राजस्थान

पुंवाड़ आदिवासियों के लिए अतिरिक्त आय का बन रहा है जरिया, मिलेगा रोजगार

Gulabi Jagat
11 Jan 2023 4:11 PM GMT
पुंवाड़ आदिवासियों के लिए अतिरिक्त आय का बन रहा है जरिया, मिलेगा रोजगार
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जिले के खाली स्थानों में उगने वाली झाड़ियों पर इन दिनों बीज पकने लगे हैं। इन बीजों का उपयोग आयुर्वेदिक दवाओं में किया जाता है। जिससे ये बीज बाजार में बिक रहे हैं। यह आदिवासियों की आय का जरिया भी है। कंठाल में इन दिनों खाली स्थानों, जंगलों आदि में उगने वाली झाड़ी के बीज पकने लगे हैं। वैसे इन पौधों को खरपतवार के रूप में देखा जाता है। लेकिन इसके औषधीय उपयोग को लेकर वन विभाग द्वारा लोगों को जागरूक किया जा रहा है। जिससे लोग इनके बीजों को एकत्रित कर विभाग को भी बेच रहे हैं। हालांकि इसके बीज मप्र के नजदीक नीमच स्थित औषधि मंडी में भी बिकते हैं। लेकिन वन विभाग द्वारा जागरूकता पैदा की जा रही है। इससे अब विभाग पनवाड़ का बीज भी खरीद रहे हैं। जिससे आदिवासियों को अतिरिक्त आमदनी हो रही है।

बरसात का मौसम आते ही खुले मैदानों और खेतों में यह घास स्वत: ही उगने लगती है। भारत के अधिकतर किसान इसे खरपतवार के रूप में ही देखते हैं, लेकिन इसके औषधीय प्रयोग इतने अधिक हैं कि यह खरपतवार होते हुए भी बहुत ही कारगर औषधि साबित होती है। पुंवाद को आयुर्वेद में चक्रमर्द के नाम से जाना जाता है। इसके पौधे बारिश में खाली जगह में उग जाते हैं। जो प्राय: बड़े समूह में पाए जाते हैं। इसके पौधे से एक विशेष गंध आती है। पत्तियों को कुचलने से दुर्गंध आती है।
यह पूरे भारत में विशेष रूप से उष्णकटिबंधीय जंगलों, झाड़ियों, खेतों, खेतों, सड़कों के किनारे और हिमालय में 1500 मीटर की ऊंचाई पर पाया जाता है। इसके बीज बच्चों के लिए विषैले होते हैं। इसका पौधा 5 फीट तक लंबा हो सकता है। ज्यादातर लोग इसे खरपतवार के रूप में देखते हैं। लेकिन यह एक औषधीय पौधा है। जिसका प्रयोग चर्म विकार, रक्त विकार तथा विषविकार में किया जाता है। इसका पुष्पन काल जुलाई से सितम्बर तथा फल काल अगस्त से नवम्बर तक होता है। इसके बीज फलियों में होते हैं, जो मेथी की तरह पंक्तिबद्ध बीज होते हैं।


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