रेल मंत्रालय ने सेंसेटिव सेक्शनों की जरूरत वाले रूट की मांगी जानकारी
कोटा: ओडिशा के बालासोर में हुई ट्रेन दुर्घटना के बाद रेल मंत्रालय ने स्वदेशी सेफ्टी डिवाइस कवच पर नए सिरे से काम करना शुरू कर दिया है। इसके तहत अब तक अलॉट रूट के अलावा जरूरत वाले सेंसेटिव सेक्शनों के बारे में सभी जोन से जानकारी मांगी गई है। उसके आधार पर रूट तय करते हुए एक-एक करके संबंधित सेक्शन में किमी वाइज कवच का इंस्टॉलेशन किया जाएगा। फिलहाल पश्चिम-मध्य रेल जोन के दिल्ली-मुंबई सेक्शन के अंतर्गत 550 किमी क्षेत्र में कवच के इंस्टॉलेशन की मंजूरी मिल चुकी है। जोन के प्रवक्ता राहुल श्रीवास्तव ने बताया कि सेक्शन के हिसाब से कवच का इंस्टॉलेशन मंजूर होता है। देश के सभी 19 जोन के अंतर्गत आने विभिन्न रूट्स में से जरूरत वालों पर सबसे पहले कवच इंस्टॉल किया जा रहा है। प्रति किमी करीब 50 लाख रुपए का खर्चा इसके इंस्टॉलेशन पर आता है। दिल्ली-मुंबई के बाद दिल्ली-हावड़ा रूट को कवच के लिए चुना गया है। उसके बाद मुंबई सहित अन्य रूट पर भी कवच इंस्टॉल किया जाएगा। रेल अधिकारियों का कहना है कि पूर्व में जो एंटी कोलाइजन डिवाइस लगाई जाना प्रस्तावित था, उसकी प्रति किमी लागत एक करोड़ रुपए आती थी। साथ ही उनकी अलग अलग रेंज और कार्य क्षमता थी। लेकिन वह ज्यादा विश्वसनीय नहीं थीं इसके बाद आरडीएसओ ने तीन एंटी कोलहजन डिवाइस को मिलाकर कवच तैयार किया है।
तीन हिस्सों में इंस्टॉल होता है सिस्टम
कवच को तीन हिस्सों में इंस्टॉल किया जाता है। पहला हिस्सा रेल इंजन में लगाया जाता है। दूसरे हिस्से को उस स्टेशन के आॅपरेटिंग विभाग में इंस्टॉल करते हैं, जो संबंधित रूट के बीच में पड़ता है। तीसरा हिस्सा सेक्शन के मैन सिग्नल के नजदीक इंस्टॉल किया जाता है।
इस तरह से काम करता है कवच सिस्टम
सीनियर डीसीएम रोहित मालवीय ने बताया कि कवच वाले सेक्शन में कोई दो ट्रेनें जिनके इंजन में सिस्टम लगा होता है उनके स्क्रीन पर एक-दूसरे की लोकेशन और दूरी नजर आने लगती है। जब यह ट्रेनें एक ही ट्रैक पर आमने-सामने आने लगती है। तो कवच के माध्यम से इनके इंजन में आॅटोमेटिक ब्रेक लगना शुरू हो जाते हैं और वे आपस में टकराने से बच जाती है।