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टोंक। टोंक मौसमी बीमारियों के बीच इन दिनों फ्लू मरीजों का दर्द बढ़ा रहा है। चिकित्सकों का भी मानना है कि इन दिनों जिले में उमस और तेज धूप के कारण घटते बढ़ते तापमान के बीच कंजंक्टिवाइटिस (आई फ्लू) तेजी से फैल रहा है। यही कारण है कि सआदत अस्पताल में इन दिनों मरीजों की संख्या बढ़ गई है. सरकारी अस्पतालों के अलावा निजी अस्पतालों और क्लीनिकों में भी आई फ्लू के मरीज परामर्श के लिए पहुंच रहे हैं। इसमें वयस्कों के साथ-साथ बच्चे भी शामिल हैं।
सआदत अस्पताल के आंकड़ों के अनुसार सआदत अस्पताल में प्रतिदिन आने वाले 3 हजार से अधिक मरीजों में से करीब 150 मरीज आई फ्लू से पीड़ित होते हैं. नेत्र रोग विशेषज्ञ डॉ. मेघा सुलानिया ने बताया कि इन दिनों आंखें ज्यादा लाल हो रही हैं या दर्द हो रहा है, इसलिए इसे हल्के में न लें, सावधान रहें। यह एक संक्रमण है जो कंजंक्टिवा, आंख के ऊपर की झिल्ली, में सूजन का कारण बनता है। कंजंक्टिवा वह स्पष्ट परत है जो आंख के सफेद हिस्से और पलकों की अंदरूनी परत को ढकती है। मानसून के दौरान, कम तापमान और उच्च आर्द्रता के कारण, लोग बैक्टीरिया, वायरस और एलर्जी के संपर्क में आते हैं, जो एलर्जी प्रतिक्रियाओं और नेत्रश्लेष्मलाशोथ जैसे आंखों के संक्रमण का कारण बनते हैं। आई फ्लू से पीड़ित मरीजों को घर पर स्वयं उपचार नहीं करना चाहिए। डरने की कोई जरूरत नहीं है. 5 से 7 दिन तक इलाज के बाद मरीज ठीक हो जाता है, लेकिन अगर समय पर इलाज न मिले और बीमारी बढ़ जाए तो आंखों की रोशनी जाने का भी खतरा रहता है। उन्होंने बताया कि बचाव के लिए हाथों की साफ-सफाई रखें और बार-बार हाथ धोएं, कंजंक्टिवाइटिस दूषित हाथों से ही फैलता है। आंखों के मेकअप और तौलिये जैसी निजी वस्तुओं को अलग रखें।
आंखों के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले ब्यूटी प्रोडक्ट के एक्सपायर होने के बाद उसका इस्तेमाल न करें। तकिए के कवर को बार-बार बदलें। इधर, सआदत अस्पताल के पीएमओ डॉ. बीएल मीना ने बताया कि उच्च अधिकारियों को पत्र लिखकर आई ड्रॉप की मांग की गई है. सआदत अस्पताल की ओपीडी भी पिछले कुछ दिनों में बढ़ी है. पहले यहां रोजाना करीब ढाई हजार मरीजों की ओपीडी होती थी। आई फ्लू फैलने के बाद ओपीडी की संख्या तीन हजार से अधिक हो गयी है. हालांकि, इनमें से अधिकतर मरीज मौसमी बीमारियों के ही हैं। इनमें उल्टी, दस्त, सर्दी-खांसी आदि शामिल हैं। सोमवार को 48 बेड के मेडिकल वार्ड में 65 मरीज भर्ती किये गये। इनमें कुछ बेड पर दो-दो मरीज भर्ती थे तो कुछ मरीजों को बेंच पर लिटाकर इलाज किया जा रहा था।
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