जोधपुर: जवाहर कला केंद्र रंगायन सभागार में सोमवार को मुंशी प्रेमचंद की कहानियों के पात्र शब्दों की अंगुलियां थामे श्रोताओं के मन में उतरते रहे। मौका था राजस्थान प्रगतिशील लेखक संघ और जवाहर कला केंद्र प्रयास कला संसार के प्रयासों से मुंशी प्रेमचंद जयंती समारोह के आयोजन का। दो अलग-अलग सत्रों में साहित्यकारों ने प्रेमचंद के साहित्यिक योगदान पर चर्चा की और कहानियाँ पढ़ीं।
प्रेमचंद ने गांधी के गांवों को कहानियों में बदल दिया
प्रथम सत्र में 'प्रेमचंद की विरासत के अर्थ' विषय पर चर्चा करते हुए राजस्थान विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग के सहायक प्रोफेसर विशाल विक्रम सिंह ने कहा, 'प्रेमचंद नवजागरण युग के लेखक हैं, जो सौ साल बाद भी आज भी वे दुनिया को देखने और समाज को जागरूक करने में सक्षम, समझने वाली आंखों की तरह हैं। एक सदी पहले, उन्होंने आज की समस्याओं और समसामयिक मुद्दों के बारे में अपनी कहानियों के माध्यम से हमें आईना दिखाया था।
प्रेमचंद ने अपना साहित्य बनारस के पास लमही गाँव में रहकर लिखा। वे जिन लोगों और जिस समाज में रहे, उन्हें उन्होंने अपनी कहानियों का हिस्सा बनाया, यही वजह है कि उनकी कहानियाँ आज भी इतनी प्रासंगिक और जीवंत लगती हैं। बिना गांव में रहे इसकी झलक तो मिल सकती है, लेकिन इसकी हकीकत का पता नहीं चल पाएगा। प्रेमंचद गांव की हकीकत को समझते थे और आज के समकालीन कहानीकारों को गांव का अनुभव कम है, इसलिए अब हमारी कहानियों में गांव की अनदेखी हो रही है।सत्र में मनीषा कुलश्रेष्ठ, डाॅ. राजाराम भादू ने प्रेमचंद के साहित्यिक योगदान पर चर्चा की। भादू ने कहा, 'प्रेमचंद की रचनाएं आज भी मशाल बनकर साहित्य और समाज का मार्ग प्रशस्त कर रही हैं। उन्होंने कहा कि प्रेमचंद की विरासत को समग्रता में देखने की जरूरत है, वह पहले हिंदी लेखक हैं जिन्होंने अपनी रचनाओं में यथार्थवाद और गांव को स्थापित किया.