राजस्थान

पेश है राजसमंद जिले से गुजरने वाली अरावली की पहाड़ियों से उतरते पानी का खूबसूरत नजारा, कल-कल बह रहा पानी

Bhumika Sahu
26 Aug 2022 6:16 AM GMT
पेश है राजसमंद जिले से गुजरने वाली अरावली की पहाड़ियों से उतरते पानी का खूबसूरत नजारा, कल-कल बह रहा पानी
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कल-कल बह रहा पानी

राजसमंद, भादौ की बारिश ने जिले से गुजरती अरावली की पहाडिय़ों से उतरे पानी के खूबसूरत नजारे पेश कर दिए हैं। जहां बनास भी कल-कल बह रही है, वहीं चन्द्रभागा नदी में भी पानी आगे बढभदौ की बारिश ने जिले से गुजरने वाली अरावली पहाड़ियों से उतरते पानी के खूबसूरत नजारे पेश किए हैं। जहां बनास भी समय-समय पर बह रहा है, वहीं चंद्रभागा नदी का पानी भी आगे बढ़ रहा है। कुंभलगढ़ की पहाड़ियों के बीच बसे वेरोन मठ को बनास नदी का उद्गम माना जाता है। मठ की गोद से निकलने वाली इस नदी को जंगल की आशा कहा गया है। इस नदी के किनारे बसे गाँव, खेत और खदानें सदियों पहले घने जंगल के रूप में दिखाई देती थीं। बारह महीने बहने वाली नदी अपने किनारे के जंगलों की आस थी। इसका नाम जंगल की आशा के शाब्दिक संयोजन से मिला है।

यह नदी राजस्थान की प्रमुख नदियों में से एक है। समय के साथ, कई कारणों से बनास नदी की प्रकृति सिकुड़ गई है। लेकिन फिर भी मानसून के मौसम में जब बादल खुलेआम पहाड़ों में रहते हैं, तो बारबास नदी की आवाज बार-बार बजने लगती है। नदी की गोद से बहता पानी कई छोटे जलाशयों को भरते हुए आगे बढ़ता है। नदियां और जलाशय इंसानों और जानवरों की प्यास बुझाते हैं। इसके जल से असंख्य भूमि क्षेत्रों में फसलें उगती हैं। इस साल भी ऐसे बरसे बादल, लौट आई नदी की खूबसूरती बघेरी नाका और नंदसमंद बांध को भरकर बनास अब पहाड़ियों और मैदानों में बह रहा है। बनास का वेग मध्यम गति का ही रहता है। अगले कुछ महीनों तक ऐसा ही रहेगा। बारिश के कारण पानी बहने लगता है तो बनास नदी के किनारे हरियाली छा जाती है। सैकड़ों कुओं का जलस्तर ऊपर आ गया है। फसल जीवनदायिनी बन जाती है। पहाड़ों से उतरकर मैदानी इलाकों में बहने वाली बनास नदी का सौंदर्य देखते ही बनता है.ऩे लगा है। कुंभलगढ़ की पहाडिय़ों के बीच बसे वेरों का मठ को बनास नदी का उद्गम स्थल माना जाता है। मठ की गोद से निकलने वाली इस नदी को वन की आशा कहा गया है। इस नदी के किनारे बसे गांव, खेत-खनिहान सदियों पहले घने वन के रूप में दिखाई पड़ते थे। बारहों महीना बहने वाली नदी इसके किनारों पर बसे जंगलों की उम्मीद थी। वन की आस के शाब्दिक युग्म से ही इसका नाम बनास पड़ा।
ये नदी राजस्थान की प्रमुख नदियों में से एक है। कालांतर में बनास नदी का स्वरूप अनेक कारणों से सिमटा है। मगर फिर भी मानसून के दौर में बादल जब दिल खोलकर पहाड़ों में बसरते हैं तो बरबस की नदी की कल-कल ध्वनि का नाद होने लगता है। नदी की गोद से बहता पानी कई छोटे-मोटे जलाशयों को भरते हुए आगे बढ़ता जाता है। नदी और जलाशय मनुष्य, जीव-जंतुओं की प्यास बुझाते हैं। इसके जल से अगणित भू-भाग पर फसलें लहलहाती हैं। इस वर्ष भी मेघ कुछ ऐसे बरसे की नदी की रौनक लौट आई है। बाघेरी नाका और नंदसमंद बांध भरकर बनास अब पहाड़ी और मैदानी इलाकों में कल-कल करती बह रही है। बनास का वेग मध्यम गति का बना हुआ है। अगले कुछ महीनों तक यूं ही बना रहेगा। बारिश से जलप्रवाह शुरू होने पर बनास नदी के किनारे हरियाली छा जाती है। सैंकड़ों कुओं का जलस्तर ऊपर आ जाता है। फसलों की जीवनदायिनी बन जाती है। पहाड़ों से उतरकर मैदानी इलाकों में बलखाती हुई बहती बनास नदी की खूबसूरती देखते ही बनती है।


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