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राजस्थान कांग्रेस में घमासन अभी खत्म नहीं हुआ है। दिल्ली से भेजे गए पर्यवेक्षक से कांग्रेस विधयकों का नहीं मिलना जैसी अप्रत्याशित घटना एवं मीडिया के सामने गहलोत गुट के विधायकों का यह कहना कि अगर सीएम बदले जाएं तो उनके गुट का ही सीएम बनाए जाए जैसी शर्ते कांग्रेस हाईकमान को चुभने भी लगी। लेकिन राजस्थान में 20 से 28 सितंबर के बीच जो कुछ हुआ किसी के समझ में नहीं आया। इसे आप'द ग्रेट राजस्थान पॉलिटिकल ड्रामा कह सकते हैं। हालांकि अब गैंद कांग्रेस आलाकमान के पास है। दिल्ली से भेजे गए पर्यवेक्षक ने अपनी रिपोर्ट अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी को सौंप दी है। एक दो दिन में इस पर कार्रवाई सुनिश्चित है कि गहलोत सीएम बने रहेंगे अथवा नहीं। क्योंकि, उनके समर्थक यह चाहते हैं कि वे अध्यक्ष के लिए नामांकन नहीं करें।
गहलोत गुट के विधायकों ने तो यहां तक कह दिया है कि अगर अशोक गहलोत नामांकन करें भी तो सीएम पद पर बने रहें। लेकिन इस बीच, गुरुवार को मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री ने दिग्विजय सिंह ने अध्यक्ष पद के लिए नामांकन पत्र लेकर अपनी उम्मीदवारी का दावा कर दिया है। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि राजस्थान घटनाक्रम के कारण एक बार फिर मुख्यमंत्री अशोक गहलोत गुट और पायलट गुट के बीच तलवारें चुनाव तक खिंची हुई रहेंगी। 2023 में राज्य बजट के बाद सचिन पायलट 'एक्सीडेंटल सीएम' बन जाएं तो कुछ कह नहीं सकते लेकिन नंबर गेम सचिन के साथ नजर नहीं आ रहा। गुरुवार को गहलोत ने सोनिया गांधी से मुलाकात के बाद स्पष्ट कहा कि वह अध्यक्ष का चुनाव नहीं लड़ने जा रहे हैं। हालांकि गहलोत पहले भी अध्यक्ष नहीं बनना चाहते थे और अब हाईकमान भी शायद उन्हें अध्यक्ष न बनाना चाहे। अभी किसी ने उनका फॉर्म भी नहीं लिया है। गहलोत के सामने ज्यादा रास्ते नहीं है। अध्यक्ष बनने का रास्ता अब भी खुला हुआ है।
वहीं, कांग्रेस आलाकमान भी अच्छे से जानता है कि यहां लड़ाई अध्यक्ष पद के लिए नहीं है, बल्कि राजस्थान के सीएम पद की है। गहलोत ने यह भी कह दिया कि मुख्यमंत्री पद पर रहेंगे अथवा नहीं यह सोनिया गांधी तय करेंगी। सवाल यह उठता है कि कांग्रेस आलाकमान के पास क्या विकल्प है? क्या मुख्यमंत्री को बिना विधायकों के समर्थन के हटाया जा सकता है? विधायक दल के समर्थन के बिना मुख्यमंत्री को नहीं हटाया जा सकता। विधायक दल की बैठक बुलाने का अधिकार विधायक दल के मुखिया (सीएम), संसदीय कार्य मंत्री या मुख्य सचेतक को है। आलाकमान विधायक दल की बैठक खुद अपने स्तर पर नहीं बुला सकता। आलाकमान के आदेश की पालना में 25 सितंबर को विधायक दल की बैठक तो बुलाई गई, लेकिन विधायक नहीं जुटने से मुख्यमंत्री पद को लेकर प्रस्ताव तक पारित नहीं हो पाया। साफ है कि आलाकमान के चाहने भर से ही कुछ नहीं होने वाला, विधायकों का एकराय होना भी जरूरी है। अभी इस मामले में गहलोत और उनके मंत्री ज्यादा ताकतवर हैं। गहलोत समर्थकों ने पायलट की मुख्यमंत्री बनने की राह में इतने कांटे बो दिए हैं कि अब आलाकमान के लिए भी उनके पक्ष में निर्णय करना काफी कठिन हो गया है।
आलाकमान ने उन पर विश्वास जताते हुए सीएम पद के लिए उनका नाम तय कर दिया था, लेकिन परिस्थितियों ने साथ नहीं दिया। वहीं, पायलट धैर्य रखे हुए हैं और वे अब सोनिया से मिलकर गहलोत समर्थकों के द्वारा उनके खिलाफ माहौल बनाने के पीछे किसका हाथ है, इसे स्पष्ट करने का प्रयास करेंगे। लेकिन इसमें कोई दो राय नहीं कि राजस्थान में सियासी घमासान देख कर ऐसा लग रहा है कि कांग्रेस आलाकमान कमजोर हो रहा है। भाजपा में आलाकमान ने एक साल में 5 मुख्यमंत्री बदल दिए, लेकिन कहीं हल्ला नहीं मचा, लेकिन कांग्रेस ने पंजाब में सीएम बदलने का प्रयास किया, तो गुटबाजी के चलते कांग्रेस आलाकमान को काफी आंखें दिखाई गईं, अंत में पंजाब का सीएम बदला, लेकिन सरकार चली गई।
मतलब आलाकमान का सियासी दांव सही नहीं पड़ा। अब सिर्फ दो राज्यों राजस्थान और छत्तीसगढ़ में विशुद्ध कांग्रेसी सरकार है। कांग्रेस आलाकमान राजस्थान को लेकर रिस्क नहीं लेना चाहता। साथ ही गुजरात सहित कई चुनावों में राजस्थान की महत्वपूर्ण भूमिका है।
अशोक गहलोत को क्लीनचिट पर सवाल
Rani Sahu
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