबी 177, आरएचबी 173, आरएचबी 121, आरएचबी 223, आरएचबी 233, आरएचबी 234, आरएचबी 228 आदि का उपयोग करें साथ ही बीजों को बुआई से पूर्व 6 ग्राम एप्रोन एसडी 35 प्रति किलो बीज की दर से उपचारित करके बुवाई करें।
अरगट रोग से बचाव के लिए बीजों को नमक के 20 प्रतिशत घोल (एक किलो नमक 5 लीटर पानी) में लगभग 5 मिनट तक डुबो कर हिलायें। तैरते हुए हल्के बीजों एवं कचरे को निकालकर जला देवें तथा शेष बचे हुए बीजों को साफ पानी से धोकर, अच्छी प्रकार से छाया में सुखा कर 3 ग्राम थाइरम प्रतिकिलो बीज की दर से उपचारित करके बुवाई करें।
कृषि अनुसंधानअधिकारी (कीट) डॉ. दिनेश स्वामी ने बताया कि बाजरे की फसल को दीमक, सफेद लट, तना मक्खी व तनाछेदक से बचाने के लिए बुवाई से पूर्व बीजों को इमिडाक्लोप्रिड 600 एफ एस की 8.75 मि.ली. अथवा क्लोथायोनिडिन 50 डब्ल्यू.डी.जी. 7.5ग्राम प्रतिकिलोबीज की दर से आवश्यकतानुसार पानी में घोल बनाकर बीजों पर समान रुप से छिड़काव कर उपचारित कर छाया में सुखाने के बाद 2 घण्टे के अन्दर ही बुवाई करें।
कृषि अनुसंधान अधिकारी (रसायन) डॉ. कमलेश चौधरी ने बताया कि बुवाई से पूर्व बीजों को एजोटोबेक्टर जीवाणु कल्चर से उपचारित करने से फसल की पैदावार में बढ़ोत्तरी होती हैं। बीजों को एजोटोबेक्टर जीवाणु कल्चर से उपचारित करने के लिए 500 मिली लीटर पानी में 250 ग्राम गुड़ को गर्म करके घोल बनाए तथा घोल के ठण्डा होने पर इसमें 600 ग्राम जीवाणु कल्चर मिलायें। इस मिश्रण से एक हैक्टेयर क्षेत्र में बोए जाने वाले बीज को इस प्रकार मिलायें कि सभी बीजोें पर इसकी एक समान परत चढ़ जायें। इसके पश्चात इन बीजों को छाया में सुखाकर शीघ्र बोने के काम में लेवें।
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