मकरंद बोले मंच पर बैठे कई लोग इधर-उधर गए, मैं उनमें से एक: चतुर्वेदी
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जयपुर: जेएलएफ कल समाप्त हो गया। सभी लेखकों, साहित्यकारों ने फिर मिलने की बात के साथ अलविदा कहा। फ्रंट लॉन में हुए सत्र 'द राइट एण्ड लेफ्ट डिवाइड कैन नेवर बी ब्रिज्ड' में पक्ष और विपक्ष में बोलने के लिए राजनीति, अकादमी से जुड़े वक्ता मौजूद थे, जिन्होंने खुलकर अपनी बात रखी। प्रसार भारती के सीईओ जवाहर सरकार ने लेफ्ट और राइट टर्म की उत्पत्ति के इतिहास के बारे में बताते हुए कहा कि 1789 में पहली बार पैरिस की पार्लियामेंट में सांसद साम्राज्य के पक्ष-विपक्ष में बात करने के लिए जमा हुए थे। जो साम्राज्य के विरोध में थे वो लोग लेफ्ट में जाकर खड़े हो गए और पक्ष वाले लोग राइट में, तभी से ये टर्म बन गई। जो शासन के पक्ष में होते उन्हें राइट माना जाता और विपक्ष वालों को लेफ्ट। डिप्लोमेट और लेखक पवन के.वर्मा ने कहा कि 'लेफ्ट और राइट' पश्चिमी विचारधारा है। भारत में हम सिविलाइजेशन को वरीयता देते हैं। नेशनहुड हमारे लिए सबसे ऊपर है। हम वासुधैव कुटुम्बकम की परम्परा से हैं। 1950 में कांग्रेस ने आरएसएस को बैन किया था, लेकिन 63 में नेहरू ने खुद आरएसएस को गणतंत्र दिवस पर आमंत्रित किया था। यही साबित करता है कि दोनों के अंतर को पाटा जा सकता है।
सत्र में राजनेता प्रियंका चतुर्वेदी ने कहा कि मकरंद ने कहा कि मंच पर बैठे कई लोग इधर से उधर गए हैं। मैं उनमें से एक हूं...इंदिरा गांधी से जब पूछा गया कि उनका भारत लेफ्ट अलाइन होगा या राइट अलाइन? इस पर उन्होंने जवाब दिया कि मैं भारत को यथार्थवादी के रूप में देखती हूं। हमें बीच का रास्ता अपनाना चाहिए, तो चॉइस नहीं है। ये विकास की जरूरत है। तो ये भी इस दूरी को पाटने का ही क्रम है।
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