राजस्थान

नगरीय विकास मंत्री धारीवाल का पट्टा अभियान, लाखों परिवारों को महसूस हो रहा अपमान

mukeshwari
3 Jun 2023 10:14 AM GMT
नगरीय विकास मंत्री धारीवाल का पट्टा अभियान, लाखों परिवारों को महसूस हो रहा अपमान
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जयपुर। राज्य में 2 अक्टूबर, 2021 को मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने गाजे-बाजे के साथ प्रशासन शहरों के संग अभियान के तहत राज्यभर में पट्टे बांटने की शुरूआत की थी। इसके तहत आगामी विधानसभा चुनाव को ध्यान में रखते हुए 10 लाख पट्टे बांटने का लक्ष्य रखा गया था। इससे एकबारगी तो उन प्रदेशवासियों को राहत मिली जो नियमों का उल्लंघन कर अनअप्रूव्ड कॉलोनियों में रह रहे थे अथवा जिनके पास मकान तो था, लेकिन मालिकाना हक साबित करने के लिए पट्टा नहीं था। लेकिन, तमाम प्रयासों के बावजूद मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का 10 लाख पट्टे जारी करने का सपना पूरा नहीं हो पाया है। अब तक 7.89 लाख पट्टे ही जारी हुए हैं। इसके लिए भी जिला कलेक्टर समेत सचिवालय में बैठने वाले तमाम अफसरों को निरीक्षण में लगाया गया।

दलालों का प्रभावः अब तक 116 से ज्यादा बार बदले नियमः

लक्ष्य को पूरा करने के लिए दलालों औऱ विभिन्न रसूखदार लोगों की सिफारिश पर अब तक नियम-कानूनों में 116 से भी अधिक बदलाव किए जा चुके हैं। ताकि अधिक से अधिक लोगों को पट्टे दिए जा सकें। अभी हालत यह है कि नियमों में बदलाव का भरपूर फायदा चहेतों को ही मिला है। सरकार से जारी अधिसूचना, परिपत्र औऱ आदेशों में छूट इस तरह से दी गई जिससे रसूखदार लोगों के हित साधे जा सकें। जबकि रीको, हाउसिंग बोर्ड समेत कई संस्थाओं की अवाप्तशुदा जमीनों पर बसे हजारों परिवार आज भी पट्टे का इंतजार कर रहे हैं। इस अभियान में जारी आदेश से इन भूमियों पर बसे लाखों परिवारों के लिए 116 बार किए संशोधन में एक शब्द भी लिखा नहीं होने के कारण ये परिवार खुद को अपमानित औऱ ठगा सा महसूस कर रहे हैं।

भेदभाव की नीति के कारण पूरा नहीं हो पाया लक्ष्यः

राज्य में 10 लाख पट्टे जारी करने का लक्ष्य पूरा नहीं होने का कारण कुछ और नहीं बल्कि जेडीए औऱ नगरीय निकाय संस्थाओं द्वारा अपनाई गई भेदभाव की नीति है। जहां काम करना होता है, वहां सुप्रीम कोर्ट, हाईकोर्ट के आदेशों का भी तोड़ निकालकर पट्टे बांट दिए। फिर चाहे पृथ्वीराज नगर योजना की अवाप्तशुदा जमीनों पर पट्टे दिए हों अथवा नगर विकास न्यासों, नाहरगढ़ अभ्यारण्य में प्रस्तावित क्षेत्र। नदी हो या नाले। मंदिर माफी की जमीन हो अथवा जेडीए की अवाप्तशुदा सैंकड़ों बीघा जमीन। और तो और सिवायचक, राजकीय, चारागाह भूमि एवं सीलिंग एक्ट से प्रभावित भूमि में भी अफसरों ने दलालों की मेहरबानी से लाखों पट्टे जारी कर दिए।

नियम औऱ नीति सभी के लिए एक समान होनी चाहिएः

कानून के जानकारों का मानना है कि जब भी कोई राज्य स्तरीय छूट देने के लिए कोई अधिसूचना, आदेश, परिपत्र जारी किया जाता है तो वह शहर में बसे सभी परिवारों औऱ विभागों के लिए समान होना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट ने पृथ्वीराज नगर योजना में कहीं भी पट्टे बांटने के आदेश नहीं दिए। लेकिन, फिर भी राज्य सरकार ने बड़ा जनहित देखते हुए वहां रह रहे हजारों परिवारों को सोसायटी पट्टे के बदले जेडीए का फाइनल पट्टा देकर राहत दी। इसके लिए गहलोत सरकार ने मंत्रिमंडलीय समिति बनाकर उसमें धड़ाधड़ कई बार निर्णय करवाए।

क्या मंत्रिमंडलीय कमेटी के फैसले की भी कोई वैल्यू नहींः

मुख्यमंत्री अशोक गहलोत द्वारा गठित मंत्रिमंडलीय उप समिति ने पहले भी सिंचाई, सार्वजनिक निर्माण विभाग और रीको की अवाप्तशुदा जमीनों पर बसी आवासीय कॉलोनियों के लोगों को भी पट्टे दिए जाने को लेकर नीति बनाई थी। नगरीय विकास, आवासन एवं स्वायत्त शासन मंत्री धारीवाल खुद मंत्रिमंडलीय उप समिति के अध्यक्ष, सहकारिता मंत्री और उद्योग मंत्री इसके सदस्य थे। इसके बावजूद इन संस्थाओं की जमीनों पर बसी कॉलोनियों के मामलों में अधिकारियों ने सुप्रीम कोर्ट, हाईकोर्ट के आदेश औऱ अवाप्तशुदा जमीनों संबंधी आपत्तियां लगाकर कैबिनेट सब कमेटी के फैसले लागू नहीं होने दिए।

वह भी तब जबकि वहां अब औद्योगिक क्षेत्र बनाने के लिए ना तो जगह बची है और ना ही नियमानुसार घनी आबादी के बीच औद्योगिक क्षेत्र बनाया जा सकता है। जैसे कोटा में रीको औद्योगिक क्षेत्र में ही सैकड़ों छात्रावास चल रहे हैं। अगर इन्हें तुड़वा नहीं सकते तो इन्हें भी सरकार से राहत मिलनी चाहिए। क्योंकि सैकड़ों विद्यार्थी इन हॉस्टलों में रह रहे हैं।

इन जगहों पर बसी कॉलोनियों के लोगों को राहत क्यों नहींः

रीको अलवर के भिवाड़ी, पाली, सिरोही के आबूरोड और जयपुर समेत प्रदेश के कई शहरों में रीको की 20 वर्ष पहले अवाप्तशुदा जमीनों पर 2-3 दशक से सघन आबादी वाली आवासीय कॉलोनियां बसी हुई हैं। वैसे भी यह नियम है कि अगर किसी जमीन पर 10 साल तक लगातार कब्जा साबित हो जाता है तो उसमें कब्जेदार का राइट क्रिएट हो जाता है। फिर इन कॉलोनियों का नियमन कर पट्टे क्यों नहीं दिए जा रहे। जबकि इन जगहों पर पिछले 30 सालों में एक भी औद्योगिक इकाई नहीं आई है। ना ही भविष्य में वहां औद्योगिक क्षेत्र बनने की कोई गुंजाइश ही बची है। इसके विपरीत सरकार करोड़ों रूपए की बेशकीमती जमीनों को धारा 48 के नाम पर कब्जा लेने के बाद या तो छोड़ रही है अथवा बदले में काश्तकारों को 25 प्रतिशत विकसित भूमि बतौर मुआवजा दे रही है। खासखबर डॉट कॉम के पास ऐसे कई प्रकरणों की जानकारी है।

रीको ने जादौन नगर मामले में क्यों नहीं कराई एफआईआरः

रोचक तथ्य यह है कि रीको की अवाप्तशुदा भूमि पर टोंक रोड स्थित जादौन नगर आवासीय योजना में जेडीए पट्टे जारी कर चुका है। लेकिन, रीको के अधिकारी इस मामले में आज तक चुप हैं। जबकि इस कॉलोनी की जमीन आज भी राजस्व रिकॉर्ड में रीको के नाम दर्ज है। इससे रीको की अवाप्तशुदा जमीनों पर ही बसी कॉलोनियों अर्जुन नगर, श्रीजी नगर, प्रेम नगर, कृषि नगर औऱ तरुछाया नगर के लोगों में भयंकर रोष व्याप्त है।

रीको अफसरों की उदासीनता से बनी विवाद की स्थितिः विवाद की स्थिति इसलिए भी क्योंकि अवाप्तशुदा जमीनों पर वर्षों से बसी आवासीय कॉलोनियों को रीको ना तो हटाने की कार्य़वाही करता है और ना ही जेडीए एवं नगरीय निकायों को कोई अनापत्ति देता है। रीको ने अनापत्ति देने के लिए एक बार जेडीए से 325 रुपए प्रति वर्गगज की दर से राशि मांगी थी। लेकिन, जेडीए ने इसका कोई जवाब नहीं दिया।

जेडीए सूत्रों की मानें तो जादौन नगर में जेडीए ने पट्टे इसलिए बांट दिए थे, कयोंकि रीको ने लोकायुक्त में यह कहा था कि यहां अब औद्योगिक क्षेत्र नहीं बस सकता। अब सवाल ये है कि क्या बाकी कॉलोनियों वाली भूमि पर औद्योगिक क्षेत्र बस सकता है। वैसे कुछ लोग यह भी दावा करते हैं कि जादौन नगर में जेडीए के खिलाफ रीको इसलिए कार्यवाही नहीं करता क्योंकि विधि शाखा के एक अधिकारी का यहां अच्छा-खासा इन्वेस्टमेंट है।

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प्रकाश सिंह पिछले 3 सालों से पत्रकारिता में हैं। साल 2019 में उन्होंने मीडिया जगत में कदम रखा। फिलहाल, प्रकाश जनता से रिश्ता वेब साइट में बतौर content writer काम कर रहे हैं। उन्होंने श्री राम स्वरूप मेमोरियल यूनिवर्सिटी लखनऊ से हिंदी पत्रकारिता में मास्टर्स किया है। प्रकाश खेल के अलावा राजनीति और मनोरंजन की खबर लिखते हैं।

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